अष्टाादशपुराणसमीक्षा

*अष्टाादशपुराणसमीक्षा

नोट :- यह किसी को चिढ़ाने अथवा नीचा दिखाने के उद्देश्य से नही किंतु जिज्ञासु और विद्वानो के मध्य सत्य असत्य का निर्णय कराने हेतु है

प्रश्न — अष्टादशपुराणानां कर्त्ता सत्यवतीसुतः ॥१॥ [रेवाखण्ड]
इतिहासपुराणाभ्यां वेदार्थमुपबृंहयेत ॥२॥ महाभारत [आदिपर्व १| २६७]
पुराणानि खिलानि च ॥३॥ मनु○[३|२३२]
इतिहासपुराणः पञ्चमो वेदानां वेदः ॥४॥ छान्दोग्य○ [७|१|४]
दशमेऽहनि किंचित्पुराणमाचक्षीत ॥५॥ [तुलना — शतपथ १३|३|१|१३]
पुराणविद्या वेदः ॥६॥ सूत्रम् [तु○–शतपथ १३|३|१|१३]

अठारह पुराणो के कर्ता व्यासजी है व्यास वचन का प्रमाण अवश्य करना चाहिए ॥१॥
इतिहास महाभारत अठारह पुराणो से वेदो का अर्थ पढ़े क्योंकि इतिहास और पुराण वेदो ही के अर्थ और अनुकूल है ॥२॥
पितृकर्म मे पूराण और खिल अर्थात् हरिवंश की कथा सुने ॥३॥
इतिहास और पूराण पञ्चमवेद कहाते है ॥४॥
अश्वमेध की समाप्ति मे दशमें दिन थोड़ी सी पुराण कथा सुने ॥५॥
पुराणविद्या वेदार्थ के जानने ही से वेद है ॥६॥

इत्यादि प्रमाणो से पुराणो का प्रमाण और इनके प्रमाणो से मूर्तिपूजा और तिर्थो का भी प्रमाण है क्योंकि पुराणो मे मूर्तिपूजा और तीर्थों का विधान है

उत्तर — जो अठारह पुराणो के कर्त्ता व्यासजी होते तो उनमे इतने गपोड़े न होते क्योंकि शारीरिकसूत्र , योगशास्त्र के भाष्य आदि व्यास मुनि कृत्त ग्रंथो को देखने से विदित होता है कि व्यासजी बड़े विद्वान सत्यवादी धार्मिक योगी थे वे ऐसी मिथ्या कथा कभी ना लिखते और इससे यह सिध्द होता है कि जिन संप्रदायी परस्पर विरोधी लोगो ने भागवतादि नवीन कपोल्कल्पित ग्रंथ बनाए है उनमे व्यासजी के गुणो का लेशमात्र भी नही था और वेद शास्त्र विरुद्ध असत्यवाद लिखना व्यासजी सदृश विद्वानो का काम नही किंतु यह काम विरोधी स्वार्थी अविद्वानो पामरों का है इतिहास और पुराण शिवपुराण आदि का नाम नही किंतु —
ब्राह्मणानीतिहासान् पुराणानि कल्पान् गाथानाराशंसीरिति
—यह ब्राह्मण और सूत्रो का वचन है [तैत्ति○ आरण्यक २|९ आशवलायन गृहासूत्र ३|३|१
ऐतरेय, शतपथ , साम और गोपथ ब्राह्मण ग्रंथो ही के इतिहास पुराण कल्प गाथा और नाराशंसी ये पांच नाम है (इतिहास) जैसे जनक और याज्ञवल्क्य का संवाद (पुराण ) जगदुत्पत्ति आदि का वर्णन आख्यान (कल्प) वेद शब्दो के सामर्थ्य का वर्णन अर्थ निरूपण करना (गाथा) किसी का दृष्टांत दार्ष्टान्त रूप कथा प्रसंङग् कहना (नाराशंसी) मनुष्यो के प्रशंसनीय व अप्रशंसनीय कर्मो का कथन करना इन्ही से वेदार्थ का बोध होता है
“पितृकर्म ” ज्ञानियो के प्रसंग मे कुछ सुनना अश्वमेध के अंत मे इन्ही का सुनना लिखा है क्योंकि जो व्यासकृत ग्रंथ है उनका सुनना सुनाना व्यासजी के जन्म के पश्चात् हो सकता है पूर्व नही जब व्यासजी का जन्म भी नही था तब वेदार्थ को पढ़ते पढ़ाते सुनते सुनाते थे इसलिए सबसे प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथो ही मे यह सब घटना हो सकती है इन श्रीमद्भागवत शिव पुराण आदि मिथ्यावाद दूषित ग्रंथो मे नही घट सकती जब व्यासजी जी ने वेद पढ़े और पढ़ाकर वेदार्थ फैलाया इसलिए उनका नाम वेदव्यास हुआ क्योंकि व्यास कहते है वार-पार की मध्य रेखा को अर्थात् ऋग्वेद के आरम्भ से लेकर अथर्ववेद के पार पर्यन्त चारो वेद पढ़े थे और शुकदेव तथा जैमिनी आदि शिष्यो को पढ़ाए भी थे नही तो उनके बचपन का नाम कृष्णद्वैपायन था जो कोई यह कहते है कि वेदो को व्यासजी ने इकट्ठे किए यह बात झूठी है क्योंकि व्यासजी के पिता पितामह और प्रपितामह, पराशर ,शक्ति , और वशिष्ठ और ब्रह्मा जी आदि ने भी चारो वेद पढ़े थे,

