आनन्दमुनि जी का सौजन्य
सन् 1983 ई0 को आर्यसमाज काकड़वाड़ी में आर्यसमाज स्थापना दिवस मनाया गया। हमें भी आमन्त्रित किया गया। महात्मा श्री आनन्दमुनिजी ही प्रधान थे। वे स्वंय एक प्रभावशाली वक्ता
और विचारक थे। उन्हें सभा में बोलना ही था, परन्तु आपने थोड़ेसे समय में बहुत मार्मिक बातें कहते हुए यह कहा कि ‘‘आज हमारे मुज़्य वक्ता तो प्राध्यापक राजेन्द्रजी जिज्ञासु हैं। मैं अपना शेष समय उन्हीं को देता हूँ ताकि हम सबका अधिक लाभ हो।’’
यह ठीक है कि वहाँ कुछ सज्जनों ने सभा का संचालन करनेवालों की व्यवस्था में गड़बड़ी कर दी। हमें तो अपना समय ही पूरा न मिल पाया। आनन्दमुनिजी का बचा हुआ समय भी और लोग ले- गये, परन्तु आनन्दमुनिजी की पवित्र भावना हम सबके लिए अनुकरणीय है कि समाज के हित में नये-नये लोगों को प्रोत्साहन देना चाहिए।