समय पूर्व मृत्यु
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डा.अशोक आर्य
समय पूर्व मृत्यु
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डा.अशोक आर्य
नाम पुस्तक : समय पूर्व मृत्यु ?
लेखक : डा. अशोक आर्य वैदिक प्रवक्ता
१०४ शिप्रा अपार्टमेन्ट ,कौशाम्बी २०१०१० गाजियाबाद
चलभाष ०९७१८५२८०६८ (mobile 09718528068 )
प्रथम संस्करण वर्ष २०१७
सर्वाधिकार लेखक के आधीन
मूल्य : ३०.०० रुपये
मूल्य : सैंकड़ा २००० .०० रूपये ( डाक व्यय अतिरिक्त )
– प्रकाशक –
समय पूर्व मृत्यु
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लेखक के दो शब्द
आदि ज्ञान
वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है | इस ज्ञान का प्रकाश परमपिता परमात्मा ने प्राणी मात्र के कल्याण के लिए सृष्टि के आरम्भिक महा ज्ञानी ,बुद्धिमान विचारक चार ऋषियों के मनों में संहिता के रूप में प्रकट किया | इन ऋषियों के नाम थे अग्नि , आदित्य अंगीरा और वायु | इन चार ऋषियों ने इस ज्ञान को मौखिक रूप से अन्य लोगों को दिया , इस लिए इसे श्रुति कहा गया | सृष्टि के आरम्भिक मानव होने के कारण इन की बुद्धि अत्यधिक तीव्र थी , इस लिए इस ज्ञान को मौखिक रूप से सुन कर ही उस समय के मानव को सब क्षण भंगुर में ही स्मरण हो जाता था | इसलिए इस के लेखन की आवश्यकता उस काल में कभी अनुभव नहीं हुई |
कल्याण का मार्ग
परमपिता परमात्मा का दिया हुआ आदि ज्ञान होने के कारण उस समय के प्राणी ने अपने कल्याण के लिए इस का खूब प्रयोग किया, लाभ उठाया | इस ज्ञान
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के आधार पर ही अपना जीवन चलाया | इस सब का ही परिणाम था कि उस काल का मानव सब प्रकार से धर्मात्मा , सत्यवक्ता, दूसरों का सहायक थातथा किसी प्रकार का छल कपट उसके ह्रदय में नहीं था | इस कारण उस समय के लोग सब दूसरों को अपने जैसा ही मानते थे तथा जो सुख , सुविधाएं स्वयं को चाहियें , वह सब सुख सुविधायें अन्यों को देने व दिलाने में सहयोग करते थे | परिनाम स्वरूप यह जगत एक परिवार के सामान बना हुआ था |
जहाँ सब एक दुसरे के सहयोगी हों , जहाँ सब दूसरों को सुखी देखने वाले हों , वहां निश्चित रूप से ही स्वर्गिक आनंद होता है और कुछ इस प्रकार की ही अवस्था थी उस समय के समाज की | इस कारण उस समय के समाज को स्वर्ग कहा जाता था | यह सर्वकल्याण की भावना से कार्य करने के कारण कल्याण कारक था | सब लोग सुखी रहते हुए नित्य नए आविष्कार करते हुए समाज को निरंतर आगे बढ़ा रहे थे |
बुद्धि का क्षय
समय बितता गया | धीरे धीरे मानव में स्वार्थ के भाव जागृत होने लगे | इस स्वार्थ भाव के कारण छल , कपट , कलह, क्लेश , लड़ाई झगड़ा आदि होने लगा और इस कारण बुद्धि का भी ह्रास होने लगा तथा जन संख्या में भी धीरे धीरे वृद्धि होने लगी थी | इस सब के कारण अब लोग ज्ञान को विस्मृत होने लगे थे | इस लिए इस के लिखित स्वरूप कि आवश्यकता अनुभव हुई | परिणाम स्वरूप वेद का यह ईश्वरीय ज्ञान पुस्तक रूप में हमारे हाथों में आया |
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आशा की किरण