प्रश्न : पुराणो मे सब बाते झूठी है, वा कोई सच्ची भी है
उत्तर : बहुत सी बाते झूठी है और कोई घुणाक्षरन्याय से सच्ची भी है जो सच्ची है वो वेदादि सत्य शास्त्रो की है और जो झूठी है वो उन पाखंडी पौराणिको के घर की है
जैसे शिव पुराण मे शैवो ने शिव को परमेश्वर मान के विष्णु ब्रम्हा इन्द्र गणेश और सुर्यादि को उनके दास ठहराए वैष्णवो ने विष्णु पुराण आदि मे विष्णु को परमात्मा माना और शिव आदि को विष्णु के दास देवी भागवत मे देवी परमेश्वरी और शिव विष्णु को उनके किक्ङर बनाए गणेशखण्ड मे गणेश को ईश्वर और शेष को दास बनाए भला यह बात इन संप्रदायी पंडितो की नही तो किनकी है? एक मनुष्य के बनाने मे ऐसी परस्पर विरोधी बात नही होती तो विद्वान के बनाए मे भी कभी नही आ सकती इसमे एक बात को सच्ची माने तो दूसरी झूठी और जो दूसरी को सच्ची माने तो अन्य सब झूठी होती है शिव पुराण वाले शिव से विष्णु पुराण वाले विष्णु से देवी पुराण वाले देवी से गणेशखण्ड वाले गणेश से सुर्यपुराण वाले सुर्य से और वायुपुराण वाले वायु से सृष्टि की उत्पत्ति प्रलय लिखके पुनः एक एक से एक एक को जगत के कारण लिखे उनकी उत्पत्ति एक एक से लिखी कोई पूछे कि जो जगत की उत्पत्ति स्थिति प्रलय करने वाला है वह उत्पन्न और जो उत्पन्न होता है वह सृष्टि का कारण कभी हो सकता है वा नही? तो शिवाय चुप रहने के कुछ भी नही कह सकते । और इन सबके शरीर की उत्पत्ति भी इसी से हुई होगी फिर वे आप सृष्टि पदार्थ और परिच्छिन्न होकर संसार की उत्पत्ति के कर्ता क्योकर हो सकते है? और उत्पत्ति भी विलक्षण विलक्षण प्रकार से मानी है जो सर्वथा असंभव है जैसे —

