विधिहीन यज्ञ और उनका फल: – स्वामी मुनीश्वरानन्द सरस्वती त्रिवेदतीर्थ

स्वामी मुनीश्वरानन्द सरस्वती त्रिवेदतीर्थ आर्यसमाज के शीर्ष विद्वान् रहे हैं। आपके द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘विधिहीन यज्ञ और उनका फल’ यज्ञ सम्बन्धी कुरीतियों पर एक सशक्त प्रहार है। इसी पुस्तक का कुछ अंश यहाँ पाठकों के अवलोकनार्थ प्रकाशित है।           -सम्पादक महर्षि दयानन्द सरस्वती जी महाराज की मान्यता है कि श्री कृष्ण जी एक आप्त पुरुष थे। यज्ञ के विषय में इस आप्त पुरुष का कहना है कि- विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम्, श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते।। -गीता १७/१३ १. विधिहीनं यज्ञं तामसं परिचक्षते। २. असृष्टान्नं यज्ञं तामसं परिचक्षते। ३. मन्त्रहीनं यज्ञं तामसं परिचक्षते। ४. अदक्षिणं यज्ञं तामसं परिचक्षते। ५. श्रद्धा विरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते। इन पाँच प्रकार के दोषों में से किसी एक, दो, तीन, चार या पाँचों दोषों से युक्त यज्ञ तामसी … Continue reading विधिहीन यज्ञ और उनका फल: – स्वामी मुनीश्वरानन्द सरस्वती त्रिवेदतीर्थ

दिपावलीको वैदिक महत्व

ओ३म्.. दिपावलीको वैदिक महत्व: दीपावलीलाई आदि सृष्टि (१,९६,०८,५३,११८ वर्ष) देखि चली आएको वैदिक धर्ममा “शारदीय नवसस्येष्टि पर्व” भनिन्छ। अर्थात्, नव= नयाँ, सस्य= फसल या अन्न, ईष्ट= कामनाहरु पूर्ण गर्नको लागि यज्ञ [हवन], शारदीय= शरद ऋतुमा। वैदिक संस्कृतिका जनक सृष्टिनियन्ता सर्वव्यापक एवं निराकार परमात्माले मानव मात्र लाई धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष प्राप्ति एवं प्रकृतिलाई पवित्र राख्नको लागि ऋतुहरु र पर्वहरुले बाँधेर राखेको छ। जसले यी नियमहरुको पालन गर्दछ उसलाई सुख, शांति तथा आनन्द तीनै प्राप्त हुन्छन्। यो शरद ऋतु हो। समस्त मानवको लागि धान मुख्य फसल हो। यो फसल काट्ने  तथा रबी फसल रोप्ने (छर्ने) काम यहि समयमा नै हुन्छ तथा शरद् र हेमन्त ऋतुको सन्धिकाल  कार्तिक अमावस्यामा नयाँ फसलको अन्न द्वारा गरिने विशाल यज्ञ प्राचीन कालदेखि नै शारदीय नवसस्येष्टि … Continue reading दिपावलीको वैदिक महत्व

आत्मनिवेदन: दिनेश

आचार्य धर्मवीर जी नहीं रहे। यह सुनना और देखना अत्यंत हृदय विदारक रहा है। आचार्य धर्मवीर जी देशकाल के विराट मंच पर महर्षि दयानन्द के विचारों के अद्वितीय कर्मवीर थे। महर्षि दयानन्द के विचारों के विरुद्ध प्रतिरोध की उनकी क्षमता जबर्दस्त थी। वैचारिक दृष्टि से तात्विक चिन्तन का सम्प्रेषण सहज और सरल था, यही उनका वैशिष्ट्य था, जो उन्हें अन्य विद्वानों से अलग खड़ा कर देता है। वे जीवनपर्यन्त संघर्ष-धर्मिता के प्रतीक रहे। ‘परोपकारी’ के यशस्वी सम्पादक के रूप में उन्होंने वैदिक सिद्धान्त ही नहीं, अपितु समसामयिक विषयों पर अपने विचारों को खुले मन से प्रकट किया। वे सत्य के ऐसे योद्धा थे जो महर्षि दयानन्द द्वारा प्रतिपादित पथ के सशक्त प्रहरी रहे और ऐसा मानदण्ड स्थापित कर गये, जो … Continue reading आत्मनिवेदन: दिनेश

