संस्कृत का विकास कैसे हो?

संस्कृत का विकास कैसे हो?

शिवदेव आर्य

गुरुकुल पौन्धा, देहरादून

मो.—8810005096

संस्कृतभाषा की आजीविका के क्षेत्रों में अध्ययन-अध्यापन एवं प्रशासनिक सेवाओं के अतिरिक्त सामाजिक एवं आध्यात्मिक तथा शारीरिक क्षेत्रों में भी पर्याप्त अवसर हैं।

            भारतीय संस्कृति का ज्ञान संस्कृत के विना असम्भव है। (भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा)  मानवजीवन के सर्वांगीण विकास के लिए विज्ञान, कला एवं अध्यात्मिक ज्ञान अत्यन्त आवश्यक हैंइन तीनों का समन्वय केन्द्र केवल संस्कृत भाषा है। संस्कृतभाषा सभी भारतीय भाषाओं की जननी है। यही भाषा विभिन्नता में एकता रूपी सूत्र (धागा) है।

            संस्कृतभाषा को वर्तमान परिवेश में सामाजिक धारा में बनाए रखने के लिए अथवा लोकप्रिय बनाए रखने के लिए कुछ उपायों का वर्णन अधोलिखितानुसार द्रष्टव्य है-

१. संस्कृतपाठ्यक्रम एवं पाठ्यपुस्तकों में परिवर्तन-

Ø संस्कृतभाषी विद्यार्थियों में प्रायः सामान्यज्ञान (Basic Knowledge) का अभाव दिखाई देता है।

Ø संस्कृतवाङ्मय में निहित ज्ञान-विज्ञान का तथ्यपरक अध्ययन का अभाव।

Ø मध्यमादि (10+2) स्तर पर विज्ञान एवं गणितादि के पर्याप्त अध्ययन का अभाव।

Ø संस्कृताध्ययन में तकनीकी का नितान्त अभाव।

Ø संस्कृताध्यायी छात्रों में योग्यता छात्रवृत्ति (Merit scholarship) की पर्याप्त एवं सुचारु व्यवस्था का अभाव।

Ø संस्कृत की लोकप्रियता हेतु शास्त्रों के कण्ठस्थीकरण, उच्चारणादि दक्षता की पर्याप्त प्रतियोगिताओं का विविधस्तरों पर अभाव।

Ø कौशल विकास (Skill Development) का भी संस्कृत विषय में समायोजन कर व्यवसायी अभाव को तिरोहित करना चाहिए।

२. प्रशासनिक सेवा (IAS, PCS) परीक्षाओं के अध्यय केन्द्र-

            देश की प्रशासनिक सेवाओं में संस्कृत विषय अत्यन्त ही सरल सामान्यतया माना जाता है लेकिन व्यवस्थित अध्ययन के विना छात्रों की सफलता का अनुपात प्राय निम्नतर दृष्टिगोचर होता है। अतः व्यवस्थित अध्ययन केन्द्रों की सुलभता का अभाव भी अपसारित करना चाहिए।

३. व्यवसायिक प्रशिक्षण केन्द्रों का अभाव-

            संस्कृत भाषा में व्यावसायिक केन्द्रों का अत्यन्त अभाव है यथा कर्मकाण्डी, सम्पादक,अनुवादक, समाज- सुधारक, कमेण्टेटर दूरर्दशन एवं आकाशवाणी आदि प्रसारकों हेतु व्यवसायों के व्यवस्थित केन्द्रों का होना अत्यन्त आवश्यक है।

४. संस्कृतचलचित्रों (सिनेमादि) केन्द्रों का उपस्थापन-

            लोकविलासी संस्कृत फिल्मों, नाटकों का अधिकाधिक प्रसारण तभी सुलभ होगा, जब इनके व्यवस्थित प्रशिक्षण केन्द्र होगें। संस्कृतभाषा को प्रिन्ट एवं इलैक्ट्रांनिक मीडिया में अधिकाधिक समायोजित करना चाहिए।

५. संस्कृत संस्थाओं को बढावा देना –

            यद्यपि सरकार द्वारा  संस्कृत संस्थाओं को नाम मात्र अनुदान उपलब्ध करवाया जाता है परमपि उसमें बढ़ोत्तरी आवश्यक है तभी विशुध्द संस्कृत वैज्ञानिक, इन्जीनियर, चिकित्सक आदि समाज को उपलब्ध हो पाएंगे।


3 thoughts on “संस्कृत का विकास कैसे हो?”

  1. Samskrita bhasha 12 class tak compulsory hona chahiye. Arya samaj mein ab samskrita bhajanon geeton ko priority deni chahiye. Yajhavan ke baad samskrita mein praarthanaa phir samskrita mein hajan ka karyakram rakein.

  2. satyaprakash beegoo ji
    इसके अलावा और भी बहुत उपाय है जी | अभी मुझे बहुत ख़ुशी हुयी की मैंने संस्कृत में हिंदी फिल्म के गाने सुने | इस तरह संस्कृत में अच्छे भजन शोर्ट फिल्म जो सामाजिक स्तर के विषय पर बनाये जाए | सब कोशिश करें अपने परिवार में कम से कम १ घंटे संस्कृत में बात करें आप देखो फिर संस्कृत का विकास कैसे होता है | अफ़सोस कोई इन सब बातो पर कोई ध्यान ही नहीं देता जी |
    धन्यवाद

  3. jaytu sanskritam jaytu bhartam .nmo nmha shriman lekha se margdarshan santoshprade raha .. mai phd student hnu shiksha sashtr me (6 rajynam patheypustkaanm vishay. bhavtm pramarsha apikshetyy

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