शिवपुराण मे शिव ने इच्छा की मै सृष्टि करू तो एक नारायण को जलाशय से उत्पन्न कर उसकी नाभि से कमल, कमल मे से ब्रह्मा उत्पन्न हुआ उसने देखा कि सब जलमय है जल की अञ्जलि उठा देख जल मे पटक दिया उससे एक बुलबुला और बुलबुले से एक पुरुष हुआ उसने ब्रह्मा से कहा कि हे पुत्र सृष्टि कर ब्रह्मा ने कहा मै तेरा पुत्र नही तु मेरा पुत्र है उनमे विवाद हुआ और दिव्य सहस्त्रो वर्ष पर्यन्त दोनो जल मे लड़ते रहे तब महादेव ने विचार किया की जिनको सृष्टि करने के लिए भेजा था वे दोनो आपस में लड़ रहे है तब उन दोनो के बीच मे तेजोमय लिंग उत्पन्न हुआ और वह शीघ्र आकाश में चला गया उसको देखकर दोनो साश्चर्य हो गए विचारा की इसका आदि अंत लेना चाहिए जो आदि अंत लेकर पहले आवे वह पिता और जो पीछे और थाह लेके ना आवे वह पुत्र कहावे विष्णु कूर्म का स्वरूप धरके नीचे चला और ब्रह्मा हंस का शरीर धारण कर उपर को उड़ा दोनो मनोवेग से चले दिव्य सहस्त्रो वर्ष पर्यन्त दोनो चलते रहे तो भी उसका अंत ना पाया तब नीचे से ऊपर विष्णु और ऊपर से नीचे ब्रह्मा चला ब्रह्मा ने विचारा की जो वह छेड़ा ले आया होगा तो पुत्र बनना पड़ेगा ऐसा सोच रहा था कि तभी एक गाय और केतकी का वृक्ष ऊपर से उतर आया उनसे ब्रह्मा ने पुछा कि तुम कहा से आए हो उन्होंने कहा हम सहस्त्रो वर्षो से इस लिंग के आधार से चले आते है ब्रह्मा ने पूछा इस लिंग का थाह है वा नही उन्होंने कहा कि नही ब्रह्मा ने उनसे कहा कि तुम हमारे साथ चलो और ऐसी साक्षी दो की मै इस लिंग के सिर पर दूध की धारा वर्षाती थी और वृक्ष कहे कि मै फुल वर्षाता था उन्होंने कहा कि हम झूठी साक्षी नही देंगे तब ब्रह्मा कुपित होकर बोला कि मै तुम दोनो को अभी भस्म कर देता हु तब दोनो ने डरकर कहा हम जैसी तुम कहते हो वैसी ही साक्षी देंगे
तब तीनो नीचे की ओर चले विष्णु पहले ही पहुंच चुके थे विष्णु से पूछा तू थाह ले आया वा नही? तब विष्णु बोला मुझको थाह नही मिला ब्रह्मा ने कहा मै ले आया और झूठी साक्षी भी दिलवा दिए तब लिंग मे से शब्द निकला तू झूठ बोला इसलिए तेरा फुल मुझ पर कभी नही चढ़ेगा गाय से कहा तु झूठ बोली इसलिए सदा जुठा खाया करेंगी ब्रह्मा से कहा तेरी पूजा कभी नही होगी और विष्णु को वर दिया कि तू सच बोला इसलिए तेरी सर्वत्र पूजा होगी तभी उस लिंग से शिवजी निकले और कहा तुमदोनो ने अबतक सृष्टि क्यो नही रची विष्णु ने कहा हम बिना सामग्री सृष्टि कैसे रचे महादेव ने अपने जटा से भस्म का गोला निकाल कर दिया और कहा जाओ इसमे से सब सृष्टि बनाओ

कोई इन पुराण बनाने वाले पाखंडी पौराणिको से पूछे कि जब सृष्टि तत्व और पंचमहाभूत भी नही थे तो ब्राह्मा विष्णु महादेव के शरीर जल कमल लिंग गाय और केतकी का वृक्ष और भस्म क्या तुम्हारे बाबा के घर से आ टपके
?

वैसे ही भागवत मे विष्णु की नाभि से कमल कमल से ब्रह्मा और ब्रह्मा के दाहिने पग के अंगूठे से स्वायंभुव और बाए अंगुठे से सत्यरूपा राणी ललाट से रूद्र और मरीची आदि दश पुत्र उनसे दक्ष प्रजापति उनकी तेरह लड़कीयो का विवाह कश्यप से उनमे से दिति से दैत्य दनु से दानव अदिति से आदित्य विनता से पक्षी कद्रू से सर्प सरमा से कुत्ते स्याल आदि और अन्य स्त्रीयो से हाथी घोड़े ऊंट गधा भैसा घास फूस और बबूर का वृक्ष कांटे सहित उत्पन्न हो गया

वाह रे! भागवत बनाने वाले लालबुझक्कर? तुम को ऐसी बाते करते हुए शर्म नही आई भला स्त्री पुरुष के रज वीर्य से तो मनुष्य देह बनते ही है परन्तु परमेश्वर वेद और सृष्टि क्रम से विरूद्ध पक्षी सर्प कभी उत्पन्न नही हो सकते हाथी ऊंट शेर के स्थित होने का अवकाश स्त्री के गर्भाशय मे हो सकता है? और शेर आदि उत्पन्न होकर अपने माता-पिता को क्यो नही खा गए इत्यादि झूठ बातो को वे अंधे पौराणिक और भीतर बाहर की आख फुटे हुए उनके चेले सुनते मानते है यह पूराण आदि रचने वाले लोग जन्मते ही मर क्यो नही गए कम से कम हमारा सनातन वैदिक राष्ट्र अंधविश्वास मे फंसने से तो बचा रहता

प्रश्न इन बातो मे विरोध नही आ सकता क्योंकि जिसका विवाह उसी के गीत जब विष्णु की स्तुति करने लगे तब विष्णु को परमेश्वर अन्य को दास जब शिव के गुण गाने लगे तब शिव को परमात्मा अन्य को किंकङ बनाया और परमेश्वर की माया मे सब बन सकता है देखो विना कारण अपनी माया से सब सृष्टि खड़ी कर दी है उसमे कौन सी बात अघटित है, जो करना चाहे सो सब कर सकता है

