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नारी का परिवार में महत्त्व: डॉ. सुरेन्द्र कुमार

महर्षि मनु के अनुसार नारी का परिवार में महत्त्वपूर्ण स्थान है। महर्षि मनु परिवार में पत्नी को पति से भी अधिक महत्त्व देते हैं। वे पति-पत्नी को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से एक दूसरे को संतुष्ट रखने का दायित्व सौंपते हैं। इसी स्थिति में वे परिवार का निश्चित कल्याण मानते हैं। मनु के कुछ मन्तव्य इस प्रकार हैं-

(अ)   पति-पत्नी की पारस्परिक संतुष्टि से ही कुल का कल्याण संतुष्टो भार्यया भर्त्ता भर्त्रा भार्या तथैव च।

      यस्मिन्नेव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वै ध्रुवम्॥     (3.60)

    अर्थ-‘जिस कुल में भार्या=पत्नी के व्यवहार से पति संतुष्ट रहता है और पति के व्यवहार से पत्नी सन्तुष्ट रहती है, उस परिवार का निश्चय ही कल्याण होता है।’

(आ) नारी की प्रसन्नता में परिवार की प्रसन्नता निहित है-

   स्त्रियां तु रोचमानायां सर्वं तद् रोचते कुलम्।    

   तस्यां त्वरोचमानायां सर्वमेव न रोचते॥ (3.62)

   तस्मादेताः सदा पूज्याः भूषणाच्छादनाशनैः।  

   भूतिकामैर्नरैः नित्यं सत्कारेषूत्सवेषु च॥ (3.59)

   पितृभिः भ्रातृभिश्चैताः पतिभिर्देवरैस्तथा।  

   पूज्याः भूषयितव्याश्च बहुकल्याणभीप्सुभिः॥ (3.55)

    अर्थ-‘स्त्री के प्रसन्न रहने पर ही सारा कुल प्रसन्न रह सकता है। उसके अप्रसन्न रहने पर सारा परिवार प्रसन्नता-विहीन हो जाता है।’

‘इस कारण अपना और अपने परिवार का कल्याण चाहने वालों का कर्त्तव्य है कि वे सत्कार के अवसर पर और खुशियों के अवसर पर स्त्रियों का आभूषण, वस्त्र, खान-पान आदि के द्वारा सदा सत्कार व आदर किया करें।’

‘अपना और अपने परिवार का अधिक कल्याण चाहने वाले पिता आदि बड़ों, भाइयों, पति और देवरों का यह कर्त्तव्य है कि वे नारियों का सदा आदर करें और आभूषण, वस्त्र आदि द्वारा उनको सुशोभित रखें।’

(इ)     पत्नी के शोकग्रस्त होने से कुल नाश-

शोचन्ति जामयो यत्र विनशत्याशु तद्कुलम्।  

   न शोचन्ति तु यत्रैताः वर्धते तद्धि सर्वदा॥ (3.57)

   जामयो यानि गेहानि शपन्त्यप्रतिपूजिताः।  

   तानि कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्ततः॥ (3.58)

    अर्थ-‘पत्नियों का आदर क्यों चाहिए? क्योंकि जिन कुलों में अनादरपूर्ण व्यवहार से पत्नियां शोकग्रस्त रहती हैं, वह कुल शीघ्र नष्ट-भ्रष्ट हो जाता है। जहां शोकग्रस्त नहीं रहती अर्थात् प्रसन्न रहती हैं वह कुल उत्तरोत्तर उन्नति करता जाता है।’

‘अनादर के कारण शोकपीड़ित रहने वाली स्त्रियां जिन घरों को अभिशाप देती हैं अर्थात् कोसती हैं यह समझो कि वह परिवार इस प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे किसी घातक विपदा से लोग नष्ट हो जाते हैं। उस परिवार का चहुंमुखी पतन हो जाता है।’

(ई) पत्नी परिवार के सुख का आधार

       अपत्यं धर्मकार्याणि शुश्रूषारतिरुत्तमा।    

       दाराधीनस्तथा स्वर्गः पितृणामात्मनश्च ह॥       (9.28)

    अर्थ-‘सन्तानोत्पत्ति, धर्म कार्यों का अनुष्ठान, उत्तम सेवा, उत्तम रतिसुख, अपना तथा घर के बड़े-बुजुर्गों का सुख और सेवा, निश्चय ही ये सब पत्नी के अधीन हैं अर्थात् पत्नी से ही संभव हैं।

(उ) माता, बहन, पुत्री, भार्या से कलह न करें-

नारियों के समान की रक्षा करते हुए मनु ने परिवार में उनकी स्थिति को सुरक्षित एवं सयतापूर्ण बनाया है। उनके साथ मारपीट की बात तो दूर है, उनके साथ विवाद=कलह अथवा व्यर्थ की बहस भी करने का निषेध किया है-

