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ग़जल

ग़जल

– डॉ. रामवीर

मस्रुफ़१ खुशामद में क्यों हैं

मुल्क के सब आला अदीब२।

जो रहे कभी रहबरे क़ौम

क्यों हुए हुकूमत के नक़ीब३।

इस बदली हुई फ़ज़ा में अब

हैरान उसूलों के अक़ीब४।

यह वक्त नहीं है ग़फ़लत का

हालात हुए बेहद महीब५।

नाम जम्हूरियत है लेकिन

काबिज हैं हाकिमों के असीब६।

लाचार रिआया के चेहरे

हो चुके हैं मानिंदे ज़बीब७।

इस दौरे मल्टिनेशनल में

रोजी को तरसता है ग़रीब।

कब छटेंगे गर्दिश के ग़ुबार

क ब जगेगा बेबस का नसीब।

१. व्यस्त २. साहित्यकार ३. चोबदार ४. अनुयायी ५. भयानक ६. सन्तान ७. मुनक्काड्ड

– ८६, सैक्टर- ४६, फरीदाबाद-१२१०१०