उत्तर– अरे भोले विवाह मे जिसके गीत गाते है उसको बड़ा और दूसरो को छोटा वा निन्दा अथवा उसको सबका बाप तो नही बनाते कहो पौराणिक पंडो तुम भाट और खुशामदी चारणो से बढ़कर गप्पी हो अथवा नही? कि जिसके पीछे लगो उसी को सबसे बड़ा बनाओ और जिससे विरोध करो उसको सबसे नीच ठहराओ तुमको सत्य और धर्म से क्या प्रयोजन किन्तु तुमको तो अपने स्वार्थ ही से काम है माया मनुष्य मे हो सकती है जो छली कपटी है उसी को मायावी कहते है परमेश्वर मे छल कपटादि दोष ना होने से उसको मायावी नही कह सकते जो आदि सृष्टि मे कश्यप और कश्यप की स्त्रीयो से पशु पक्षी सर्प वृक्षादि हुए होते तो आजकल भी वैसे संतान क्यो नही होते सृष्टि क्रम जो पहिले लिख आए वही ठीक है और अनुमान है कि पंडित जी यही से धोखा खाकर बके होंगे
तस्मात् काश्यप्य इमाः प्रजाः ॥ [तुलना शत ७|४|१|५]
शतपथ मे यह लिखा है कि यह सब सृष्टि कश्यप की बनाई हुई है
कश्यपः कस्मादत् पश्यको भवतीति –निरू○[अ○२|खं○१,तुलना –तै○आ○१|८]
सृष्टिकर्ता परमेश्वर का नाम कश्यप इसलिए है कि पश्यक अर्थात् पश्यतीति पश्यः, पश्य एव पश्यकः जो निभ्रम होकर चराचर जगत् सब जीव और इनके कर्म सकल विद्याओ को यथावत् देखता है और ‘आद्यन्तविपर्ययश्च’ इस महाभाष्य [३|१|२३] के वचन से आदि का अक्षर अन्त और अंत का वर्ण आदि मे आने से पश्यक से कश्यप बन गया है इसका अर्थ न जानकर भांग के लोटे चढ़ा अपना जन्म सृष्टि विरूद्ध कथन करने मे नष्ट कर दिया ।
जैसे ‘मार्कण्डेयपुराण’ के दुर्गापाठ मे देवो के शरीरो से तेज निकल के एक देवी बनी उसने महिषासुर को मारा रक्तबीज के शरीर से एक बिन्दु भूमि पर पड़ने से उसके सदृश रक्तबीज के उत्पन्न होने से सब जगत् मे रक्तबीज भर जाना रूधिर की नदिया चलनी आदि गपोड़े बहुत से लिख रखे है जब रक्तबीज से सब जगत् भर गया था तो देवी का सिंह और देवी कहा ठहरी थी? जो कहो कि देवी से दूर-दूर रक्तबीज थे तो सब जगत् रक्तबीज से नही भरा था? और सब जंगली पशु समुद्र की मच्छिया पक्षी वृक्ष आदि कहा रहे थे? यहा यही निश्चित जानना कि दुर्गा पाठ बनानेवालो के घर मे स्थित होंगे देखिए क्या ही असंभव कथा का गपौड़ा भंङगी लहरी मे उड़ाया है जिनका ठौर न ठिकाना जिसको श्रीमद्भागवत पुराण कहते है उसकी लीला सुनो ब्रह्मा जी को नारायण ने चतुः श्लोकी भागवत का उपदेश किया है ज्ञानं परमगुहां मे यद्विज्ञानसमन्वितम् सरहस्यं तदङग्ञ्च गृहाण गदितं मया
—भागवत [स्कं○२|९|३०]
हे ब्रह्मा जी तू मेरा परमगुहा ज्ञान जो विज्ञान और रहस्ययुक्त और धर्मार्थ , काम, मोक्ष का अग्ङ साधन है उसी का मुझसे ग्रहण कर । जब विज्ञान युक्त ज्ञान कहा तो ‘परम’ अर्थात् ज्ञान का विशेषण रखना व्यर्थ है और गुहा विशेषण से रहस्य भी पुनरूक्त है जब मूल श्लोक अनर्थक है तो ग्रंथ अनर्थक क्यो नही? जब भागवत का मूल ही झूठा है तो उसका वृक्ष झूठा क्यो नही होगा? ब्रह्मा जी को वर दिया कि —
भवान् कल्पविकल्पेषु न विमुह्यति कर्हिचित् ॥
—भागव○[स्कं○२|९]श्लोक [३६]
आप ‘कल्प’ सृष्टि और विकल्प प्रलय मे मोह को प्राप्त कभी नही होंगे ऐसा लिखकर पुनः दशमस्कन्ध मे मोहित होके वत्सहरण किया इन दोनो मे से एक बात सच्ची दूसरी झूठी ऐसा होकर दोनो बात झूठी सिध्द होती है जब वैकुण्ठ मे राग-द्वेष क्रोध ईष्र्या दुख नही है तो सनकादिको को वैकुण्ठ के द्वार मे क्रोध क्यो हुआ? जो क्रोध हुआ तो वह स्वर्ग नही । जब जय विजय द्वार पाल थे स्वामी जी की आज्ञा पालनी अवश्य थी उन्होंने सनकादिको को रोका तो क्या अपराध हुआ? इस पर बिना अपराध शाप ही नही लग सकता जब शाप लगा कि तुम पृथ्वी मे गिर पड़ो इसके कहने से यह सिद्ध होता है कि वहां पृथ्वी ना होगी आकाश वायु अग्नि और जल होगा जो ऐसा था तो द्वार मंदिर और जल किसके आधार थे? पुनः जय विजय ने सनकादिको की स्तुति की महाराज हम पुनः वैकुण्ठ मे कब आवेंगे? उन्होंने उनसे कहा कि जो प्रेम से नारायण की भक्ति करोगे तो सातवे जन्म और जो विरोध मे भक्ति करोगे तो तीसरे जन्म वैकुण्ठ को प्राप्त होगे इसमे विचारना चाहिए कि जय,विजय नारायण के नौकर थे उनकी रक्षा और सहाय करना नारायण का कर्तव्य था जो अपने नौकरो को बिना अपराध दुख देवे उनको उनका स्वामी दण्ड न देवे तो उसके नौकर की दुर्दशा कोई कर डाले नारायण को उचित था कि जय, विजय का सत्कार और सनकादिको को खूब दण्ड देते क्योंकि उन्होंने भीतर आने के लिए हठ क्यो किया? और नौकर से लड़े क्यो शाप दिया? उनके बदले सनकादिको को पृथ्वी मे डाल देना नारायण का न्याय था जब इतना अंधेर नारायण के घर मे है तो उसके सेवक जो वैष्णव कहाते है उनकी जितनी दुर्दशा हो उतनी थोड़ी है ।
पुनः वे हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यपु उत्पन्न हुए उनमे से हिरण्याक्ष को वराह ने मारा उसकी कथा इस प्रकार से लिखी है कि वह पृथ्वी को चटाई के समान लपेट शिराने धर सो गया विष्णु ने वराह का स्वरूप धारण करके उसके शिर के नीचे से पृथ्वी को मुख मे धर लिया वह उठा दोनो की लड़ाई हुई वराह ने हिरण्याक्ष को मार डाला
इन पंडो से कोई पूछे कि पृथ्वी गोल है वा चटाई के तुल्य? तो कुछ ना कह सकेंगे क्योंकि पौराणिक लोग वेद ज्ञान और भूगोलविद्या के शत्रु है भला जब लपेटकर शिराने धरली आप ही स्वंय किस पर सोया? और वराह जी किस पर पग धर दौड़ आए और फिर पृथ्वी को तो वराह जी ने मुख मे रखी फिर दोनो किस पर खड़े होकर लड़े? वहा और कोई ठहरने की जगह नही थी किंतु भागवतादि पुराण बनाने वाले पंडे की छाती पर खड़े होकर लड़े होंगे? और फिर उस समय पंडा जी किस पर सोया होगा? यह बात गप्पी के घर गप्पी आए बोलो गप्पीजी जब मिथ्या वादियो के घर मे दूसरे गप्पी लोग आते है फिर गप्प मारने मे क्या कमती है इस प्रकार ही है ।
