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असहिष्णुता का मानवीय रोगःराजेन्द्र जिज्ञासु

इन दिनों भारत में असहिष्णुता के मानवीय महारोग पर बड़ा विवाद हो रहा है। अनादि ईश्वर के अनादि ज्ञान वेद के एक प्रसिद्ध मन्त्र में ईश्वर से बल, तेज, ओज, मन्यु व सहनशीलता आदि सद्गुणों की प्रार्थना की गई है। यह मन्त्र महर्षि दयानन्द ने आर्याभिविनय आदि पुस्तकों में दिया है। इससे स्पष्ट है कि असहनशीलता का महारोग मानव जाति के लिए घातक है। हिन्दू हो, मुसलमान हो या ईसाई, सबको इस मानवीय महारोग के कारण को जानकर इसका निवारण करना चाहिये।

हजरत मुहमद को तीन खलीफा हत्यारों ने मार डाला। मारने वाले काफिर नहीं थे। नमाजी मुसलमानों ने उनकी जान ले ली। क्या यह असहनशीलता नहीं थी? इस इतिहास से मुसलमानों ने क्या सीखा? वीर रामचन्द्र व वीर मेघराज की हत्या करने वाले हिन्दू ही थे। उनका दोष दलितोद्धार था। पं. लेखराम जी का वध करने वाले इस कुकृत्य पर आज भी इतराते हैं। क्या यह असहिष्णुता को बढ़ावा देने वाला कु कृत्य नहीं था? महात्मा गाँधी ने महाशय राजपाल द्वारा प्रकाशित रंगीला रसूल पर विपरीत टिप्पणी करके असहिष्णुता को उत्तेजित किया या नहीं? काशी के राजा काशी शास्त्रार्थ के अध्यक्ष थे, परन्तु सभा विसर्जित राजा ने नहीं की। सभा विसर्जित करने वालों की कृपा से हुल्लड़ मचा। इस असहिष्णुता पर किसने पश्चात्ताप किया? चलो! जनूनी राजनेताओं को इतनी समझ तो आ गई कि असहिष्णुता एक महामारी है। गुरु अर्जुनदेव जी से वीर हकीकतराय व स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज तक सब असहिष्णुता के शिकार हुए।

देश को गुमराह करने की कोशिश न करें! -शिवदेव आर्य

 

आज समाज में सर्वत्र नये-नये विवादों को जन्म मिलता जा रहा है। देखा जाये तो जो-जो वाद आज प्रचारित व प्रसारित हो रहे हैं, वह सत्यता में वाद नहीं है, वह तो सामान्य ही रूप हैं किन्तु कुछ तथाकथित राजनीतिज्ञों ने अपने स्वार्थी भावों को जागृत कर समस्त भारतवर्ष को घिनौनी चादर से व्याप्त करने का अकरणीय कदम आगे बढ़ाया है।

संसार में प्रायः हम सत्यता को देख नहीं पाते  जिसको हम सत्य स्वीकार करते हैं, उसके पीछे का दृश्य कुछ भिन्न ही होता है। हमारे नेत्रों पर अज्ञानता का ऐसा उपनेत्र लगा हुआ होता है कि हम जिस भी सत्य वस्तु को देखना चाहे वह असत्यमय ही दिखायी देती है।

अभी हाल में ही असहिष्णुता नये अवतार में अवतरित हो रही है। इसके सम्पूर्ण परिदृश्य को देखने से पहले जान लें कि असहिष्णुता क्या है? उसको सही स्वीकार करें अथवा गलत? क्या एक देश को अपने देश की सीमाओं को सुरक्षित रखना चाहिए अथवा नहीं? क्या एक देश को अपने देश की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए सहिष्णु नहीं होना चाहिए? यदि हम सहिष्णु हो सकते हैं तो देश के सीमाबल की क्या आवश्यकता है? सब कुछ समाप्त कर देना चाहिए, सभी सैनिकों को आदेश दे देना चाहिए कि वे अपने-अपने घरों में जाकर आराम करें, क्योंकि हम सहिष्णु हैं।

सहिष्णुता का सीधा-सा अर्थ है कि सहनं शीलं यस्य सः सहिष्णुः, तस्य भावः सहिष्णुता’ अर्थात् सहन करने का शील जिसका हो उसे सहिष्णुता कहते हैं।

