पण्डित लेखरामजी की लगन देखिए
स्वामी श्रद्धानन्दजी महाराज ने बड़े परिश्रम से अपनी लौह लेखनी से धर्मवीर लेखरामजी का एक प्रेरणाप्रद जीवन-चरित्र लिखा और भी कई जीवन-चरित्र अन्य विद्वानों ने लिखे। इन पंक्तियों के
लेखक ने भी ‘रक्तसाक्षी पण्डित लेखराम’ नाम से एक खोजपूर्ण जीवन-चरित्र लिखा। पण्डित जी के अब तक छपे हुए जीवन चरित्रों में उनके जीवन की कई महज़्वपूर्ण घटनाएँ छपने से रह गईं
हैं। अभी गत वर्ष उनके पावन चरित्र का एक नया पहलू हमारे सामने आया।
पण्डितजी ‘आर्यगज़ट’ के सज़्पादक थे तो वे बड़ी मार्मिक भाषा में अपनी सज़्पादकीय टिपणियाँ लिखा करते थे। आर्यसमाज के प्रचार-प्रसार के समाचार पाकर बड़ी प्रेरणाप्रद टिपणी देकर
पाठकों में नवीन उत्साह का सञ्चार कर देते थे। एक बार पण्डित आर्यमुनिजी पंजाब की उज़र-पश्चिमी सीमा के किसी दूरस्थ स्थान पर प्रचार करने गये। वहाँ उनके प्रचार से वैदिक धर्म की अच्छी छाप लोगों पर पड़ी। वहाँ प्रचार करके वे भेरा में पधारे। वहाँ भी पण्डित आर्यमुनि की विद्वज़ा ने वैदिक धर्म की महज़ा का सिक्का लोगों के हृदयों पर जमाया। पण्डित लेखरामजी
को यह समाचार प्रकाशनार्थ पहुँचा तो आपने पण्डित आर्यमुनि की विद्वज़ा व कार्य की प्रशंसा करते हुए लिखा कि ‘‘प्रशंसित पण्डितजी जेहलम आदि से भेरा पहुँचे। मार्ग में कितने ही और ऐसे महज़्वपूर्ण स्थान व नगर हैं जहाँ सद्धर्म के प्रकाश की बहुत आवश्यकता है। जिज्ञासु जन पवित्र वेद के सद्ज्ञान से लाभान्वित होना चाहते हैं। यदि हमारे माननीय पण्डितजी वहाँ भी प्रचार करके आते तो कितना अच्छा होता।’’
देखा! अपने पूज्य विद्वान् के लिए पण्डित लेखराम के हृदय में
कितनी श्रद्धा है और वैदिक धर्म के प्रचार के लिए कितनी तड़प है।
एक जगह से दूसरी जगह पर जानेवाले प्रत्येक आर्य से धर्म दीवाना
लेखराम यह अपेक्षा करता है कि वह मार्ग में सब स्थानों पर
धर्मध्वजा फहराता जाए।