अब रहा हिरण्यकश्यपु उसका लड़का जो प्रह्लाद था वह भक्त हुआ था उसका पिता पढ़ने को भेजता था तब वह अध्यापको से कहता था मेरी पट्टी मे राम राम लिख देओ जब उसके बाप ने सुना उससे कहा तू हमारे शत्रु का भजन क्यो करता है छोकड़े ने ना माना तब उसके बाप ने उसको बांध के पहाड़ से गिराया कूप मे डाला परन्तु उसको कुछ ना हुआ तब उसने एक लोहे का खम्भा आग मे तपाके उससे बोला जो तेरा इष्टदेव राम सच्चा हो तो तू इसको पकड़ने से ना जलेगा प्रह्लाद पकड़ने को चला मन मे शंका हुई कि जलने से बचूंगा वा नही? नारायण ने उस खम्भे पर चीटियो की पंक्ति चलाई प्रह्लाद को निश्चय हुआ वो झट खम्भे को जा पकड़ा खम्भा फटा उसमे से नृसिंह निकला उसके बाप को पकड़ चीरकर मार डाला और तब प्रह्लाद को चाटने लगा प्रह्लाद से कहा वर मांग उसने अपने पिता की सद्गति होनी मांगी नृरसिंह ने वर दिया तेरे इक्कीस पुरूखे सद्गति को गए
देखिए ! यह भी दूसरे गपोड़े का भाई गपौड़ा किसी भागवत बाचने व सुनने वाले को पकड़कर ऊपर पहाड़ी से गिरावे तो कोई ना बचावे किन्तु चकनाचूर होकर मर जावे प्रह्लाद को उसका पिता पढ़ने के लिए भेजता था क्या बुरा काम किया था? और वह प्रह्लाद ऐसा मुर्ख बिना विद्या अध्ययन वैरागी होना चाहता था जो जलते हुए खम्भे से कीड़ी और प्रह्लाद ना जला इस बात को जो सच्ची माने उसको भी खम्भे के साथ लगा देना चाहिए जो यह ना जले तो जानो वह भी ना जला होगा और नृसिंह भी क्यो ना जला? प्रथम तीसरे जन्म मे वैकुण्ठ मे आने का वर सनकादिक का था क्या उसको तुम्हारा नारायण भूल गया? भागवत की रीति से ब्रह्मा प्रजापति कश्यप हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यपु चौथी पीढ़ी मे होता है इक्कीस पीढ़ी प्रह्लाद की हुई ही नही पुनः इक्कीस पुरूखे सद्गति को गए ऐसा कहना कैसा प्रमाद है और फिर वे ही हिरण्याक्ष हिरण्यकश्यपु रावण कुम्भकरण पुनः शिशुपाल दन्तवक्त्र उत्पन्न हुए तो नृसिंह का वर कहा उड़ गया? ऐसी प्रमाद की बाते प्रमादी करते सुनते और मानते है विद्वान नही
पूतना और अक्रूरजी के विषय मे देखो
रथेन वायुवेगेन [भा○स्कं○१०|पूर्वाध३९|०]
जगाम गोकुलं प्रति [भा○स्कं○१०|३८|१]
अक्रूरजी कंस के भेजने से वायु के समान दौड़ने वाले घोड़ो के रथ मे बैठके सूर्योदय से चले और चार मील गोकुल मे सूर्यास्त समय पहुंचे सायत घोड़े भागवत बनाने वाले की परिक्रमा करते रहे होंगे? वा मार्ग भूलकर भागवत बनाने वाले के घर मे घोड़े हांकने वाले और अक्रूरजी सो गए होंगे?
पूतना का शरीर छः कोश चौड़ा और बहुत सा लम्बा लिखा है मथुरा और गोकुल के बीच मे उसको मारकर श्रीकृष्ण ने डाल दिया जो ऐसा होता तो मथुरा और गोकुल दोनो दबकर इस पुराण के लेखक का घर भी दब गया होगा
‘अजामेल’ की कथा ऊटपटांग लिखी है उसने नारद के कहने से अपने बेटे का नाम नारायण रखा था मरते समय अपने पुत्र को पुकारा बीच मे नारायण कूद पड़े क्या नारायण उसके अन्तःकरण के भाव को नही जानते थे कि वह पुत्र को पुकारता है मुझ को नही ।जो ऐसा ही नाम महात्म्य है तो आजकल भी नारायण का स्मरण करने वालो के दुख छुड़ाने को क्यो नही आता? यदि यह बात सच्ची हो तो कैदी लोग नारायण नारायण करके क्यो नही छूट जाते
ऐसे ही ज्योतिष शास्त्र से विरूद्ध सुमेरू का परिमाण लिखा है प्रियव्रत के रथ के चक्र की लीक से समुद्र हुए उनञ्चास कोटि योजन पृथ्वी है, इत्यादि मिथ्या बातो का भागवत मे कुछ पारावार नही और यह भागवत बोबदेव ने बनाया है जिसके भाई जयदेव ने गीतगोविंद बनाया है उसने देखो ये श्लोक अपने बनाए हिमाद्रि मे लिखे है कि श्रीमद्भागवत मैने बनाया है उस लेख के तीन पत्र हमारे पास थे उनमे से एक पत्र खो गया है उस पत्र मे श्लोको का जो आशय था उसे हमने नीचे लिखा है जिसको विशेष देखना हो वह हिमाद्रि ग्रंथ मे देख लेवे
हिमाद्रेः सचिवस्यार्थे सूचना क्रियतेऽधुना
स्कंधाऽध्यायकथानां च यत्प्रमाणं समासतः ॥१॥
श्रीमद्भागवतं नाम पुराणं च मयेरितम्
विदूषा बोबदेवेन श्रीकृष्णस्य यशोन्वितम् ॥२॥
इसी प्रकार के नष्ट पत्र मे श्लोक थे ।अर्थात् राजा के सचिव हिमाद्रि ने बोबदेव पण्डित से कहा कि मुझको तुम्हारे बनाए श्रीमद्भागवत के सम्पूर्ण सुनने का अवकाश नही है इसलिए तुम संक्षेप से श्लोकबध्द सूची पत्र बनाओ जिसको देखके मै श्रीमद्भागवत की कथा को संक्षेप मे जान सकु । सो नीचे लिखा हुआ सूचीपत्र उस बोबदेव ने बनाया उसमे से उस नष्ट पत्र के दश श्लोक खो गए है, ग्यारहवे श्लोक से लिखते है यह निम्नलिखित बोबदेव के बनाए श्लोक है —
बोधयन्तीति हि प्राहुः श्रीमद्भागवतं पुनः
पञ्च प्रश्नाः शौनकस्य सूतस्यात्रोत्तरं त्रिषु ॥११॥
प्रश्ननावतारयोश्चैव व्यासस्य निवृत्तिः कृतात्
नारदस्यात्र हेतुक्तिः प्रतीत्यर्थं स्वजन्म च ॥१२॥
सुप्तघ्न द्रोण्यभिभवस्तदस्त्रात्पाण्डवा वनम्
भीष्मस्य स्वपदप्राप्तिः कृष्णस्य द्वारकागमः ॥१३॥
श्रोतुः परिक्षितो जन्म धृतराष्ट्रस्य निर्गमः
कृष्णमर्त्यत्यागसूचा ततः पार्थमहापथः ॥१४॥
इत्यष्टादशभिः पादैरध्यायार्थ क्रमात् स्मृतः
स्वपरप्रतिबन्धोनं स्फीतं राज्यं जहौ नृपः ॥१५॥
इति प्रथमः स्कंधः ॥१॥
इत्यादि बारह स्कन्धो का सूचीपत्र इसी प्रकार बोबदेव पण्डित ने बनाकर हिमाद्रि सचिव को दिया

