मेरा बेटा कहाँ से आता?
श्रद्धानन्द-काल की घटना है। मुस्लिम लीगी मुसलमानों ने दिल्ली में जाटों के मुहल्ले से वध करने के लिए गाय का जलूस निकालना चाहा। वीर लोटनसिंह आदि इसके विरोध में डट गये।
लीगी गुण्डों ने मुहल्ले में घुस-घुसकर लूटमार मचा दी। वे एक मन्दिर में भी घुस गये और जितनी भी मूर्ज़ियाँ वहाँ रखी थीं, सब तोड़ डालीं। भगीरथ पुजारी एक कोने में एक चटाई में छुप गया।
किसी की दृष्टि उस पर न पड़ी। वह बच गया।
पण्डित श्री रामचन्द्रजी ने उससे पूछा कि तू दंगे के समय कहाँ था? उसने कहा-‘‘मन्दिर में था।’’
पण्डितजी ने पूछा-‘‘फिर तू बच कैसे गया?’’ उसने बताया कि मैं चटाई में छुप गया था।’’
पण्डितजी ने पूछा-‘‘तुज़्हें उस समय सर्वाधिक किसकी चिन्ता थी?’’
पुजारी ने कहा-‘‘अपने बेटे की थी। पता नहीं वह कहाँ है?’’
पण्डितजी ने पूछा-‘‘तुज़्हें देवताओं के टूटने-फूटने की कोई चिन्ता नहीं थी?’’
उसने स्पष्ट कहा-‘‘अजी वे तो फिर जयपुर से आ जाएँगे कोई दो रुपये का, कोई चार रुपये का, कोई आठ का, परन्तु मेरा बेटा कहाँ से आता?’’