वैदिक प्रणालीको ईसाई निन्दा

ओ३म्.. वैदिक प्रणालीको ईसाई निन्दा: -प्रेम आर्य दोहा, कतार बाट यूरोपमा ईसाई पन्थ जसरि दिन-प्रतिदिन बढ्दै गयो, त्यसरी नै उसले वैदिक-धर्मका चिह्नहरु र साहित्यहरु मेटाउँदै गयो। पहिले यी सब वैदिक-धर्मी नै थिए। किनभने स्वयंलाई वैदिक-धर्मिहरु बाट अलग देखाउनु थियो, त्यसैले उनीहरु एकदम अलग हुन थाले । क्यूमोन्टले लेखेको छ कि “सबथोक लुप्त भयो” । दोस्रो शताब्दीमा Eusebius र Pallas जस्ता लेखकहरुले “The Mysteries of Mithra” जस्ता प्राचीन दन्तेकथाहरुको जुन विशाल ग्रन्थ प्रकाशित गरे, ति सबैलाई निर्दयता पूर्वक नष्ट गरियो। यी ग्रन्थहरुमा वैदिक संस्कृति झल्काउने खालका कथाहरुको संग्रह गरिएको थियो। ति ईसाईहरुले घाउमा नुन-चुक लगाए झैं अनेक तरिकाले वैदिक प्रथा, कर्मकाण्ड, संस्कार आदिको निन्दा गर्न थाले। अरब प्रदेशमा र यूरोपका कैयौं नगरहरुमा असंख्य वैदिक उपासना स्थल र कृष्ण मन्दिरहरु थिए । … Continue reading वैदिक प्रणालीको ईसाई निन्दा

अब स्मृतियाँ ही शेष: -साहब सिंह ‘साहिब’

पक्षी पिंजड़ा छोडक़र चला गया कोई देश, डॉ. धर्मवीर की अब स्मृतियाँ ही शेष। स्मृतियाँ ही शेष नाम इतिहास बन गया, लेकिन हम लोगों में यह दुख खास बन गया। लेकिन हमको याद रहे हम जिस पथ के हैं अनुगामी, देह स्वरूप मरण धर्मा है आत्मा तत्व अपरिणामी। मन में उनकी ले स्मृतियां याद करें अवदान को, आर्य समाजी इस योद्धा के ना भूलें बलिदान को। और सब मिलकर यही प्रार्थना सदा करें भगवान् से, जो अनवरत् चला करता है चलता जाये शान से। उनके लक्ष्यों को धारण कर ऐसा इक परिवेश बने, वेदभक्त हो सकल विश्व यह गुरु फिर भारत देश बने। कृतज्ञता ज्ञापन -आनन्दप्रकाश आर्य जिन क्षेत्रों में आर्य समाज शिथिल था सपने टूट रहे थे। धर्मवीर जी … Continue reading अब स्मृतियाँ ही शेष: -साहब सिंह ‘साहिब’

रामायणमा उत्तर काण्ड प्रक्षिप्त भएको प्रमाण:

ओ३म्.. रामायणमा उत्तर काण्ड प्रक्षिप्त भएको प्रमाण प्रेम आर्य दोहा, कतार बाट सायद कुनै यस्तो व्यक्ति होला जुन रामायण महाकाव्य र रचियता महर्षि वाल्मीकि संग परिचित नहोस्? नेपालमा पनि रामायणको नाम लिना साथ् आदिकवि भानुभक्त आचार्यको नाम स्मरण हुन्छ। रामायण हाम्रो प्राण हो। यसको शिक्षा आज पनि त्यतिकै व्यवहारिक र महत्व छ जति प्राचीन कालमा थियो। यसमा जीवनको अति गहन र अति गम्भीर समस्याहरुको समाधान भएको स्वरुप दृष्टिगोचर हुन्छ। एकातिर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एक महान आदर्श पुत्र, आदर्श दाजु, आदर्श शिष्य, आदर्श पति,  आदर्श सेवक एवं आदर्श राजा हुन् भने अर्को तिर महा रानी सीता एक आदर्श पुत्री, आदर्श पत्नी, आदर्श वधु, आदर्श भाउजू र आदर्श नारी हुन्। जहाँ एकातिर आदर्श माताको रूपमा कौशलयाको चरित्र चित्रण छ भने अर्को तिर … Continue reading रामायणमा उत्तर काण्ड प्रक्षिप्त भएको प्रमाण:

ब्रह्मा : इब्राहीम : कुरान : बाइबिल: – पं. शान्तिप्रकाश

विधर्मियों की ओर से आर्य हिन्दू जाति को भ्रमित करने के लिये नया-नया साहित्य छप रहा है। पुस्तक मेला दिल्ली में भी एक पुस्तिका के प्रचार की सभा को सूचना मिली है। सभा से उत्तर देने की माँग हो रही है। ‘ज्ञान घोटाला’ पुस्तक के साथ ही श्रद्धेय पं. शान्तिप्रकाश जी का यह विचारोत्तेजक लेख भी प्रकाशित कर दिया जायेगा। पाठक प्रतिक्षा करें। पण्डित जी के इस लेख को प्रकाशित करते हुए सभा गौरवान्वित हो रही है। – राजेन्द्र ‘जिज्ञासु’ हमारे शास्त्र ब्रह्मा को संसार का प्रथम गुरु मानते हैं। जैसा कि उपनिषदों में लिखा है कि यो ब्रह्माणं विदधाति पूर्वं यो वै वेदांश्च प्रहिणोति तस्मै। परमात्मा ब्रह्मा को पूर्ण बनाता और उसके लिये (चार ऋषियों द्वारा) वेदों का ज्ञान … Continue reading ब्रह्मा : इब्राहीम : कुरान : बाइबिल: – पं. शान्तिप्रकाश

