आवागमन पर पं. लेखराम जी के अनूठे तर्कः- अमरोहा से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक आर्य सामाजिक -पत्र का एक अंक नजीबाबाद गुरुकुल में एक आर्य बन्धु ने दिखाया। उसमें पुनर्जन्म पर एक लेख का शीर्षक पढ़कर ऐसा लगा कि मेरे किसी प्रेमी ने मेरे पुनर्जन्म विषयक (परोपकारी में छपे) तर्कों पर कुछ प्रश्न उठाये होंगे, परन्तु बात इससे उलटी ही निकली। विचारशील लेखक ने परोपकारी में दिये गये मेरे विचारों व तर्कों को उजागर करते हुए जोरदार लेख दिया। उस आर्य भाई को व सपादक जी को धन्यवाद!
उस लेख को पढ़ने से पूर्व ही मेरे मन में ‘तड़प-झड़प’ में पं. लेखराम जी का पुनर्जन्म विषयक मौलिक चिन्तन व प्रबल युक्तियाँ देने का निश्चय था। हमारे मान्य आचार्य सत्यजित् जी तथा आदरणीय आचार्य सोमदेव जी पाठकों का शंका-समाधान करते हुए बड़े सुन्दर प्रमाण व तर्क देते रहते हैं। उनका परिश्रम वन्दनीय है। उनसे भी विनती की है कि हमें अपने पुराने दार्शनिक विद्वानों यथा- पं. लेखराम जी, पं. गुरुदत्त जी, पूज्य दर्शनानन्द जी, श्रद्धेय देहलवी जी के तर्क उनका नामोल्लेख करके देने चाहिये।
पं. लेखराम जी का पुनर्जन्म विषयक ग्रन्थ पढ़कर अनेक सुपठित हिन्दू युवक, जो ईसाइयों, मुसलमानों व ब्राह्म समाजियों के घातक प्रचार से भ्रमित तथा धर्मच्युत हो रहे थे, निष्ठावान् आर्य बन गये। किस-किसका नाम यहाँ दूँ? डी.ए.वी. के पूर्व प्राचार्य बशी रामरत्न, महात्मा विष्णुदास जी लताला वाले (स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी को आर्य बनाने वाले) ला. देवीचन्द जी एम. ए. इत्यादि सब पं. लेखराम जी को पढ़-सुनकर आर्य समाज से जुड़े।
- 1. पं. लेखराम जी का तर्क है कि पुराने भवन ढहते जाते हैं, नये-नये भवनों का निर्माण होता रहता है। सब नये-नये भवन इसी धरती पर विद्यमान पहले के ईंट, पत्थर, मिट्टी व गारे से ही बनाये जाते हैं। नई सामग्री कहीं से नहीं आती।
- 2. सब नदियाँ जो बह रही हैं, उनका जल कहाँ से आता है? सब जानते हैं, यह वही जल है, जो पहले सागर में गया था। वर्षा का जल, नदियों का जल कहीं परलोक से, अभाव से तो आता नहीं।
- 3. जितने पेड़, पौधे, वृक्ष उग रहे हैं, फल-फूल रहे हैं, ये सब धरती पर विद्यमान पहले की सामग्री से ही उपजते व फूलते-फलते हैं। अभाव से भाव यहाँ भी नहीं होता और न ही परलोक से इनके बीज आदि आते हैं।
- 4. सब प्राणियों के शरीर धरती पर विद्यमान सामग्री से (अन्न, जल आदि) से निर्मित व विकसित होते हैं। कहीं से नई-नई सामग्री नहीं आती। जब लाखों-करोड़ों शरीर उसी सामग्री से बनते हैं, जिससे पहले के शरीर बनते रहे हैं, इससे स्पष्ट है कि इस धरा पर नये-नये जीव भी उत्पन्न नहीं होते। जीवात्मायें भी वही हैं, जो इससे पूर्व किसी शरीर का परित्याग कर चुकी हैं। जैसे प्रकृति अनादि है, नई पैदा नहीं होती है, इसी प्रकार परमात्मा नये-नये जीव गढ़-गढ़ कर इस धरती पर नहीं भेजता। जैसे प्रकृति नई-नई नहीं पैदा होती, वैसे ही जीवात्मा भी वही-वही आते-जाते रहते हैं।
Logic’s on rebirth by Pandit lekrham Ji