लाला लाजपतरायजी भी फँसाये गये
उन्नीसवीं शताज़्दी के अन्त में बीकानेर में अकाल पड़ा था। आर्यसमाज ने वहाँ प्रशंसनीय सेवाकार्य किया। लाला लाजपतरायजी ने आर्यवीरों को मरुभूमि राजस्थान में अनाथों की रक्षा व पीड़ितों की सेवा के लिए भेजा। विदेशी ईसाई पादरी आर्यों के उत्साह और सेवाकार्य को देखकर जल-भुन गये। अब तक वे भारत में बार-बार पड़नेवाले दुष्काल के परिणामस्वरूप अनाथ होनेवाले बच्चों को ईसाई बना लिया करते थे।
विदेशी ईसाई पादरियों ने लाला लाजपतराय सरीखे मूर्धन्य देश-सेवक व आर्यनेता पर भी अपहरण का दोष लगाया और अभियोग चलाया। सोना अग्नि में पड़कर कुन्दन बनता है। यह
विपदा लालाजी तथा आर्यसमाज के लिए एक ऐसी ही अग्निपरीक्षा थी।