देखो! देवीभागवत मे श्री नामा एक देवी जो श्रीपुर की स्वामिनी लिखी है उसी ने सब जगत् को बनाया और ब्रह्मा विष्णु महादेव को भी उसी ने रचा है जब उस देवी की इच्छा हुई तब उसने अपना हाथ घिसा उससे हाथ मे छाला हुआ उसमे से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई उससे देवी ने कहा कि तू मुझसे विवाह कर ब्रह्मा ने कहा तू मेरी माता है मै तुझसे विवाह नही कर सकता माता को क्रोध चढ़ा उन्होंने ब्रह्मा को जलाकर भस्म कर दिया फिर हाथ घिसकर विष्णु को उत्पन्न किया और उससे भी विवाह का प्रस्ताव रखा विष्णु ने कहा माता से विवाह नही करूंगा फिर देवी ने उसे भी जलाकर भस्म कर दिया पश्चात् महादेव को पैदा किया और कहा कि तू मुझसे विवाह कर महादेव बोला तू पहले दूसरे स्त्री का रूप धारण कर दो स्त्री और उत्पन्न कर ब्रह्मा और विष्णु को जिन्दा कर
देवी ने वैसा ही किया फिर तीनो का तीनो से विवाह हुआ
वाह रे! पौराणिको माता से विवाह ना किया और बहिन से ही विवाह रचा ली क्या इसी को उचित समझना चाहिए?
पश्चात् इन्द्रादि को उत्पन्न किया ब्रह्मा विष्णु रूद्र और इन्द्र इनको पालकी के उठाने वाले कहार बनाया कोई उनसे पूछे की उस देवी का शरीर और उस श्रीपुर का बनाने वाला और देवी का पिता माता कौन थे जो कहो कि देवी अनादि है तो जो संयोगजन्य वस्तु है वो अनादि कभी नही हो सकता जो पुत्र माता से विवाह करने मे डरे जो बहन के साथ विवाह करना कहा से उचित है जैसी इस देवीभागवत मे महादेव विष्णु और ब्रह्मा जी की क्षुद्रता और देवी की बड़ाई लिखी है इसी प्रकार शिव पुराण मे देवी आदि की शुद्रता और शिव की बड़ाई लिखी है