आज जो हम लोगों को असहिष्णु होने का पाठ पढ़ाया जा रहा है वह कुछ यूं है कि जबसे मोदी सरकार देश को उन्नति की राह पर ले जा रही है, वहाॅं विपक्षीदलों के पास विरोध करने का अथवा गलतियाॅं निकालने का कोई और रास्ता ही नहीं है। जब रास्ता न दिखा तब यूॅं कहना उचित समझा – वर्तमान सरकार हिन्दू समाज की पक्षधर है, और हिन्दूओं के कारण मुस्लिम व अल्पसंख्यकों का देश में रहना मुश्किल हो रहा है। इस मुश्किल को असहिष्णुता का नाम दे रहें हैं। वर्तमान सरकार का प्रत्येक कदम प्रत्येक भारतवासी के लिए समर्पित है न कि किसी हिन्दू-मुस्लिम के लिए ।

बस इसको राजनीतिक मुद्दा बनाया जा रहा है। इसके सिवाय और कुछ नहीं है। इसमें दोष मीडिया का भी है कि वह इस दृश्य को बार-बार दिखा कर जनता को भ्रमित कर रही है।

भारतवर्ष की आर्य संस्कृति विशाल उदार हृदयता वाली है,  जिसने सभी धर्मों-वर्णों-सम्प्रदायों अथवा समुदायों के साथ ही विभिन्न मतों के लोगों को स्वयं में समाहित किया। किन्तु बहुत आश्चर्य की बात है इस महान् संस्कृति को समस्त देशवासियों के प्रति सहिष्णु होने का पाठ पढ़ाया जा रहा है।

यह कैसा विरोधाभास है कि पिछले कुछ काल से यहाँ के युवाओं की पहली पसन्द ऐसे तीनों फिल्मीकलाकार हैं, जो अल्पसंख्यक है और अल्पसंख्यक होने के साथ-साथ मुसलमान भी हैं। सलमान खान, आमिर खान और शाहरुख खान ये तीनों ऐसे अभिनेता हैं, जिन्होंने अपने अभिनय से सम्पूर्ण भारतवर्ष के युवाओं को आकर्षित किया है। १२५ करोड़ की आबादी से व्याप्त देश के लोगों ने देवानन्द, राजकपूर, राजकुमार आदि अभिनेताओं का स्थान पर इन त्रिखानों को सहृदयता पूर्वक स्वीकार किया। यह ध्यातव्य है कि १२५ करोड़ की आबादी में हिन्दू बहुसंख्यक हैं। हम केवल मात्र वाचिकरूपेण समानता को स्वीकार नहीं करते अपितु मनसा-वाचा-कर्मणा होकर व्यवहार में व्यवहृत होते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो क्या आज की ये त्रिमूर्तियां विश्वपटल पर अपने आप को स्थापित कर पातीं? क्या आमिर खान ये बता सकते हैं कि उनके चाहने वाले कितने हिन्दू तथा कितने मुसलमान हैं?  किन्तु बड़े दुर्भाग्य की बात है कि आज कुछ अभिनेताओं, लेखकों, साहित्यकारों आदि को पिछले कुछ महीनों से देश में असहिष्णुता नजर आ रही है। दुःखों की अपार सीमा तो तब जा कर और बढ़ गयी जब ‘सत्यमेव जयते’ जैसे कार्यक्रम को चलाने वाले अभिनेता ने देश में असहिष्णुता का दृश्य है, ऐसा कहा। भारतीय संस्कृति अनेकता में एकता की परिचायिका है। आज आमिर खान ने जो ख्याति पायी है उसमें भारतवर्ष की सहिष्णुता का ही योगदान है।  भारत की जनसंख्या में ७९.८ प्रतिशत ;१॰१ करोड़द्ध हिन्दू निवास करते हैं, शायद आमिर को ज्ञात होना चाहिए कि इतना बड़ा अभिनेता बनाने में इनका भी कोई न कोई हाथ रहा होगा और आज वही अभिनेता देश के खुले मंच से देश की निन्दा कर रहा है। आमिर ने दो शादियाॅं की, वो भी दोनों हिन्दू स्त्रियों से पर फिर भी किसी ने कुछ नहीं कहा किन्तु आज उन्हें डर लग रहा है।

मुझे वो शब्द याद आ रहे हैं जब आमिर ने ‘सत्यमेव जयते’ में कहा था कि ‘ये बदमाश लोग देश को अपमानित कर रहे हैं। देश बड़ी-बड़ी इमारतों से नहीं बनता बल्कि इसमें रहने वाले सभ्य नागरिकों से बनता है’ पर आज देश उसी आवाज को अपनी आवाज बनाकर पूछना चाहता हूॅं कि-क्या यही सब कहकर देश का नाम रोशन करना चाहते हो? क्या स्वयं देश के जिम्मेदार नागरिक नहीं बनना चाहते? देश का अन्न खाकर देश को गलत बताते हुए शर्म नहीं आती? कल तक जो देश आमिर खान के लिए अतुल्य भारत हुआ करता था वह आज असहनशील कैसे लग रहा है?

