प्रभु का इकलौता पुत्र न रहा
पूज्यपाद श्री स्वामी सत्यप्रकाशजी पूर्वी अफ्रीका की वेद-प्रचार यात्रा पर गये। एक दिन एक पादरी ने आकर कुछ धर्मवार्ता आरज़्भ की। स्वामीजी ने कहा कि जो बातें आपमें और हममें एक हैं उनका निर्णय करके उनको अपनाएँ और जो आपको अथवा हमें मान्य न हों, उनको छोड़ दें। इसी में मानवजाति का हित है। पादरी ने कहा ठीक है।
स्वामी जी ने कहा-‘‘हमारा सिद्धान्त यह है कि ईश्वर एक है।’’
पादरी महोदय ने कहा-‘‘हम भी इससे सहमत हैं।’’ तब स्वामीजी ने कहा-‘‘इसे कागज़ पर लिज़ लो।’’
फिर स्वामीजी ने कहा-‘‘मैं, आप व हम सब लोग उसी एक ईश्वर की सन्तान हैं। वह हमारा पिता है।’’
श्री पादरीजी बोले, ‘‘ठीक है।’’
श्री स्वामीजी ने कहा-‘‘इसे भी कागज़ पर लिख दो।’’
श्री पादरीजी ने लिख दिया। फिर स्वामीजी ने कहा-जब हम एक प्रभु की सन्तानें हैं तो नोट करो, उसका कोई इकलौता पुत्र नहीं है, यह एक मिथ्या कल्पना है। पादरी महाशय चुप हो गये।