इसी प्रकार अन्य पुराणो की लीला है
देखो! श्रीकृष्ण का इतिहास महाभारत मे अति उत्तम है उनका गुण कर्म स्वाभाव चरित्र आप्त पुरुषो के सदृश है उन्होंने कभी अधर्म का आचरण नही किया श्रीकृष्ण आठ वर्ष की आयु मे दीपांजली मुनि के आश्रम मे विद्या अध्ययन करने गए अड़तालीस वर्ष का ब्रह्मचर्य रखा पश्चात् एक मात्र रुक्मिणी जी से विवाह किया ऐसे महापुरुष को भागवत मे माखन चोर कुब्जादासी से समागम पराई स्त्रीयो से रासमंडल राधा आदि मिथ्या दोषारोपण किया गया है इन पुराणो के पढ़कर मुसलमान ईसाई नास्तिक हमारे आराध्य देव श्रीकृष्ण की निंदा करते है यदि यह भागवत पुराण ना होता तो श्रीकृष्ण सदृश महात्मा की निंदा भी ना होती

शिवपुराण मे बारह ज्योतिर्लिंग लिखे है उनकी कथा सर्वथा असंभव है नाम धरा है ज्योतिर्लिंग जिसमे प्रकाश का लेशमात्र भी नही है रात्रि मे बिना दीपक जलाए शिवलिंग भी अंधेरे मे नही दिखते ये सब पौराणिको की लीला है देखो

