ईश्वरोपासना की वैदिक रीति (अष्टांगयोग)

॥ओ३म्॥ महर्षि पतञ्जलि द्वारा वर्णित अष्टाङ्गयोग के आठ अङ्गब्रह्मरूपी सर्वोच्च सानु-शिखर पर चढ़ने के लिए आठ सीढ़ियाँ हैं।उनके नाम हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। यहां प्रत्येक का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया जाता है- १– यम पाँच हैं- (१)अहिंसा- अहिंसा का अर्थ केवल किसी की हत्या न करना ही नहीं अपितु मन,वचन और कर्म से किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार कष्ट न देना,किसी को हानि न पहुंचाना और किसी के प्रति वैरभाव न रखना अहिंसा है।उपासक को चाहिए कि किसी से वैर न रखे,सबसे प्रेम करे।उसकी आँखों में सबके लिए स्नेह और वाणी में माधुर्य हो।पशुओं को मारकर अथवा मरवाकर उनके मांस से अपने उदर को भरनेवाले तीन काल में भी योगी नहीं बन … Continue reading ईश्वरोपासना की वैदिक रीति (अष्टांगयोग)

निराकार ईश्वर से साकार जगत की उत्पत्ति कैसे

शंका- ईश्वर निराकार है तो ईश्वर द्वारा साकार जगत की रचना कैसे हुई? समाधान- ईश्वर निराकार अर्थात आकार रहित है। इसमें कोई शंका नहीं है। जहाँ तक साकार जगत की रचना का प्रश्न है हम एक उदाहरण के माध्यम से उसे समझने का प्रयास करते है। विचार दो प्रकार के है व्यक्त एवं अव्यक्त। मान लीजिये एक व्यक्ति दूर से पुकार कर मुझे मेरे नाम से बुला रहा है। मैंने अपनी इन्द्रिय जैसे कि कान की सहायता से उसके विचार को सुना। यह व्यक्त विचार था जो वाह्य था और इन्द्रिय की सहायता से सुना गया। अब मैं अपना ही नाम अपने मन में पुकारता हूँ। किसी भी वाह्य इन्द्रियों का कोई प्रयोग नहीं हुआ। यह अव्यक्त विचार था। जो … Continue reading निराकार ईश्वर से साकार जगत की उत्पत्ति कैसे

मूर्तिपूजा खण्डन

हमारे कुछ पौराणिक भाइयों का कहना है कि मूर्तिपूजा प्राचीन काल से चली आ रही है और तो और वेदों में भी मूर्ति पूजा का विधान है। अब आइये सत्य की ओर चलते हैं। जाने सत्य क्या है? वेदों में मूर्ति पूजा का विधान नहीं है और तो और पुराण भी मूर्तिपूजा करने को मना करता है। वेद तो घोषणापूर्वक कहते हैं- न तस्य प्रतिमाऽअस्ति यस्य नाम महद्यशः। हिरण्यगर्भऽइत्येष मा मा हिंसीदित्येषा यस्मान्न जातऽइत्येषः।। (यजु० अ० ३२ । मं० ३ ।।) शब्दार्थ:-(यस्य) जिसका (नाम) प्रसिद्ध (महत् यशः) बड़ा यश है (तस्य) उस परमात्मा की (प्रतिमा) मूर्ति (न अस्ति) नहीं है (एषः) वह (हिरण्यगर्भः इति) सूर्यादि तेजस्वी पदार्थों को अपने भीतर धारण करने से हिरण्यगर्भ है।(यस्मात् न जातः इति एषः) जिससे … Continue reading मूर्तिपूजा खण्डन

अष्टाादशपुराणसमीक्षा

*अष्टाादशपुराणसमीक्षा नोट :- यह किसी को चिढ़ाने अथवा नीचा दिखाने के उद्देश्य से नही किंतु जिज्ञासु और विद्वानो के मध्य सत्य असत्य का निर्णय कराने हेतु है प्रश्न — अष्टादशपुराणानां कर्त्ता सत्यवतीसुतः ॥१॥ [रेवाखण्ड] इतिहासपुराणाभ्यां वेदार्थमुपबृंहयेत ॥२॥ महाभारत [आदिपर्व १| २६७] पुराणानि खिलानि च ॥३॥ मनु○[३|२३२] इतिहासपुराणः पञ्चमो वेदानां वेदः ॥४॥ छान्दोग्य○ [७|१|४] दशमेऽहनि किंचित्पुराणमाचक्षीत ॥५॥ [तुलना — शतपथ १३|३|१|१३] पुराणविद्या वेदः ॥६॥ सूत्रम् [तु○–शतपथ १३|३|१|१३] अठारह पुराणो के कर्ता व्यासजी है व्यास वचन का प्रमाण अवश्य करना चाहिए ॥१॥ इतिहास महाभारत अठारह पुराणो से वेदो का अर्थ पढ़े क्योंकि इतिहास और पुराण वेदो ही के अर्थ और अनुकूल है ॥२॥ पितृकर्म मे पूराण और खिल अर्थात् हरिवंश की कथा सुने ॥३॥ इतिहास और पूराण पञ्चमवेद कहाते है ॥४॥ अश्वमेध … Continue reading अष्टाादशपुराणसमीक्षा

