जिज्ञासा –
- इसी माह की पत्रिका के पेज 22 पर ‘‘आर्य अनार्य की बात’’ विषय में शिवलिंग वस्तुतः यज्ञ वेदी से उठती हुई अग्नि-शिखा का द्योतक है। स्वयं ऋग्वेद में तेईस देवियों के नाम मिलते हैं। अतः शिव और देवी को अवैदिक कहना झूँठ और बेईमानी है।
जिज्ञासा यह है कि शिव, शिवलिंग और देवी शबद के यहाँ कहने का क्या तात्पर्य है एवं ऋग्वेद में देवी शबद का प्रयोग किस तात्पर्य या प्रयोजन को सिद्ध करता है। यह पौराणिक मान्यताओं के देवी शबद का प्रयोजन तो नहीं है। कष्ट के लिये क्षमा।
– मुकुट बिहारी आर्य, 13/772 मालवीय नगर, जयपुर (राज.)
समाधान-
(ख) शिव और देवी के अर्थ महर्षि दयानन्द ने किये हैं। शिव का अर्थ जगत्पिता परमात्मा परक करते हुए लिखते हैं- ‘‘शिवु कल्याणे- इस धातु से शिव शबद सिद्ध होता है।……..जो कल्याणस्वरूप और कल्याण का करने हारा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम शिव है।’’
-स.प्र.1।
देवी का अर्थ भी ईश्वर परक करते हुए लिखते हैं-‘दिवु’ अर्थात् जिसके क्रीड़ा आदि अर्थ हैं, उससे देवी शबद सिद्ध होता है…….सबका प्रकाशक, सबको आनन्द देने वाला।
– पञ्चमहायज्ञविधि
शिव और देवी इन दोनों शबदों के अर्थ ईश्वर-परक हैं, प्रकरणानुरूप किन्हीं और के वाचक भी हो सकते हैं। वेद में जो ये शबद आये हैं, इनका अर्थ सती और पार्वती के पति, गणेश तथा कार्तिकेय के पिता, भस्मधारी, नरमुण्डमालाधारी, वृषारोही, सर्पकण्ठ, नटवर, नृत्यप्रिय, नन्दा वेश्यागामी, अनुसूया धर्मनाशक, हस्तेलिंगधृक् महादेव नामक पौराणिक व्यक्ति और चारभुजा आदि से युक्त देवी कदापि नहीं है।
शिव और देवी-इनका अर्थ जो ऊपर लिखा, इस अर्थ के अनुसार तो ये वैदिक ही कहायेंगे, किन्तु इसके विपरीत किसी व्यक्ति वा स्त्री विशेष अर्थ में तो अवैदिक ही कहे जायेंगे। और ये कहकर कि शिवलिंग यज्ञवेदी से उठती हुई अग्नि-शिखा का द्योतक है, शिवलिंग को सिद्ध करना अपनी कोरी कल्पना के अतिरिक्त कुछ भी नहीं अर्थात् ये मिथ्या कल्पनामात्र है। यदि ऐसा है तो इस विषय में कोई आर्ष-प्रमाण प्रस्तुत करने की कृपा करें। आजकल कुछ विद्वान् इन पौराणिक गपोड़ों को अपनी कल्पना के आधार पर सही सिद्ध करने में लगे हैं। कोई गणेश को सही सिद्ध कर रहा है तो कोई विष्णु के चार हाथों की व्याखया कर उसको उचित सिद्ध करने में लगा है। ऐसा करने से पौराणिक मान्यताओं को बढ़ावा ही मिलना है न कि पाखण्ड न्यून होने को।
श्रीमान् मनसाराम जी वैदिक तोप की पुस्तक ‘‘पौराणिक पोल प्रकाश’’ में इस कथा के विषय में विस्तार से लिखा है। इस कथा को जानकर कोई कैसे कह सकता है कि शिवलिंग अग्नि-शिखा का द्योतक है। यह तो शिव-पार्वती की अश्लील क्रियाओं के अतिरिक्त कुछ नहीं है। इसलिए आर्यजन व्यर्थ की कल्पनाओं पर विश्वास न कर यथार्थ को स्वीकार कर अपने जीवन को उत्तम बनावें।