अमरनाथ, केदारनाथ, काशी विश्वनाथ व उज्जैन महाकाल में शिवलिंग की पूजा होती है, परन्तु शिवलिंग पूजा कोरा अन्धविश्वास व पाखंड है|

शिव पुराण की दारुवन कथा में शिवलिंग और पार्वतीभग की पूजा की उत्पत्ति- दारू नाम का एक वन था , वहां के निवासियों की स्त्रियां उस वन में लकड़ी लेने गईं , महादेव शंकर जी नंगे कामियों की भांति वहां उन स्त्रियों के पास पहुंच गये ।यह देखकर कुछ स्त्रियां व्याकुल हो अपने-अपने आश्रमों में वापिस लौट आईं , परन्तु कुछ स्त्रियां उन्हें आलिंगन करने लगीं ।उसी समय वहां ऋषि लोग आ गये , महादेव जी को नंगी स्थिति में देखकर कहने लगे कि -‘‘हे वेद मार्ग को लुप्त करने वाले तुम इस वेद विरूद्ध काम को क्यों करते हो ?‘‘यह सुन शिवजी ने कुछ न कहा ,तब ऋषियों ने उन्हें श्राप दे दिया कि – ‘‘तुम्हारा यह लिंग कटकर पृथ्वी पर गिर पड़े‘‘उनके ऐसा कहते ही शिवजी का लिंग कट कर भूमि पर गिर पड़ा और आगे खड़ा हो अग्नि के समान जलने लगा , वह पृथ्वी पर जहां कहीं भी जाता जलता ही जाता था जिसके कारण सम्पूर्ण आकाश , पाताल और स्वर्गलोक में त्राहिमाम् मच गया , यह देख ऋषियों को बहुत दुख हुआ । इस स्थिति से निपटने के लिए ऋषि लोग ब्रह्मा जी के पास गये , उन्हें नमस्ते कर सब वृतान्त कहा , तब ब्रह्मा जी ने कहा – आप लोग शिव के पास जाइये , शिवजी ने इन ऋषियों को अपनी शरण में आता हुआ देखकर बोले – हे ऋषि लोगों ! आप लोग पार्वती जी की शरण में जाइये । इस ज्योतिर्लिंग को पार्वती के सिवाय अन्य कोई धारण नहीं कर सकता । यह सुनकर ऋषियों ने पार्वती की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया , तब पार्वती ने उन ऋषियों की आराधना से प्रसन्न होकर उस ज्योतिर्लिंग को अपनी योनि में धारण किया । तभी से ज्योतिर्लिंग पूजा तीनों लोकों में प्रसिद्ध हुई तथा उसी समय से शिवलिंग व पार्वतीभग की प्रतिमा या मूर्ति का प्रचलन इस संसार में पूजा के रूप में प्रचलित हुआ – ठाकुर प्रेस शिव पुराण चतुर्थ कोटि रूद्र संहिता अध्याय 12 पृष्ठ 511 से 513

प्रश्न जब वेद पढ़ने का सामर्थ्य नही रहा तब स्मृति जब स्मृति पढ़ने की बुध्दि नही रही तब शास्त्र जब शास्त्रो के पढ़ने का सामर्थ्य ना रहा तब पुराण बनाए केवल स्त्री शुद्रो के लिए क्योंकि इनको वेद पढ़ने सुनने का अधिकार नही ।
उत्तर यह बात मिथ्या है क्योंकि सामर्थ्य पढ़ने पढ़ाने ही से होता है और वेद पढ़ने सुनने का अधिकार सबको है देखो गार्गी मैत्रेयी आदि स्त्रीया और छान्दोग्य [प्रपाठक ४|खं○२|प्रवाक २] मे जानश्रुति शुद्र ने भी वेद रैक्यमुनि के पास पढ़ा था और यजुर्वेद के २६वे अध्याय के दूसरे मंत्र मे स्पष्ट लिखा है कि वेदो के पढ़ने सुनने का अधिकार समस्त मनुष्यो को है पुनः जो ऐसे ऐसे मिथ्या ग्रंथ पुराण आदि बना लोगो को सत्य ग्रंथो से विमुख रख जाल मे फंसा अपने प्रयोजन साधते है वे महापापी है ।

पुराणोसेनातातोड़ो #वेदोकीतरफलौटो

वेदोकीओर_लौटो #सत्यार्थप्रकाश

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