प्रतिदिन प्रभु के चरणों में बैठ कर उसकी प्रार्थना करें

ओउम
प्रतिदिन प्रभु के चरणों में बैठ कर उसकी प्रार्थना करें
डा. अशोक आर्य
जिस परमपिता परमात्मा की असीम कृपा से हम इस संसार में आये हैं | उस प्रभु ने हमें ज्ञान का सागर दिया है | इस में हम डुबकी लगाकर प्रतिदिन मोती चुनने का प्रयास करते रहते हैं | इस प्रभु की ही अपार कृपा से हमें अनेक प्रकार की सुख सुविधाएं प्राप्त की हैं | जिस प्रभु ने हमें अपार धन – दौलत, सुख – शान्ति तथा बुद्धि दी है ,हमारा भी कर्तव्य है कि हम प्रतिदिन उस प्रभु के समीप बैठ कर उसकी प्रार्थना करें | यजुर्वेद के अध्याय ३ मन्त्र २२ में भी यही श्हिक्षा दी गयी है | मन्त्र इस प्रकार है : –
मन्त्र : –

उप त्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयं |
नमो भरन्त एमसि || यजुर्वेद ३.२२ ||
शब्दार्थ : –
(अग्ने) हे अग्नि स्वरूप परमात्मा ( वयं) हम ( दिवे दिवे ) प्रतिदिन (दोषावस्त:) रात्री और दिन में (धिया) बुद्धि से (नाम: ) नमस्ते (भरन्त:) करते हुए ( त्वा) तेरे (उप) समीप (एमसि) आते हैं |
भावार्थ : –

हे अग्निरूप परमपिता परमात्मा ! हम प्रतिदिन प्रात: सायं अत्यंत श्रद्धा पूर्वक बुद्धि से आपको अभिवादन अर्थात नमस्ते करते हुए आपके समीप आवें |
मानव प्रतिक्षण उन्नति देखना चाहता है | वह जिस भी क्षेत्र में कार्यशील है, उस क्षेत्र में प्रति- दिन उन्नति चाहता है | वह आगे बढ़ने की अभिलाषा रखता है | वह दूसरों को अपना प्रतिद्वंद्वी समझता है तथा उसकी यह इच्छा रहती है कि वह अन्य सब लोगों से आगे निकल जावे | इस निमित उसे अत्यधिक परिश्रम की , पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है | अनेक बार केवल मेहनत, केवल पुरुषार्थ ही काम नहीं आता | असफलता की अवस्था में वह अपने आप को धिक्कारता है | उस में हीन भावना आ जाती है | इस हीन भावना के वशीभूत अनेक बार तो वह अपने आप को समाप्त तक करने की ठान लेता है | इस अवसर पर उसे आवश्यकता होती है किसी सहायक की, जो उसे इस संकट काल में दिलासा देकर पुन: परिश्रम की प्रेरणा दे |

आज का मानव इस बात को जानते हुए भी भूल गया है की जिस प्रभु ने हमें जन्म दिया है , वह प्रभु बड़ा महान है | उस की इच्छा के बिना तो किसी वृक्ष का पता भी नहीं हिल सकता | मानव को यह जानना होगा कि जिस प्रकार हम अपने जन्मदाता माता – पिता तथा बुद्धि के भंडार गुरुजनों के समीप बैठ कर ज्ञान को प्राप्त करते है , दिशा – निर्देश लेते हैं , ठीक उस प्रकार ही उस प्रभु के समीप बैठ कर उससे भी मार्ग – दर्शन व निर्देशन प्राप्त करें | प्रतिदिन प्रात: व सायं ईश्वर के समीप बैठकर उसकी उपासना करें | यह ही मानव की उन्नति का सर्वश्रेष्ठ साधन है | अत: जिस प्रकार माता पिता व गुरुजन के समीप बैठ कर हमें अपार आनंद मिलता है, स्नेह व ज्ञान मिलता है, ठीक उस प्रकार ही जब हम प्रभु के समीप अपना आसन लगा कर , उसके समीप बैठकर प्रतिदिन दोनों काल उसे स्मरण करेंगे तो वह प्रभु भी दयावान है | हमारे पर अवश्य ही दया करेगा, हमे अवश्य ही दिशा – निर्देश देगा , | इस प्रकार उस प्रभु के समीप बैठ कर उस की उपासना पूर्वक स्तुति करने से हमारा मनोबल बढेगा, आत्मिक शक्ति प्राप्त होगी , आत्मिक शक्ति मिलने से हम ज्ञान विज्ञान को बड़ी सरलता से प्राप्त करने में सफल होंगे | जब हम सब प्रकार के ज्ञान विज्ञान के अधिपति हो जावेंगे तो हमें अत्यंत हर्षोल्लास अर्थात आनंद मिलेगा |
इस संसार में आनंद का स्रोत यदि कोई है तो वह एक मात्र परमात्मा ही है | वह परमात्मा ही आनंद को देने वाला है , वह प्रभु ही सब प्रकार के ज्ञान का देने हारा है | इतना ही नहीं वह परमपिता परमात्मा ही हमें शक्ति देने वाला है | अत- अपने जीवन को सुखद बनाने के लिए , सब प्रकार की सम्पति, ज्ञान ,विज्ञान , मनोबल, आत्मिक शक्ति व आनंद को पाने के लिए हमें उस प्रभु की गोदी को पाना आवश्यक हो जाता है | उस परमात्मा के समीप बैठना आवश्यक हो जाता है | परमात्मा के समीप बैठने की भी एक विधि हमारे ऋषियों ने हमें दी है | इस विधि को संध्या कहा गया है | अत: यदि हम अपने जीवन में मधुरता भरना चाहते हैं , अपने जीवन को सुखमय बनाना चाहते हैं , अपने जीवन को आनंदित रखना चाहते है , आत्मिक शक्ति से भरपूर रखना चाहते हैं तथा प्रत्येक प्रकार के ज्ञान विज्ञान के स्वामी बन उन्नति पथ पर आगे बढ़ना चाहते हैं तो प्रतिदिन प्रात: व सायं संध्या काल में उस परम पिता परमात्मा की साधाना करने के लिए उस प्रभु के पास अपना आसन लगायें, उसके समीप बैठ कर उस से प्रार्थना करें तो हम अपने कार्य में सिद्ध हस्त हो कर अनेक सफलताएं पा कर उन्नति को प्राप्त होंगे | अत: प्रतिदिन दोनों काल ईश्वर के समीप बैठ कर उस का आराधन आवश्यक है |

डा. अशोक आर्य

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *