राजेन्द्र जिज्ञासु
परोपकारिणी सभा का शोध व प्रकाशन :- परोपकारिणी सभा अपने कर्त्तव्य पालन में निरन्तर आगे बढ़ रही है। जितनी आशायें मिशन का भविष्य लगाये हुए है, उसमें न्यूनता का रह जाना स्वाभाविक ही है। यह तथ्य तो इस घड़ी सबके सामने है कि जितने ऊँचे, कर्मठ व लोकप्रिय विद्वान् व सहयोगी युवक ब्रह्मचारी महात्मा इस सभा के पास हैं, इतने इस समय किसी भी संस्था के पास नहीं है। बारह मास और पूरा वर्ष प्रचार के लिए देश भर से माँग बनी रहती है।
वैदिक धर्म पर कहीं भी वार हो झट से आर्य जनता सभा प्रधान डॉ. धर्मवीर जी को पुकारने लगती है। विधर्मी जब वार-प्रहार करते हैं, तब हर मोर्चे पर परोपकारी ने विरोधियों से टक्कर ली। भारत सरकार ने पं. श्रद्धाराम पर पुस्तक छपवा कर ऋषि पर निराधार घृणित वार किये। पं. रामचन्द्र जी आर्य के झकझोरने पर भी कोई शोध प्रेमी और संस्था उत्तर देने को आगे न निकली। परोपकारिणी सभा ने ‘इतिहास की साक्षी’ पुस्तक छपवाकर नकद उत्तर दे दिया।
श्री लक्ष्मीचन्द्र जी आर्य मेरठ जैसे अनुभवी वृद्ध ने पूछा, ‘‘पं. श्रद्धाराम का ऋषि के नाम लिखा पत्र कहाँ है? मिला कहाँ से और कैसे मिला?’’
उन्हें बताया गया कि अजमेर आकर मूल देख लें। उसका फोटो छपवा दिया है। श्रीमान् विरजानन्द जी व डॉ. धर्मवीर जी के पुरुषार्थ से यह पत्र मिला है। इतिहास की साक्षी के अकाट्य प्रमाणों का कोई प्रतिवाद नहीं कर सका।
अब उ.प्र. की राजधानी से सभा को सूचना मिली है कि मिर्जाई अपने चैनल से पं. लेखराम व आर्यसमाज के विरुद्ध विष वमन कर रहे हैं। सभा उनकी भी बोलती बन्द करे। इस सेवक से भी सपर्क किया गया है। आर्य समाज क्या करता है? यह भी देखें। कौन आगे आता है? कोई नहीं बोलेगा, तो सभा अवश्य युक्ति, तर्क व प्रमाणों से उत्तर देगी। वैसे एक ग्रन्थ इसी विषय में छपने को तैयार है। प्रतीक्षा करें।