शायद मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि अभिनय में कुछ कलाकार अपना सब कुछ भूलकर कलाकृति में ही डूब जाते हैं, जो वर्तमान दशा के स्वर्णिम कदमों को देखना ही भूल जाते हैं। उन्हें वर्तमान तथा बीते हुये पलों में कोई अन्तर नहीं दिखायी देता।

भारतवर्ष की सैकड़ों साल पुरानी सहिष्णुता की परम्परा को निशाना बनाया जा रहा है। असहिष्णुतावादियों ने ध्यान दिया होगा कि हमारे बुध्दिजीवियों का एक समुह दादरी हिंसा पर तो घडि़याली आंसू बहाता है, लेकिन देश के अन्य राज्यों में हो रही साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर वे चुप्पी साध लेते हैं। पश्चिम बंगाल, केरल और असम जैसे राज्यों में नित्य हिन्दुओं पर अत्याचार किए जाते हैं लेकिन इन पर समाज के तथाकथित बुध्दिजीवी कुछ भी बोलना पसन्द नहीं करते। क्या असहिष्णुतावादियों को कश्मीर घाटी से विस्थापित हो गए पण्डितों के दर्द की चीख नहीं सुनायी देती? क्या कभी उनके दर्द को जानने की कोशिश की? लगभग साढ़े तीन लाख कश्मीरी पण्डितों को अपने अस्तित्व को बचाने के लिए कश्मीर को छोड़ना पडा। वहाँ पर इस्लामिक चरमपंथी  कत्लेआम कर रहे हैं, पर तब भी असहिष्णुतावादी अभिनेताओं, साहित्यकारों ने कुछ भी नहीं बोला? जब १९८४ में सिक्ख दंगे हुए तब किसी ने क्यों पुरस्कार नहीं लौटाये? जब २००३ में कश्मीर के नादीमार्ग जिले के पुलवामा गाँव में ११ पुरुषों, ११ स्त्रियों तथा २ बच्चों को सामने खड़ाकरके गोली से उडा दिया गया, तब किसी को क्यों असहिष्णुता नजर नहीं आयी? देश का आवाम जानना चाहता है जब २००८ में २६/११ का दर्दनाक दृश्य सबके सामने नजर आया तब क्यों किसी ने सरकार पर अंगुली नहीं उठायी? कहाँ सो रहे थे? तब क्यों अपने पुरस्कार नहीं लौटाये?

आज जब भारत को दिशा देने वाला सही शासक मिला है, जो देश को प्रत्येक क्षेत्र में आगे ले जाना चाहता है तब ये लेखक, साहित्यकार, अभिनेता आदि असहिष्णुतावादी सरकारी सम्मान वापस करने का नाटक कर रहे हैं। ये लोग सम्मान को वापस करने और देश को छोड़ने की बातें करते हैं वे सब छद्म हैं। ये कहीं देश को छोड़कर जाने वाले नहीं, लेकिन राजनीतिक स्वार्थ से चलाये जा रहे अभियान को दृढ़ कर रहे हैं। इस अभियान के द्वारा सरकार को उसके सही पथ से पथभ्रष्ट किया जा रहा है।

कलम बेंचू साहित्यचोरों के साहित्य से यदि उनका स्वयं का हित सिध्द हो जाता है तो देश सहिष्णु है अन्यथा असहिष्णु। यह कैसा न्याय है? कैसा सत्य है?

देश में असहिष्णुता-असहिष्णुता कह कर लोगों को डराने की कोशिश की जा रही है। इस डर के कारण  बहुत-सी घटनाएॅं सामने आ रहीं हैं। २८ नवम्बर के दैनिक जागरण के तथ्यों से पुष्ट एक घटना में आमिर खान के बयान से पीडित होकर एक पति-पत्नि ने आपस में झगड़ा किया गया और पत्नी ने आत्महत्या भी कर ली।

प्रबुध्द पाठकगणों!

देश में असुरक्षा का माहौल है या इसे बनाया जा रहा है, ये तो आप देख ही रहे हैं। बार-बार लोगों को असुरक्षित होने का एहसास कराया जा रहा है, किन्तु सत्य यह है कि देश में शान्ति और सुरक्षा स्थापित है।

महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने कहा था कि ‘चित्र की नहीं चरित्र की पूजा करो।’ हे युवाओं! फिल्मों को देखकर इन देशद्रोही नपुंसक अभिनेताओं को चरित्रवान् समझने की भूल न करो। भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, चन्द्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, सरदार बल्लभ भाई पटेल आदि चरित्रनायकों को अपना अभिनेता स्वीकार करो अन्यथा असहिष्णुता के भवर में फस कर हम अपने पूर्वजों के रक्त को लजित कर बैठेंगे। सावधान रहें, सतर्क रहें। भारत की आन-बान-शान को ठेस न पहूॅंचे।