समय बीतता गया | समय के बितने के साथ ही साथ मानव की सोच में भी परिवर्तन आने लगा | अब मानव में स्वार्थ अत्यधिक घर कर गया | परिणाम यह हुआ कि मानव वेद के इस सत्य , वेद के इस कल्याणकारी मार्ग से हटकर भौतिक सुख सुविधाओं को ही अपना सब कुछ समझने लगा | इस सब का ही परिणाम यह हुआ कि मानव अनेक समुदायों में बंट गया तथा यह समुदाय अपने अपने मन से अपने अपने नियम बनाने लगे | इस प्रकार वेद ज्ञान से दूर होने लगे तथा अपने मन माने नियम बनाने लगे | के स्थान पर बहुत से गुरु आ गए और नित्य आ रहे हैं | अत: अब वेद का स्थान गुरुडम ने लिया तथा इन गुरुओं के उपदेश ही इन लोगों के धर्म ग्रन्थ बन गए | इस प्रकार ईश्वरीय ज्ञान वेद को आधुनिक लोग भूल गए | इस का यह परिणाम हुआ कि हमारा यह समाज प्राणिमात्र के लिए कल्याणकरी ज्ञान वेद से दूर होता चला गया तथा रुढियों . अन्ध विशवास आदि अनेक कुरीतियों ने यहाँ अपना आधिपत्य जमा लिया | इन कुरीतियों के कारण आपसी झगड़े बढ़ते चले गए और शनै: शनै: मानव मृत्यु की और बढ़ने लगा |
वेदोद्धार का कार्य
स्वामी दयानंद सरस्वती ने समाज का जब नाडी परीक्षण किया तो उनहोंने पाया कि वेद को भूलने के कारण समाज में संकट निरंतर बढ़ रहा है | इस विश्व के लोग अनेक समुदायों में , अनेक देशों में तथा अनेक मत पंथों में बंट कर लड़ाई झगड़े करते हुए अनेक प्रकार कि कुरीतियों के गुलाम बन चुके हैं | इन सब से मुक्ति का एक ही मार्ग है वेद की ओर लौटना | अत: स्वामी जी ने समग्र विश्व को
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वेद कि और लोट कर वेद की शिक्षाओं के अनुसार अपने जीवन को चलाने का उपदेश दिया | जिस मानव ने स्वामी जी के इस आह्वान को स्वीकार किया , उसने वेद के उपदेशों को अपने जीवन में लाने का प्रयास किया | इस प्रयास में वह जितना सफल हुआ , उस सीमा तक वह सुखी हो गया | जब उसे वेद के ज्ञान के अनुसार अपना जीवन चलाने से सुख का आभास हो गया तो उसने वेद को ही अपने जीवन का आवश्यक अंग बनाने का प्रयास आरम्भ कर दिया | इससे उसके तथा उसके परिवार में सुखों की वर्षा होने लगी | इस प्रकार स्वामी दयानंद जी के आह्वान से वेद का ज्ञान पुन: इस जगत में लौटने लगा |
मेरा विचार
मेरा यह सोचना है कि स्वामी जी ने जो विचार वेद प्रचार का प्राणी मात्र के कल्याण के लिए आर्य समाज को दिया , आज एक मात्र वह विचार ही प्राणी मात्र का कल्याण कर रहा है | इस विचार के विस्तार के लिए वेद का स्वाध्याय , वेद का पढ़ना पढ़ाना तथा वेद के अनुसार अपने जीवन को बनाना आज की एक महती आवश्यकता है | इस सब को मध्यदृष्टि रखते हुए विगत कुछ वर्षों से मैंने प्रतिदिन वेद के एक मन्त्र की विशद व्याख्या ( प्राप्त भाष्यों की सहायता से ) का एक क्रम आरम्भ किया था | मैंने प्रतिदिन एक मन्त्र कि व्याख्या करते हुए , इस व्याख्यात्मक लेख को फेसबुक पर डालना आरम्भ किया तथा इसे आर्य जगत से सम्बंधित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं को भेजना भी आरम्भ किया | फेसबुक के उपयोग कर्ताओं तथा पत्रिकाओं के पाठकों ने इसे पसंद करते हुए मुझे भरपूर प्रोत्साहन दिया | उन सबके दिए प्रोत्साहन के परिणाम स्वरूप ही आज मैंने इसे एक पुस्तक के रूप में लाने का विचार किया और समय पूर्व मृत्यु ? नामक यह पुस्तक आपके हाथों में देते हुए अपार
