मांस भक्षण और स्वामी विवेकानंद ऋष्व आर्य

  मांस भक्षण  और स्वामी विवेकानंद यदी भारत के लोग चाहते हैं की में मांसाहार न करूँ तो उनसे कहो की एक रसोइय्सा                                 भेज दें और पर्त्याप्त धन सामग्री। स्वामी विवेकानंद विवेकानंद साहित्य , भाग -4, पृष्ठ -344 इसी भारत में कभी  ऐसा भी   समय  था जब कोई ब्राहमण बिना गौ मांस                         खाए ब्राहमण नहीं रह पाता  था। वेद  पड़कर देखो कि किस तरह जब कोई        सन्यासी या राजा या बड़ा आदमी मकान में आता था तब सबसे पुष्ट बैल मारा             जाता था स्वामी विवेकानंद (विवेकानंद साहित्य Vol 5 Pg 70) अब देश के लोगों को मछली मांस खिलाकर  उद्यमशील बना डालना होगा जगाना        होगा  तत्पर बनाना होगा नहीं तो धीरे धीरे देश के सभी लोग पेड़ पत्थरों की तरह             … Continue reading मांस भक्षण और स्वामी विवेकानंद ऋष्व आर्य

प्राचीन काल में यज्ञ में पशु बलि विचारधारा को पोषित करते स्वामी विवेकानंद और सत्य- ऋष्व आर्य

प्राचीन काल में यज्ञ में पशु बलि विचारधारा को पोषित करते स्वामी विवेकानंद और सत्य ऋष्व आर्य स्वामी विवेकानंद ने विवेकानंद ने यज्ञ का अर्थ बलिदान से (Sacrifice ) से लिया  है . यज्ञ का अर्थ बलिदान कैसे हो  गया और वो भी पशु हत्या का ये कहीं स्वामी जी ने स्पस्ट नहीं किया।यज्ञ शब्द यज धातु से निकला है जिसका अर्थ देवपूजा संगतिकरण और दान है। स्वामी  विवेकानंद द्वारा यज्ञ का अर्थ बलिदान    स्वामी विवेकानंद ने मैक्स मूलर  से ही लिया है और ये वाम मार्ग से प्रभावित भी हो  सकता है  क्यूंकि कहीं कहीं स्वामी विवेकानंद के सन्दर्भ में कहीं कहीं पशु बलि के सन्दर्भ भी मिलते हें। There was a time in this very India when, without eating beef, no Brahmin … Continue reading प्राचीन काल में यज्ञ में पशु बलि विचारधारा को पोषित करते स्वामी विवेकानंद और सत्य- ऋष्व आर्य

जन्म जात वर्ण व्यवस्था को पोषित करते श्री कृष्ण के छ्दम शिष्य – ऋश्व आर्य

    जन्म जात वर्ण व्यवस्था को पोषित करते श्री कृष्ण के छ्दम शिष्य – ऋश्व आर्य आजकल वैश्वीकरण हो रहा है पारम्परिक शिक्षा के तरीके बदल चुके हैं और अभी वर्तमान में प्रचिलत तरीकों में भी तीव्रता से परिवर्तन देखने को मिल रहा है। वैश्वीकरण ने और पारम्परिक सामूहिक पारिवारिक वास की परंपरा भी समाप्त कर दी है। आजकल एकल परिवार की प्रथा चल रही है। व्यक्ति अपनी जीविका की तलाश में विदेशों तक जाने में नहीं हिचकिचाता। ऐसे समय में जब शैक्षिक उन्नति हो रही है जीवन जीने के तरीके बदल चुके हैं जाति प्रथा नामक दानव को समाप्त करने के लिए इतने अभियान चलाये गए और चलाये जा रहे हैं फिर भी कुछ लोगों को इस बुराई को … Continue reading जन्म जात वर्ण व्यवस्था को पोषित करते श्री कृष्ण के छ्दम शिष्य – ऋश्व आर्य

लड़के लड़कियों की सम्मिलित शिक्षा

लड़के लड़कियों की सम्मिलित शिक्षा                                   वैदिक आदर्श यह है की लड़के और लड़कियों की शिक्षा एक जगह न होकर पृथक पृथक होनी चाइये इसी में समाज का और देश का हित है और तब ही उत्तम सदाचारी नागरिक पैदा किये जा सकते है परन्तु पश्चिमी सभ्यता के दीवाने लड़के और लड़कियों की एक साथ शिक्षा को उच्च संस्कृति का चिन्ह समझते हुए उसे उन्नत और उपयोगी समझते है और पुराने सिद्धांतों को गली सडी और बेहूदा पागलो की बातें कह कर उनकी मखौल उड़ाते है | इस बात की पुष्टि में यह लोग यूरोप और अमेरिका की दलीले पेश करते है परन्तु उन्हें … Continue reading लड़के लड़कियों की सम्मिलित शिक्षा

Response on Dr. Ambedkar’s DIFFICULTY OF KNOWING WHY ONE IS A HINDU

RIDDLE No. 1 Response on Dr. Ambedkar’s  DIFFICULTY OF KNOWING WHY ONE IS A HINDU By Rishwa Arya People of India are called Arya. After arrival of Muslims “Arya” word was replaced by the “Hindu” word and the mass people who were follower of Vedas and was living in Bharatvarsh were called as “Hindus”. In the later time period people came to this land from different parts of the world and settled down. These people were follower of different sects. People of India provided safe haven to these groups to settle down in India and not only allowed to trade but also allowed to freely discuss their views about the their sect. As a result they were successful to get … Continue reading Response on Dr. Ambedkar’s DIFFICULTY OF KNOWING WHY ONE IS A HINDU

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)