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आप कैसे मिशनरी थे!

आप कैसे मिशनरी थे!

जब स्वामी स्वतन्त्रानन्दजी उपदेशक विद्यालय, लाहौर के आचार्य थे तो शनिवार के दिन कहीं बाहर किसी समाज में प्रचारार्थ चले जाया करते थे। एक दिन वे रेलवे की टिकटवाली खिड़की पर

जाकर खड़े हो गये और कुछ पैसे आगे करके बाबू से कहा- टिकट दीजिए।

उसने कहा-कहाँ का टिकट दूँ? पैसे 4-6 आने ही पास थे। आपने कहा-इतने पैसे में जहाँ की टिकट बनती हो बना दो। बाबू ने आश्चर्य से फिर पूछा आपको जाना कहाँ है? आपने कहा प्रचार

ही करना है, इतने पैसे में जहाँ भी पहुँच जाऊँगा, प्रचार कर लूँगा। ऐसी लगनवाले अद्वितीय मिशनरी थे हमारे पूज्य स्वामीजी।