रैफरी ने आऊट कर दिया
मेरठ के आर्यसमाजी वक्ता श्री पण्डित धर्मपालजी ने एक बार सुनाया कि जब 1955 ई0 में श्री स्वामी स्वतन्त्रानन्दजी महाराज रुग्ण थे तो उनके देहत्याग से पूर्व एक आर्यविद्वान् पं0 प्रकाशवीर जी शास्त्री श्रीमहाराज के स्वास्थ्य का पता करने गये। स्वामीजी से स्वास्थ्य के विषय में पूछा तो आपने कहा-‘‘छोड़िए इस बात को, सब ठीक ही है। आप अपने सामाजिक समाचार सुनाएँ।’’ यह कहकर स्वामीजी ने चर्चा का विषय पलट दिया।
उस विद्वान् महानुभाव ने पुनः एक बार स्वामीजी के स्वास्थ्य की चर्चा चला दी तो स्वामीजी ने बड़ी गज़्भीरता से, परन्तु अपने सहज स्वभाव से कहा-‘‘स्वास्थ्य की कोई बात नहीं, खिलाड़ी
के रूप में खेल के मैदान में उतरे थे। ज़ेलते रहे, खूब खेले।
अब तो रैफ़री ने आऊट कर दिया।’’
मुनि के इस वाज़्य को सुनकर उस विद्वान् ने कहा-‘‘स्वामीजी आप तो कभी आऊट नहीं हुए। अब भी ठीक हो जाएँगे।’’
स्वामीजी महाराज ने कहा-‘‘परन्तु अब तो आऊट हो गये। रैफ़री की व्यवस्था मिल गई है।’’
मुनियों, गुणियों के जप-तप की सफलता की कसौटी की यही वेला होती है। वेदवेज़ा, आजन्म ब्रह्मचारी, योगी, स्वतन्त्रानन्द का वाज़्य, ‘‘खिलाड़ी के रूप में खेल के मैदान में उतरे थे, खेलते रहे, खूब खेले। अब तो रैफ़री ने आऊट कर दिया’’, मनन करने योग्य है। कौन साधक होगा जिसे यतिराज की इस सिद्धि पर अभिमान न होगा। यह हम सबके लिए स्पर्धा का विषय है। ऋषिवर दयानन्द के अमर वाज़्य, ‘‘प्रभु! तेरी इच्छा पूर्ण हो, पूर्ण हो’’, का रूपान्तर ही तो है। आचार्य के आदर्श को शिष्य ने जीवन में खूब उतारा।