सोमपान से हमारा जीवन स्वादिष्ट होता है

ओउम
सोमपान से हमारा जीवन स्वादिष्ट होता है
डा अशोक आर्य
ऋगवेद का नवं मण्डल का ऋषि ” मधुच्छन्दा विश्वामित्र:” है ,जबकि इस वेड का प्रारम्भ भी इसी ऋषि के सूक्त से ही हुआ है । इस में सोम के रक्षण की कामना की गयी है । सोम से अभिप्राय शक्ति से होता है । अत: यश पुर का पूरा सूक्त सोम से ही सम्बन्ध रखते हुए सोम के विभिन्न कार्यों व शक्तियों का उल्लेख करते हुए सोम की रक्षा करने का आह्वान करता है । यह सूक्त बताता है कि सोम मधुर होता है तथा इस का संग्रह करने वाला भी सदा मधुर ही होता है , मधुर ही बनाता है । मधुर भाषी तथा मधुर व्यवहारी होने के कारण वह सदा दूसरों के हित की ही सोचता है अहित की कभी कामना नहीं करता । इस प्रकार की इच्छा रखते हुए वह इस सूक्त के प्रथम मन्त्रके माध्यम से प्रार्थना करता है कि सोम हमारे जीवन को मधुर, स्वादिष्ट तथा मदिष्ट बनाता है । इसलिए हम जितेन्द्रिय बनें तथा सोम को अपने शारीर में ही संभालें ,व्याप्त रखें ।इस सूक्त में कुल दस मन्त्र हैं , जिनके माध्यम से इसे प्रकाशित किया गया है । प्रथम मन्त्र में इस तथ्य को इस प्रकार प्रकात्किया गया है : –
1. स्वादिष्ठया मदिष्ठ्या पवस्व सोम धारया ।
इन्द्राय पातवे सूत : ।। ऋगवेद 9.1.1. ।।
2. सोम रोगनाशक ,ज्ञानवर्धक है तथा शारीर मेंलोह्कण व् रुधिर को बढ़ता है
रक्षोहा विशवचर्श्निरभी योनिमयोहतम ।
दृणउनां सधस्थमासदत ।। साम 9.1.2 ।।
3. रक्षित सोम हमें उदार्वृति वाला बनाता है जिससे हम सुपथ पर चलते हैं
वरिवोधातमो भव मन्हीश्ठो वृत्रहन्तम: ।
पर्षि सधो मघोनाम ।। साम 9.1.3 ।।
4. सोम्रक्षण से ज्ञान व पवित्रता से हम देव बनते हैं,शक्ति व यश मिलता है
अभ्यर्श महानां देवानां वीतिमन्धसा ।
अभि वाजमुत श्राव: ।। सैम 9.1.4 ।।
5. सोमारक्षण से सब कामनाएं पूर्ण होती है
त्वामच्छा चरामज्सि तदिदर्थं दिवे दिवे ।
इन्दो तवे न आशस:।। सोम 9.1.5 ।।
6. श्रद्धा से सोम पवित्र होकर हमें बल तथा स्फुर्तियुक्त शक्ति देता है
पुनाति ते परिस्त्रत्न सोमं सूर्यस्य दुहिता ।
वारेण शश्वता ताना ।। साम 9.1.6 ।।
7. बुद्धि इन्द्रियों से सोम रक्षण कर विषयों से उठ उचक ज्ञान पावें
तमोमन्वी: समर्य आ ग्रभ्नन्ति योषनो दश ।
स्वसार: पार्ये दिवि ।। साम 9.1.7 ।।
8. सोम त्रिधातु वारण मध्य है ,उन्नतिपथ पर चलने से रक्षण होता है
तमीं हिन्वन्त्यग्रुवो धमन्ति बाकुर्ण द्रतिम ।
त्रिधातु वारण मधु ।। साम 9.1.8 ।।
9. स्वाद्याय से सोमारक्षण तथा बुद्धि तीव्र होती है
अभी3ममध्न्या उत श्रीनंती धेनव: शिशुम ।
सोममिन्द्राय पातवे ।। साम 9.1.9 ।
10. हम जितेन्द्रिय व दानी बनें
अस्येदिन्द्रो मदेष्वा विश्वा वृत्रानी जिघ्रते ।
शूरो मघा च महते ।। साम 9.1.10 ।।
इस प्रकार इस सूक्त के कल दस के दस मन्त्रों में सोम रक्षण पर बल दिया है यह्सोम हमारी शक्ति को बढ़ा कर हमें मधुर भाषी व बलशाली बनाता है । मधुर भाषी व बलाशाली बनने से हम अत्यधिक महानता से धनोपार्जन कारते हैं । इसा धन से हमारी सब आवश्यकताएं पूर्ण होती हैं तथा हम शेष धन से दूसरों की सहायता करते है तथा खूब स्वाध्याय कर अपने ज्ञान को भी बढाते हैं । इससे हमारे धन एशवर्य के साथ ही साथ यस व् कीर्ति भी दूर दूर तक जाते हैं । हमारे सब रोग भी छुट जाते है तथा हम सदा स्वस्थ रहते हैं । स्वस्थ होने से हमारे कार्य की गति भी बढाती है ।
उपार हमने मूल मन्त्र दिए हैं । इनकी अलग अलग व्याख्या नहीं कर पाए । केवल भाव ही दिया है ।

डा अशोक आर्य
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