अवतारवाद समीक्षा

अवतारवाद भाग १ ईश्वर इस संसार के स्थान विशेष व काल विशेष मे नही रहता बल्कि वह तो संसार के प्रत्येक स्थान मे विद्यमान है उसने तो कोई कोना रिक्त स्थान खाली छोड़ ही नही रखा वह हर जगह पूर्ण हो रहा है जहा कुछ नही है वहा भी ईश्वर है । हम इस बात को बलपूर्वक कह सकते है कि वेदो मे एक मंत्र भी इस प्रकार का नही है जो ईश्वर के अवतार अथवा साकार होने का वर्णन करता हो, अपितु इस प्रकार के सैकड़ो मंत्र वेदो मे मौजूद है जो ईश्वर को निराकार, अजन्मा, सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, तथा शरीररहित बताते है रहा आपका यह हेतु की भक्तो की रक्षा करने के लिए ईश्वर अवतार धारण करता है यह … Continue reading अवतारवाद समीक्षा

अंधविश्वास की कथा

एक विधवा बहू ने अपनी सास को बताया कि वह तीन माह के गर्भ से है. परिवार में हंगामा मच गया, समाज में भूचाल आ गया, लोगों ने पंचायत जुटाई और उस बहू से बच्चे के बाप का नाम जानना चाहा, भरी पंचायत में बहु ने बताया कि तीन माह पूर्व मैं प्रयाग राज त्रिवेणी संगम स्नान करने गई थी, स्नान के समय मैंने गंगा का आहवान करते हुए तीन बार गंगा जल पिया था, हो सकता है उसी समय किसी ऋषि महात्मा,महापुरुष का गंगा में धातु स्खलन हो गया और वो आहवान के साथ मैं पी गयी, उसी से मैं गर्भवती हो गई| सरपंच जी ने कहा- ” यह असंभव है, ऐसा कभी हो नहीं सकता कि धातु किसी … Continue reading अंधविश्वास की कथा

भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व अध्याय १८ – क्यां ब्रह्माने अपनी पुत्री, विष्णुने अपनी माता, शिवने अपनी भगीनी तथा सूर्यने अपनी भतीजी से विवाह किया था?

आर्यसमाज द्वारा पुराणो की अश्लीलता पर प्रकाश डालने का फायदा यह हुवा की आज पौराणिक भी वहा छीपी नग्न अश्लीलता से शरमा कर उसे अच्छे शब्दो के आवरणमें ढांक देना शुरु कर दिया। ऐसा ही कुछ हाल भविष्यपुराण प्रतिसर्गपर्व ४ अध्याय १८ का है।  अध्याय का मूल विषय यह अध्यायमें विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा के स्वयंवर का वर्णन है। जहां उसका अपहरण हो जाता है। विवस्वान् सूर्य उसकी रक्षा कर के उसके पिता विश्वकर्मा को सोंपते है। संज्ञा जो सूर्य की भतीजी है। सूर्यने एक पति की तरह संज्ञा की रक्षा करी थी इसीलिये संज्ञाने उनसे विवाह करने का कहाँ। भतीजी के साथ विवाह कैसे किया जाय उसका समाधान देते हुवे यहाँ ब्रह्मा, विष्णु और शिवका उदाहरण दिया है जिन्होने … Continue reading भविष्यपुराण – प्रतिसर्गपर्व अध्याय १८ – क्यां ब्रह्माने अपनी पुत्री, विष्णुने अपनी माता, शिवने अपनी भगीनी तथा सूर्यने अपनी भतीजी से विवाह किया था?

