सालिग्राम ने तो कुछ नहीं कहा
कविरत्न ‘प्रकाश’ जी तथा उनके भाई बाल्यकाल में अपने पौराणिक पिताजी के साथ मन्दिर गये। इनके भाई ने एक गोलमटोल पत्थर का सालिग्राम खेलने के लिए अण्टी में बाँध लिया। कविजी ने पिता जी को बता दिया कि पन्ना भैया ने गोली खेलने के लिए सालिग्राम उठाया है। पिताजी ने दो-तीन थह्रश्वपड़ दे मारे और डाँटडपट भी की। पन्नाजी बोले, ‘‘सालिग्राम ने तो मुझे कुछ नहीं कहा और आप वैसे ही मुझे डाँट रहे हैं।’’ पिता यह उज़र पाकर चुप हो गये।
अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च नैव च |
अजापुत्रं बलिं दद्याद्देवो दुर्बलघातक: ||
arya jee ye bata sakte hai ye shloka kounse scripture se hai ??
ये संस्कृत सुभाषितानि से ली गयी है जितना मुझे मालुम है उस आधार पर | इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दे सकता मैं |