।।१।।
द्विज वेद पढ़ें, सुविचार बढ़ें, बल पाय चढें़, सब ऊपर को,
अविरुद्ध रहें, ऋजु पन्थ गहें, परिवार कहें, वसुधा-भर को,
धु्रव धर्म धरें, पर दु:ख हरें, तन त्याग तरें, भव-सागर को,
दिन फेर पिता, वरदे सविता, करदे कविता, कवि शंकर को।
।।२।।
विदुषी उपजें, क्षमता न तजें, व्रत धार भजें, सुकृती वर को,
सधवा सुधरें, विधवा उबरें, सकलंक करें, न किसी घर को,
दुहिता न बिकें, कुटनी न टिकें, कुलबोर छिकें, तरसें दर को,
दिन फेर पिता, वरदे सविता, करदे कविता, कवि शंकर को।
।।३।।
नृपनीति जगे, न अनीति ठगे, भ्रम-भूत लगे, न प्रजाधर को,
झगड़े न मचें, खल-खर्ब लचें, मद से न रचें, भट संगर को,
सुरभी न कटें, न अनाज घटें, सुख-भोग डटें, डपटें डर को,
दिन फेर पिता, वरदे सविता, करदे कविता, कवि शंकर को।
।।४।।
महिमा उमड़े, लघुता न लड़े, जड़ता जकड़े, न चराचर को,
शठता सटके, मुदिता मटके, प्रतिभा भटके न समादर को,
विकसे विमला, शुभ कर्म-कला, पकड़े कमला, श्रम के कर को,
दिन फेर पिता, वरदे सविता, करदे कविता, कवि शंकर को।
।।५।।
मत-जाल जलें, छलिया न छलें, कुल फूल फलें, तज मत्सर को,
अघ दम्भ दबें, न प्रपंच फबें, गुरु मान नबें, न निरक्षर को,
सुमरें जप से, निखरें तप से, सुर-पादप से, तुझ अक्षर को,
दिन फेर पिता, वरदे सविता, करदे कविता, कवि शंकर को।
एक और अंतरा है। यदि किसी को ज्ञात हो तो कृपया बताएँ।