सत्यार्थ प्रकाश – षष्ठसमुल्लास के विषय में फेलाये जा रहे दुष्प्रचार का खण्डन

सत्यार्थ प्रकाशने पौराणिक समाज के पाखण्ड का पर्दाफाश कर दिया था। इसी लिये इतने वर्ष पश्चात् भी पौराणिक समाज सत्यार्थ प्रकाश पर जुठ्ठे आक्षेप करते है क्युं की सत्यार्थ प्रकाश ने उनके पाखण्ड की नींव हिला डाली थी।  यही परम्परा का पालन करते हुवे पौराणिक समाज आज ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के षष्ठसमुल्लास पर एक जुठा आरोप कर रहां है । यह प्रकरणमें स्वामीजी ने राजधर्म की चर्चा करी है तथा मनुस्मृति के कई श्लोक प्रमाण के तोर पे दिये है। यहां पर उनहोने मनुस्मृति का श्लोक ७.९६ उद्बोधित किया है तथा उस की व्याख्या करी है।रथाश्वं हस्तिनं छत्रं धनं धान्यं पशून्स्त्रियः ।सर्वद्रव्याणि कुप्यं च यो यज्जयति तस्य तत् ॥ व्याख्या – इस व्यवस्था को कभी न तोड़े कि जो-जो लड़ाई में जिस-जिस भृत्य वा अध्यक्ष ने … Continue reading सत्यार्थ प्रकाश – षष्ठसमुल्लास के विषय में फेलाये जा रहे दुष्प्रचार का खण्डन

बृह्दारण्यक उपनिषद् और पुराणं शब्द

 छान्दोग्य उपनिषद् पर पुराण शब्द की मीमांसा से हार चुका पौराणिक समाज अपने अष्टादशपुराणो को वेदानुकूल सिद्ध करने like a headless chicken यहाँ से वहाँ मारामारा फिर रहाँ है। हालत ऐसी हो गई है की कहीं पे भी शास्त्रोमें पुराण शब्द मिल जाये तो उस शब्द का अर्थ अष्टादशपुराण ही है वह सिद्ध करने के लिये उतावला हो रहा है। यही प्रक्रीया के अन्तर्गत ‘डूबते को तिनके का सहारा’ इस मुताबित बृहदारणकोपनिषद् में पुराण शब्द ढूंढ लाया। देख कर ठूमके लगा कर नाँचने लगा। यह भी समजने की कोशिश नहीं करी के यह शब्दका अर्थ क्यां है। बृहदारण्यक उपनिषद का जो मन्त्र पौराणिको ने दिया उसे हम उद्बोधित करते है। स यथार्द्रैधाग्नेरभ्याहितस्य पृथग्धूमा विनिश्चरन्त्येवं वा अरेऽस्य महतो भूतस्य निश्वसितमेतद्यदृग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्वाङ्गिरस इतिहासः पुराणं विद्या … Continue reading बृह्दारण्यक उपनिषद् और पुराणं शब्द

छान्दोग्य उपनिषद् में रहे ‘इतिहासपुराणम्॑ पाठ की मीमांसा

कुछ समय पहले श्री भावेश मेरजा द्वारा लिखीत ‘काशीनो शास्त्राथ’ पुस्तक पढने का मौका मिला। मूर्तिपूजा पर हुवे यह शास्त्रार्थमें पौराणिक समाज मूर्तिपूजा के समर्थनमें कोई प्रमाण देने में विफल रहाँ था। शास्त्रार्थमें पुराण शब्द के विषयमें चर्चा हुइ थी। चर्चामें स्वामी दयानन्दनें पुराण शब्द को इतिहास का विशेषण बताया तथा छान्दोग्य उपनिषद् का पाठ ‘इतिहासः पुराणः पञ्चमो वेदानां वेदः’ पाठ उद्बोधित किया। तब पौराणिक समाजने कहां की ‘इतिहासपुराणम्’ यही पाठ सर्वत्र है। तब स्वामीजीने घोषणा करी के यदी ‘इतिहासः पुराणः’ यह पाठ ना मिले तो उनकी पराजय हो तथा मिल जाये तो पौराणिक मत की पराजय हो। पौराणिक समाज हम्मेशा की तरह मौन साधे रहाँ। हमने जिज्ञासावश छान्दोग्य उपनिषद् का स्वाध्याय किया। उसमें दोनो पाठ थे। दोनो मन्त्र यहा … Continue reading छान्दोग्य उपनिषद् में रहे ‘इतिहासपुराणम्॑ पाठ की मीमांसा

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)