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प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ |
उत्तम व्याख्याता बनें
वेद मन्र् तथा इनकी व्याख्या आर्य समाज की वेदी सहित अन्यत्र कहीं भी व्याख्यान में प्रयोग किये जा सकते हैं | इस प्रकार के व्याख्यानों का आज के मानव , इसे कंठस्थ कर किसी भी सत्संग में व्याख्यान के रूप में लोगों को दें अथवा इसे सत्संग में पढ़ कर सुनाएं तो आप के साथ ही साथ न केवल अन्य लोग ही लाभान्वित होंगी अपितु इससे एक उतम व्याख्याता के रूप में आप कि ख्याति भी दूर दूर तक जावेगी | मुझे प्रसन्नता होगी यदि आप इससे कुछ भी लाभ उठाने में सफल हो सकें |
आभार
मेरे इस प्रयास पूर्ण लेखन का पाठकों को अत्यधिक लाभ होगा, एसा मेरा मानना है | यदि इसके पाठन से कुछ पाठक अपना जीवन सुधार पाए और मृत्यु पर विजय पाने में सफल हुए तो मैं अपने लेखन के इस प्रयास को सफल समझुंगा |
इस के लेखन में जो कुछ भी लाभकारी तथा हितकारी है , वह सब परमपिता परमात्मा का दिया है तथा जो कुछ भी त्रुटियाँ हैं , उनके लिए मैं स्वयं उतरदायी हूँ | आप मेरी त्रुटियों से मुझे अवगत करेंगे ताकि मैं उन पर विचार कर , यदि वह ग्राह्य हुईं तो आगामी संस्करण में उन्हें दूर कर सकूंगा |
अंत में मैं उन सब वेद भाष्यकारों का आभारी हूँ , जिनके वेद भाष्यों से मुझे इस पुस्तक को तैयार करने में सहायता मिली | इस पुस्तक के मुद्रक ,प्रकाशक , मशीन चालक तथा जिल्दबंदी कर उतम कलेवर में इस पुस्तक को परोसने वाले सब
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महानुभावों का मैं ह्रदय से आभारी हूँ , जिनके अथक तप से यह पुस्तक आप के हाथों तक आ पाई | आप का सहयोग इसी प्रकार बना रहा तो इस प्रकार की ही और पुस्तकें भी आप को दे सकूंगा |
इस के साथ ही मैं पुन: परमपिता परमात्मा का आभार प्रकट करता हूँ , जिनकी प्रेरणा ही मेरी इस कृति का स्रोत बनी है | आप सब पाठकों तथा उन सब का , जिनका प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में इस पुस्तक के लेखन व प्रकाशन में मुझे किसी प्रकार का भी सहयोग मिला है , ह्रदय से आभारी हूँ |
कौशाम्बी , गाजियाबाद डा. अशोक आर्य वैदिक प्रवक्ता
दिनांक १ दिसंबर २०१६ १०४ शिप्रा अपार्टमेन्ट ,कौशाम्बी २०१०१० गाजियाबाद
mobile 09718528068 चलभाष ०९७१८५२८०६८
OUM..
ARYAVAR, NAMASTE..
VAIDIK JYAAN BADHAANE HETU AAPNE JO KIYAA HAI, OH ATYUTTAM HAI…AAP KI JITNI PRASAMSHAA KAREN TO BHI KAM HAI…
AAP KI YAH JO PUSHTAK AANE WALI HAI, USSE AAPKI AUR BHI PRASAMSHAA HIGI AUR HUM JAISE LOG BHI ISSE BAHOOT LAABH UTHAA SAKENGE…
MAI QATAR ME HOON, MUJH TAK YAH PUSHTAK KAISE PRAAPT HOGI? ISKI JAANKAARI MUJHE DEN…AABHAARI RAHUNGAA…
DHANYAVAAD…
AAPKAA SHUBHA CHINTAK- PREM ARYA..DOHA-QATAR SE..
MOB: +97477045116
Namste
aapko Soft copy pahunchane ka prayas karenge
Dhanywad
OUM..
ARYAVAR, NAMASTE…
AASWAASHAN KE LIYA DHANYAVAAD…
PRATIKSHAA RAHEGI..
AAP KAA SHUBHA CHINTAK- PREM