स्वामी विद्यानन्द सरस्वती – संक्षिप्त परिचय
स्वामी जी का जन्म उत्तर प्रदेश में समवत् 1977 में हरियाली तृतीया को हुआ। बाल्य काल से ही स्वामी जी का जीवन सदाचार एवं धार्मिक विचारों से ओतप्रोत था। वैराग्य की भावना प्रारमभ से ही थी। उसी के आधार पर स्वामी जी ने किशोर अवस्था में ही सन्त स्वामी जी श्री मंगलानन्द सरस्वती से तपोवन देहरादून में संन्यास दीक्षा ग्रहण की। जीवन में परिवर्तन लाने वाली एक अद्भुत घटना हुई कि एक धार्मिक व्यक्ति ने स्वामी जी को सत्यार्थ प्रकाश भेंट किया और स्वामी जी से प्रार्थना की कि आप इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें। भक्त की प्रार्थना स्वीकार कर, स्वामी जी ने सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा और पढ़ने के पश्चात् वैदिक धर्म के प्रचार का व्रत लिया। उसी शृंखला में अनेक धार्मिक स्थलों का भ्रमण किया और कठिन तपस्या करते रहे। सन् 1967 से गुरुकुल विद्यापीठ गदपुरी (बल्लभगढ़) फरीदाबाद में गुरुकुल की सेवा का कार्य किया। कुछ समय के बाद श्रीदयानन्द आश्रम खेड़ाखुर्द दिल्ली में व्यवस्थापक के रूप में कई वर्षों तक सेवा करते रहे। उसी अवधि में गो रक्षा आन्दोलन में बड़े उत्साह से भाग लिया और अपने भक्तों के साथ जेल यात्रा की। बाद में पुनः गुरुकुल की चहुंमुखी प्रगति के लिए प्रयत्न में लग गए। कुछ वर्षों तक स्वामी जी ने पूज्यपाद श्री स्व. योगेश्वरानन्द (ऋषिकेश) के चरणों में बैठकर योग साधना की। वर्तमान में स्वामी जी गुरुकुल विद्यापीठ गदपुरी के मुखयाधिष्ठाता पद पर प्रतिष्ठित हैं। भक्तों द्वारा प्रार्थना करने पर समाज में सामाजिक तथा नैतिक विचारों की स्थापना के लिये गुरुकुलों व महाविद्यालयों में संस्कृत पढ़ने वाले गरीब बच्चों की सहायता के लिए स्वामी जी ने स्वयं अपनी पवित्र एकत्रित धनराशि से ट्रस्ट की स्थापना की।
समप्रति कुछ वर्षों से स्वामी जी का स्नेह एवं सहयोग परोपकारिणी सभा को प्राप्त हो रहा है । सभा उनके उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घ आयुष्य की कामना करती है।