महर्षि दयानन्दाष्टकम्

टिप्पणी- महामहोपाध्याय श्री पं. आर्यमुनि जी ने यह अष्टक महर्षि का गुणगान करते हुए अपने ग्रन्थ आर्य-मन्तव्य प्रकाश में दिया था। कभी यह रचना अत्यन्त लोकप्रिय थी। ११वीं व १२वीं पंक्ति ऋषि के चित्रों के नीचे छपा करती थी। पूज्य आर्यमुनि जी ने ऋषि जीवन का पहला भाग पद्य में प्रकाशित करवा दिया था, इसे पूरा न कर सके। यह ऐतिहासिक रचना परोपकारी द्वारा आर्य मात्र को भेंट है। – राजेन्द्र ‘जिज्ञासु’ वेदाभ्यासपरायणो मुनिवरो वेदैकमार्गे रत:। नाम्ना यस्य दया विभाति निखिला तत्रैव यो मोदते। येनाम्नायपयोनिधेर्मथनत: सत्यं परं दर्शितम्। लब्धं तत्पद-पद्म-युग्ममनघं पुण्यैरनन्तैर्मया।। भाषाछन्द-सवैया १.            उत्तम पुरुष भये जग जो, वह धर्म के हेतु धरें जग देहा। धन धाम सभी कुर्बान करें, प्रमदा सुत मीतरु कांचन गेहा। सनमारग से पग नाहिं टरे, … Continue reading महर्षि दयानन्दाष्टकम्

तीर्थको वास्तविक अर्थ

ओ३म्.. तीर्थको वास्तविक अर्थ: प्रेम आर्य दोहा, कतार बाट तीर्थ भन्ने बित्तिकै धेरैजसो मानिसले गंगा-स्नान, पुष्कर, हरिद्वार, बाला जी, अमरनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ, मुक्तिनाथ, पशुपति, तिरुपति आदिको यात्रा अथवा सूर्य ग्रहणमा कुनै नदि-विशेषमा स्नान तथा कुरुक्षेत्र आदिको यात्रालाई सम्झने गर्दछन्। तीर्थमा स्नान आदि गर्नाले साम्प्रदायिक मतान्धहरुले बनाएका पुस्तकहरुमा विविध लाभको वर्णन गरिएको छ। केहि उदाहरण: जसले सयौं, हजारौं कोश टाढा बाट पनि गंगाको नाम जप्ने गर्दछ, उसका समस्त पाप नष्ट भएर ऊ विष्णुलोक अर्थात वैकुण्ठमा जान्छ। (ब्रहम पुराण १७५/८२), (पदम् पुराण उत्तर खंड २३/२)। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गंगा र मगध देशमा स्नान गर्नाले प्राणीले आफ्ना सात पिंढी अघिका र सात पिंढी पछिकालाई समेत तार्द्छ। गंगाको नाम स्मरण गर्नाले पापबाट बचाउँछ। गङ्गाको दर्शनले हर्ष प्रदान गर्दछ, त्यसमा स्नान गर्नाले र पिउनाले सातौँ कुल सम्मलाई … Continue reading तीर्थको वास्तविक अर्थ

आर्य समाज और राजनीति: – भाई परमानन्द

मैंने पिछले ‘हिन्दू’ साप्ताहिक में यह बताने का प्रयत्न किया था कि यदि आर्यसमाज को एक धार्मिक संस्था मान लिया जाये, तब भी आर्यसमाज के नेताओं को उसके उद्देश्य को दृष्टि में रखते हुए यह निर्णय करना होगा कि उनका सम्बन्ध हिन्दू सभा से रहेगा या कांग्रेस की हिन्दू विरोधी राष्ट्रीयता से? इस कल्पित सिद्धान्त को दूर रखकर इस लेख में यह बताने का प्रयत्न करूँगा कि क्या आर्य समाज कोरी धार्मिक संस्था है या उसका राजनीति के साथ गहरा सम्बन्ध और उसका एक विशेष राजनीति आदर्श है। इण्डियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना करने वाली, जैसा मैं कह चुका हूँ, स्वयं सरकार थी। उसके सामने पूर्ण स्वतन्त्रता अथवा उसकी पुष्टि का दृष्टिकोण हो ही नहीं सकता था। उसके सामने सबसे … Continue reading आर्य समाज और राजनीति: – भाई परमानन्द

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)