    ‘‘माता पितृयां……भार्यया, दुहित्रा विवादं न समाचरेत्।’’       (4.180)

    अर्थ-‘माता, पिता, पत्नी पुत्री आदि के साथ कलह न करें। उन पर कोई आरोप न लगायें।’ ऐसा करने पर पुरुषों को दण्डित करने का आदेश मनु ने दिया है-

‘‘मातरं पितरं जायाम्……आक्षारयन् शतं दण्ड्यः।’’ (8.180)

    अर्थ-‘माता,पिता, पत्नी पर मिथ्या आरोप लगाने वालों को एक सौ पण का दण्ड दिया जाना चाहिए।’

(ऊ) माता, स्त्री आदि का त्याग नहीं किया जा सकता

समाज में स्वार्थी, लोभी मनुष्य भी रहते हैं। वे कभी-कभी स्वार्थ और लोभ से प्रेरित होकर माता, पिता, पत्नी आदि को छोड़ देते हैं। सेवा-संभाल न करनी पड़े, कभी इस कारण उनको अपने से पृथक् कर देते हैं। मनु का यह आदेश है कि माता आदि को किसी भी रूप में नहीं छोड़ा जा सकता। छोड़ने वाला व्यक्ति दण्डनीय होगा। उनके जीवन को सुरक्षित बनाने के लिए मनु का यह आदेश है-

माता न पिता न स्त्री न पुत्रस्त्यागमर्हति।

त्यजन्-अपतितान् एतान् राज्ञा दण्ड्यः शतानि षट्॥ (8.389)

    अर्थ-बिना गभीर अपराध के माता, पिता, पत्नी, पुत्र का त्याग नहीं किया जा सकता। इनको छोड़ने वाला व्यक्ति राजा द्वारा छह सौ पण के द्वारा दण्डनीय होगा और त्यागे हुए परिजनों को पुनः साथ रखकर उनकी सेवा-संभाल करनी होगी।

बुद्ध मत मे नारिया

download (2)अम्बेडकर वादी कहते है की नारियो का सम्मान सिर्फ बुद्ध मत ही करता है जबकि हिन्दू वैदिक मत मे नारियो पर अत्याचार होते थे …ओर सती प्रथा ओर बाल विवाह आदि अन्य कुप्रथाए हिन्दुओ द्वारा चलयी गयी….लेकिन कई वैदिक विद्वानों ,आर्य विद्वानों द्वारा इसका संतुष्ट जनक जवाब दिया जाता रहा है ,,,

जैसे सीता जी की अग्नि परीक्षा पर ,सती प्रथा पर(*इस पेज पर भी एक पोस्ट इसी से सम्बंधित है )
लेकिन दुर्भावना से ग्रसित लोग आछेप करते रहते है ।
ओर वो भी कुछ प्रक्षेप को उठा कर ये लोग आक्षेप करते है ,,जैसे की मनुस्म्रती पर भी …जबकि मनुस्म्रति मे लिखा है :- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।

अर्थात जहा नारियो की पूजा (सम्मान) होता है..वहा देवता निवास करते है..जहा नारियो का सम्मान नही होता वह सभी कर्म विफल होते है…लेकिन फिर भी ये लोग प्रक्षेप उठा कर यहाँ भी आरोप लगा देते है ..
इसी तरह ऋषि यागव्ल्क्य पर भी आरोप लगाते है । कि एक प्रश्न पूछने पर ॠषि ने गार्गी को मारने की धमकी दी..
खैर अब यहाँ इनके लगाये आरोपों की समीक्षा न कर,,,इनके प्रिय बुद्ध के विचार भी बता देना चाहता हु कि नारियो के बारे मे महात्मा बुद्ध के क्या विचार थे :-
 विनय पीतका के कुल्लावग्गा खंड के अनुसार गौतमबुद्ध ने कहा था की “नारी अशुध, भ्रष्ट और कामुक होती हैं.” ये बात
भी   साफ – साफ लिखी गई है की वो “शिक्षा ग्रहण” नही कर सकती..

अब बताये क्या बुद्ध मत नारियो के बारे मे जहर नही उगलता है।
(१) वेदों की कई मन्त्र द्रष्टा ऋषिय मे से ३० महिलाये है ..
 
(२) बुद्ध मत मे २८ बुद्ध है लेकिन एक भी बुद्ध स्त्री या शुद्र नही है,,जबकि पौराणिको मे देवताओ के साथ 
 साथ देविया भी है ,,
 
उपरोक्त सभी बातो से स्पष्ट है कि बुद्ध मत नारी जाती का सम्मान नही करता है ,,बस दिखावा करता है …