प्रतीत होता है आर्यसमाज के कतिपय वैदिक विद्वानों ने विचारशील विद्वान् माननीय डॉ0 अम्बेडकरजी को बौद्धमत से वैदिक धर्म की ओर आकृष्ट करने का समय-समय पर प्रयास किया। इसी उद्देश्य से सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा के सहायक मन्त्री पं0 धर्मदेव सिद्धान्तालंकार विद्यावाचस्पतिजी (स्वामी धर्मानन्द विद्यामार्तण्ड-1901-1978) ने सन् 1952 (संवत्-2008) में ”बौद्धमत और वैदिक धर्म: तुलनात्मक अनुशीलन“ नामक 230 पृष्ठों का ग्रन्थ भी लिखा था।
इसके अतिरिक्त इसी उद्देश्य से अनेक बार उन्होंने माननीय डॉ0 अम्बेडकरजी से वार्तालाप भी किया था। 27 फरवरी 1954 की रात को ’आस्तिकवाद‘ विषय पर माननीय डॉ0 अम्बेडकरजी से उन्हीं के 1-हार्डिंग्ज ऐवेन्यू, नई दिल्ली के बंगले में पं0 धर्मदेवजी की बात हुई थी। डॉ0 अम्बेडकरजी से हुई बातचीत को उन्होंने ’सार्वदेशिक‘ जुलाई 1951 के अंक में भी प्रकाशित किया था। इससे पूर्व 12 मई 1950 को भी पं0 धर्मदेवजी की माननीय डॉ0 अम्बेडकरजी से बातचीत हुई थी। डॉ0 अम्बेडकरजी ने कलकत्ता की ’महाबोधि सोसाइटी‘ के अंग्रेजी मासिक पत्र ’महाबोधि‘ के अप्रैल-मई 1950 के अंक में ’बुद्धा एण्ड द फ्यूचर ऑफ हिज रिलीजन‘ नामक एक प्रदीर्घ लेख लिखा था। जिसे पढ़कर, पं0 धर्मदेवजी ने ’बौद्धमत और वैदिक धर्म: तुलनात्मक अनुशीलन‘ नामक ग्रन्थ लिखा था। अब यह दुर्लभ ग्रन्थ घुमक्कड़ धर्मी आचार्य नन्दकिशोरजी, इतिहासवेक्ता प्रा0 राजेन्द्रजी ’जिज्ञासु‘ वानप्रस्थी तथा प्रभाकरदेवजी आर्य के अनथक प्रयासों से सुलभ हो गया है।
डॉ0 डी0 आर0 दास (पं0 उत्तममुनि जी वानप्रस्थी) ने इस लेखक को बतलाया था कि-माननीय डॉ0 अम्बेडकरजी ने पं0 धर्मदेव जी से कहा था-एक माँ अपने बच्चे को जैसे समझाती है, उस वात्सल्य भाव से आपने मुझे वैदिक धर्म समझाने का प्रयास किया है, पर मैं क्या करूँ, हिन्दुओं की मानसिकता मुझे बदलती हुई प्रतीत नहीं होती। उनका स्वभाव कठमुल्लाओं की तरह प्रतिगामी हो गया है।