पुस्तक परिचय
पुस्तक का नाम– आनन्द रस धारा
लेखक– प्रा. राजेन्द्र ‘जिज्ञासु’
प्रकाशक– विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द,
नई सड़क, दिल्ली।
पृष्ठ– 144 मूल्य- 90 रु. मात्र
महर्षि दयानन्द के विचारों से देशी विदेशी बहुत से प्रबुद्ध जन प्रभावित होकर आर्यसमाज से जुड़ें। जुड़कर मानव जाति के लिए कार्य किया। महर्षि के जीवन काल व उनके परलोक गमन के बाद भी ऐसे अनेक ों महान् पुण्यात्मा जन ऋषि मिशन से जुड़े कि उन पुण्यात्माओं ने वेद व देश राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने में अपने को धन्य समझा। धर्मध्वजी श्रीयुत् पण्डित लेखराम, महात्मा मुन्शीराम (स्वामी श्रद्धानन्द), पं. गुरुदत्त विद्यार्थी, पं चमुपति जी, लाला लाजपत राय, भाई परमानन्द आदि ऐसे अनोखे रत्न महर्षि के विचारों से आर्य समाज को मिले जिन्होंने विश्वभर में आर्य समाज का नाम प्रकाशित किया।
आर्य समाज ने विद्वान् अध्यापक, योग्य लेखक, सपादक, प्रबुद्ध प्रचारक, वक्ता, पुरोहित, सामाजिक कार्यकर्त्ता इस देश को दिये हैं, केवल इन्हीं लोगों को ही नहीं अपितु योग्य साधु संन्यासी भी आर्य समाज ने दिये हैं। स्वामी श्रद्धानन्द, स्वामी दर्शनानन्द, स्वामी स्वतन्त्रानन्द, महात्मा नारायण स्वामी, महात्मा आनन्द स्वामी जैसे योग्य संन्यासी हुए जिन्होंने अपनी वाणी व पुरुषार्थ से आर्यों में नई उमंग भरी।
इन सभी महापुरुषों की जीवनियाँ-लेखन के धनी, आर्यसमाज के ऊपर प्रहार कर्त्ताओं के लिए सदा अपनी लेखनी उत्तर देने में उद्यत आर्यसमाज के इतिहास की सर्वाधिक जानकारी रखने वाले, विश्व के सर्वाधिक जीवन चरित लिखने वाले मान्यवर प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी हैं। इन जीवनियों में महात्मा आनन्द स्वामी की जीवनी नहीं लिखी गई थी, अब वह काम भी मान्य जिज्ञासु जी ने ‘‘आनन्द रसधारा’’ पुस्तक लिखकर पूरा कर दिया है।
इस पुस्तक का प्रकाशन सबसे अधिक आर्य साहित्य देने वाला, लगभग नबे (90)वर्षों से आर्य साहित्य का प्रकाशन कर समाज को दिशा देने वाले प्रकाशक ‘‘विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द’’ ने किया है। पुस्तक के प्रकाशक मान्य अजयकुमार जी ने प्रकाशकीय बड़े भाव से लिखा है। इस जीवन चरित के विषय में अपने भाव व्यक्त करते हुए लिखा-‘‘देर से आर्य जनता आपके एक सुन्दर प्रेरक जीवन चरित की माँग करती चली आ रही थी। हर्ष का विषय है कि विश्व में सर्वाधिक जीवनियाँ लिखने का कीर्तिमान् बना चुके हमारे लेखक श्री राजन्द्र जिज्ञासु ने इस चुभते अभाव की कमी पूरी करते हुए ‘आनन्द रसधारा’ नाम से उनका एक पठनीय जीवन चरित आपके हाथों में पहुँचा दिया है। यह पुस्तक आपने एक अलग शैली से लिखी है।’’
महात्मा आनन्द स्वामी जी के जीवन चरित को लिखने का विचार लेखकके मन में स्वामी जी के जीवन काल से ही था, किन्तु यह कार्य लेखक के जीवन की साँझ में हुआ। इस विषय में लेखक अपने प्राक्कथन में लिखते हैं-‘‘जीवन की साँझ का विचार करके मैं कई महीनों से महात्मा जी पर एक पठनीय पुस्तक लिखने का निर्णय ले चुका था…….।’’ महात्मा जी की विशेषता को बताते हुए लेखक लिखते हैं-‘‘महात्मा आनन्द स्वामी वेदभक्त, ऋषिभक्त, प्राुाक्त, देशभक्त, जातिभक्त और लोकसेवक पहले थे और नेता बाद में थे। नेता कोई भी हो उसके जीवन के साथ छोटा-मोटा कोई न कोई विवाद जुड़ जाता है। ‘आनन्द रस धारा’ में विवादों से बचकर ऐसी सामग्री दी है जिससे अपने पराये सबको ऊर्जा प्राप्त होगी। पाठकों में नवजीवन का संचार होगा। मनु महाराज ने धर्म के दश लक्षण बताए हैं। ऋषि दयानन्द की धर्म की परिभाषा पढ़िये। योगदर्शन में वर्णित यम-नियमों व आठ अंगों पर विचार करके-इन्हें सामने रखकर ‘आनन्द रस धारा’ को कसौटी पर कसिये फिर आपको पूरा लाभ मिलेगा।’’
इस पुस्तक को लेखक ने आठ भागों में विभक्त किया है। पहला भाग-बाल्यकाल से यौवन की चौखट तक जीवन झाँकी। दूसरा भाग-अष्टांग योग की कसौटी पर। तीसरा भाग-जीवन के कुछ विशेष प्रसंग। चौथा भाग-हैदराबाद सत्याग्रह के नर नायक। पाँचवाँ भाग-संन्यास दीक्षा। छठा भाग-हैदराबाद में एक बड़ा ऑपरेशन। सातवाँ भाग-एक निराधार कथन-मिथ्या सोच। आठवाँ भाग-महाप्रयाण-वे चलते-चलते चल बसे।
आठ भागों में विभक्त यह पुस्तक अपने अन्दर महात्मा जी के अनेक जीवन प्रसंगों को संजोये है। पाठक इस आनन्द रस धारा को पढ़कर अवश्य ही आनन्द में सराबोर होंगे। सुन्दर आवरण से सुसज्जित, उत्तम कागज व छपाई से युक्त यह पुस्तक पाठकों को बहुत प्रेरणा देने वाली सिद्ध होगी। ऐसी आशा है।
– आचार्य सोमदेव, ऋषि उद्यान, पुष्कर मार्ग, अजमेर।