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एक निष्ठावान् सपूत महाशय मूलशंकर

एक निष्ठावान् सपूत महाशय मूलशंकर

ऋषिजी को गाली देने पर देश-विभाजन से पूर्व की बात है। शास्त्रार्थ महारथी पण्डित श्री शान्तिप्रकाशजी के जन्म-स्थान कोट छुट्टा ज़िला डेरागाजीखाँ में एक पौराणिक कथावाचक आया। वह अच्छा गायक था। उसने ग्राम की सनातनधर्म सभा से कहा कि मेरे साथ किसी तबला वादक का प्रबन्ध कर दीजिए। फिर कथा का आप लोगों को अधिक आनन्द आएगा। पौराणिक बन्धुओं ने कहा इस ग्राम में कोई तबला वादक नहीं मिलेगा। जब पौराणिक कथावाचक ने तबला वादक के लिए बहुत आग्रह किया तो सनातनधर्म सभा वालों ने कहा, ‘‘आर्यसमाज के एक निष्ठावान् सपूत महाशय मूलशंकरजी बड़े प्रतिष्ठित सज्जन हैं और इस ग्राम में उन्हें ही तबला बजाना आता है, हम उनसे विनती कर देखते हैं।’’

कुछ पौराणिक भाई आर्यसमाज के लिए समर्पित, सिद्धान्तनिष्ठ, श्री महाशय मूलशंकरजी के पास गये और अपनी समस्या रखी।

श्री मूलशंकरजी ने कहा, कोई बात नहीं, आपका सङ्कट टाल दूँगा। मैं अपने काम-काज समय पर निपटाकर आपकी कथा में आ जाया करूँगा। तबला बजा दूँगा।

कथा आरज़्भ हो गई। आर्यसमाज का सपूत उसमें जाकर तबला बजा देता। पौराणिक कथावाचक को पता ही था कि तबला बजानेवाले महाशय आर्यसमाजी हैं। पौराणिक लोगों को तब तक

रोटी-पचती नहीं, जब तक ऋषि दयानन्द को दस-बीस गालियाँ न दे लें। ये ईसा और मुहज़्मद की तो स्तुति कर सकते हैं, ऋषि दयानन्द की नहीं। श्री विवेकानन्द स्वामी ने ‘प्रभुदूत ईसा’ नाम जैसी एक पोथी लिखी है। पौराणिक आरती, ‘जय जगदीश हरे’ के रचयिता श्रद्धाराम फ़िलौरी ने ईसा की स्तुति में पैसे लेकर गीत रचे।

यह सब-कुछ ये लोग करेंगे, परन्तु ऋषि दयानन्द जी को गाली देना इनका स्वभाव बन चुका है।

उस पौराणिक कथावाचक ने, यह जानते हुए भी कि तबला बजानेवाले महाशयजी आर्यसमाज के सैनिक हैं, कथा करते-करते बिना किसी प्रसङ्ग के ऋषि दयानन्दजी महाराज को गालियाँ देनी

आरज़्भ कर दीं। किसी ने उन्हें रोका-टाका नहीं, महाशय मूलशंकरजी ने दो-तीन मिनट तक उनका विष-वमन सुना व सहन किया, जब वह नहीं रुका तो आपने तबला उठाकर उस कथावाचक के सिर पर यह कहते हुए दे मारा-‘‘मेरे होते हुए तुम महान् परोपकारी, वेदोद्धारक, निष्कलंक, बालब्रह्मचारी दयानन्द को गोलियाँ देते हो!’’

ऐसी गर्जना करते हुए ऋषिभक्त मूलशंकरजी पौराणिकों की सभा को चीरते हुए बाहर आ गये। सभा में सन्नाटा छा गया। सब जन उनके हावभाव को देखकर चकित रहे गये। ऐसे थे वे शूरवीर जो आर्यसमाज की नींव का पत्थर बनने का गौरव प्राप्त कर पाये।

इन महाशयजी ने दीर्घ आयु पाई। शास्त्रार्थमहारथी पण्डित शान्तिप्रकाशजी पर धर्म का गूढ़ा रङ्ग चढ़ानेवाले भी यही थे।