प्रभु हमारे पालक हैं तथा हमें सब कुछ देते हैं
(सम्पूर्ण सूक्त)
डा. अशोक आर्य
ऋग्वेद के प्रथम मण्ड्ल के इस सप्तम सूक्त में बताया गया है कि सूर्य तथा मेघादि उस पिता की ही विभूतियां हैं । पिता ही हमें विजय़ी करते हैं , वेद ज्ञान का ओढना देता हैं, अनन्त दान करते हैं,हम प्रभु की ( उस गोपाल की ) गोएं हैं , जो हमारा पालन करने वाले हैं तथा हमें आवश्यक धन प्राप्त करते हैं ।
प्रभु गुणगान से मन शान्त,बुद्धि तीव्र व यज्ञात्मक
कर्म से शक्ति मिलती है
डा. अशोक आर्य
प्रभु के गुणगान करने वाले मानव का मन शान्त होता है । उसकी बुद्धि दीप्त हो जाती है , तेज हो जाती है। उसके हाथ यज्ञ जैसे उत्तम कर्म करते हैं , जिससे उसके अन्दर शक्ति का उदय होता है । इस मन्त्र में यह बात इस प्रकार प्रकट की गई है : –
इन्द्रमिद्गाथिनोबृहदिन्द्रमर्केभिरर्किणः।
इन्द्रंवाणीरनूषत॥ ऋ01.7.1
इस मन्त्र में तीन बातों पर बल देते हुए बताया गया है कि :-
१. साम गायन से शांति कि प्राप्ति
उत्तम स्वर में गाए जाने योग्य जो वेद है , उसका नाम साम वेद है । एसे वेद के मन्त्रों से , जो गायन करने के योग्य है , के मन्त्रों को गायन करते हुए उस पिता के उदगाता , उस प्रभु के भक्त , उस पिता के गुणों का गायन करने वाले लोग, निश्चित रुप से ही शत्रुओं को नष्ट करने वाले , उनका विदारण करने वाले , उन्हें क्लेष देने वाले , शत्रुओं को रुलाने वाले ,सब प्रकार के एश्वर्यों के स्वामी होने के कारण सब प्रकार के एश्वर्यों से सम्पन्न उस परम पिता परमात्मा का भरपूरर स्तवन करते हैं , उसका अत्यधिक मन से कीर्तन करते हैं तथा उसके गुणों का , उसके यश का गुणगान करते हैं ।
यह भक्त उस पिता का गुण गान सामवेद के मन्त्रों से गायन ही हुए करते हैं अथवा साम गायन करते हैं , क्योंकि साम कहते हैं शान्ति को । इसलिए साम के मन्त्रों का गायन करने से वह भी साम से युक्त हो जाते हैं अर्थात शान्ति से युक्त हो जाते हैं । उन के सब क्लेष दूर होने से उन का मन सब प्रकार के क्लेषों से छूट कर शान्त हो जाता है । साम गायन वास्तव में शान्त करने वाला ही होता है ।
२. ऋग्वेद ऋग = विज्ञान का साधक
इतना ही नहीं हम ऋग्वेद के मन्त्रों से भी उस पिता के गुणों का गायन करते हैं । हमारा वह प्रभु ऋग्वेद के मन्त्रों में भी बसा हुआ है । इस कारण उसे ऋग्वेद रुप भी कहा जाता है । एसे ऋग्वेद रुप मन्त्रों से अर्थात ऋग्वेद के मन्त्रों से युक्त प्रभु के भक्त , प्रभु के होता, प्रभु के यश का गायन करने वाले , उसका स्तवन , उसका कीर्तन करने वाले , ऋग्वेद के ही मन्त्रों से उस ज्ञान रुप , उस ज्ञान के भण्डार तथा परम एश्वर्यों के स्वामी उस इन्द्र का , उस पिता का , उस पूज्य प्रभु का अत्यधिक स्तवन करते हैं , उसके निकट जाकर उसका गायन करते हैं ।
जब यह भक्तगण ऋग्वेद की इन ऋचाओं के द्वारा परम पिता का स्तवन करते हैं , प्रभु के गुणों का गायन करते हैं तो इन ऋचाओं का भाव भी उन के अन्दर आ जाता है । इन ऋचाओं का भाव क्या है ? इन ऋचाओं के मन्त्रों में ऋक का विज्ञान भरा रहता है । इस कारण प्रभु के एसे भक्त के मस्तिष्क में भी ऋग – विज्ञान भरने वाले यह मन्त्र बनते हैं । भाव यह कि इन के गायन से ऋग – विज्ञान इन के मस्तिष्क में आकर इन्हें प्रकशित करता है तथा यह लोग इस ज्ञान से प्रकाशित हो जाते हैं ।
३. यजुर्वेद के स्वाध्याय से सबल
उन्नति की ओर उठने वालों को , उपर उठने वालों को अर्ध्व्यु कहा जाता है । एसे अर्ध्व्यु लोग , सब प्रकार से बल से युक्त कर्मों को करने वाले , वह सब कर्म जो बल से होते हैं , उन्हें करने के प्रणेता प्रभु की ही त्रितीय अर्थ की वाणी अर्थात यजुर्वेद के मन्त्रों से उस पिता की स्तुति करते हैं , उसकी निकटता प्राप्त करते हैं , उसके गुणों का गायन करते हैं ।
यजुर्वेद के मन्त्रों रुपि वाणियों से , यजुर्वेद के मन्त्रों के गायन से उस पिता का गुणगान ,यशोगान , कीर्तन , भजन व स्तवन करते हुए पिता के यह भक्तजन अधर्वु , उपर उठने वाले लोग , उन्नति पथ पर बढने वाले लोग अपने हाथों से यज्ञ आदि , परोपकार से युक्त उत्तम कर्म करते हैं । यह सदा ही एसे उत्तम कर्म करते है , जिससे दूसरों का भी हित हो । इस प्रकार के कर्म इन भक्तों को सबल करते हैं , सब प्रकार के बलों से युक्त कर , इन्हें बलवान बनाते हैं ।
डा. अशोक आर्य