ब्रह्मांड में सर्वत्र गति है। गति के होने से ध्वनि प्रकट होती है । ध्वनि से शब्द परिलक्षित होते है। और शब्दो से भाषा का निर्माण होता है। आज अनेकों भाषाये प्रचलित है। किन्तु इनका काल निश्चित है कोई सौ वर्ष, कोई पाँच सौ तो कोई हजार वर्ष पहले जन्मी। साथ ही इन भिन्न भिन्न भाषाओ का जब भी जन्म हुआ, उस समय अन्य भाषाओ का अस्तित्व था। अतः पूर्व से ही भाषा का ज्ञान होने के कारण एक नयी भाषा को जन्म देना अधिक कठिन कार्य नहीं है। किन्तु फिर भी साधारण मनुष्यो द्वारा साधारण रीति से बिना किसी वैज्ञानिक आधार के निर्माण की गयी सभी भाषाओ मे भाषागत दोष दिखते है। ये सभी भाषाए पूर्ण शुद्धता,स्पष्टता एवं वैज्ञानिकता … Continue reading संस्कृत एकमात्र वैज्ञानिक भाषा : सचिन शर्मा→
ईश्वर के सानिध्य के बिना, ईश्वर की कृपा के बिना, ईश्वर के अनुभव -दर्शन के बिना मृत्यु-भय नहीं छूट सकता, भक्ति का वास्तविक आनंद प्राप्त नहीं हो सकता … इसलिए प्रभु को खोजो हमने खोजा , हमने संसार के पदार्थो को ईश्वर माना , उनके पास गए , किन्तु वहा आनंद न मिला , रस न मिला …. वेदो मे आया -रसेन तृप्त: वह ईश्वर तो रस से तृप्त है , किन्तु ये पदार्थ तो रस से खाली मिले । इनको ईश्वर समझना हमारा भ्रम था ….. फिर इन रस-रिक्त पदार्थो से साधक का मन विरक्त हो जाता है , ऊब जाता है परीक्ष्य लोकान् कर्म्मचितान् ब्राह्मणो निर्वेदमायात्रास्त्यकृत: कृतेन । (मुण्डकोप०) कर्म्म से संचित लोगो (भोगो) की परीक्षा करके ब्रह्मज्ञानी … Continue reading सच्चे ईश्वर की खोज : सचिन शर्मा→
ओ३म् सर्वव्यापी समर्थ तुम्हें कोटिशः प्रणाम सम्पूर्ण क्रियाओ के कर्ता-कारण-कार्य तुम्ही हो वृहद सृष्टि के धार्य-व्याप्य- परिहार्य तुम्ही हो सर्वसौख्य-सम्पन्न-सृष्टि के सृष्टा अभियंता सदजन को अंतिम-अविरल स्वीकार्य तुम्ही हो निर्विशेष-नवनित्य- निरंजन – पुरुष पुरातन नित्य असंख्य नेत्रो वाले तुम्हें कोटिशः प्रणाम हे अनादि-अविनाशी आदि और अंत रहित हो अंतर्यामी-अव्यय-अमित-अतुल-अपरिमित हो सर्वशक्तिसम्पन्न-सौख्यप्रद-सुधर्म-संस्थापक वायु-वरुण-आदित्य विविध नामो से मंडित हो दुर्निरीक्ष – दुसाध्य – दुर्गम अज-मुक्तिप्रदाता सर्वत्र-समान-सर्वव्यापी हे तुम्हें कोटिश: प्रणाम ऋग-यजु-अर्थव-साम शास्त्र सब तुमको गाते स्तुति-स्रोत-भजन-यज्यादि से तुम्हें मनाते निराकार हे निर्विकार आप बिन जग निर्वश है अनघ सृष्टि-ग्रह-दिवस निशा आपके ही वश है पावन-परमानन्द-सत्यचित हे परमात्मन तज आपको अन्य की पूजा विष है व्यर्थ है अश्रुपुरित नेत्रो संग तुम्हें कोटिशः प्रणाम आप अभेद-अखंड-अभय-अक्लेद्य अकलुष हो अकथनीय -आनंदपूर्ण- अज- आदिपुरुष हो तेजरूप-तमनाशक, … Continue reading प्रार्थना : सचिन शर्मा→
The historic shudhi of Ramasimhan and his martyrdom for the cause of Vedic Religion will be remembered in annals of Kerala history, serving as a hope and inspiration to all oppressed Hindus. Thekke Palliyayali Moidu of Chemmun Kadavu village in Malappuram district had two sons namd Uneen and Alippu. Uneen was a Rubber Estate owner near Maalaparambu near Perinthalmanna. The British government conferred the title of ‘Khan Sahib’ on Uneen Sahib as the he was a land lord loyal to them. Uneen Sahib married the daughter of a prominent businessman Mr. Kalladi UnniKammu of Mannarkadu in Palakkad district. Uneen Sahib was very much attached to western culture and was following their lifestyles. His attitude towards the fellow Hindus were very … Continue reading ANGADIPPURAM RAMA SIMHAN – AN ARYA MARTYR OF KERALA→
Atharv Ved Sookt 12.3 is a very interesting and big Sookt containing 60 mantras. Among many other topics I have been studying thisSookt also. I take the opportunity to share my interpretation of the first ten mantras of this Sookt. I shall be obliged and honoured to hear comments of Vedic scholars on my understanding of this Sookt. Family AV12.3 ऋषि: -यम: , देवता:-स्वर्ग;, ओदन: ,अग्नि: लेखक – सुबोध कुमार गृहस्थाश्रम का आरम्भ. Start of Married Life 1. पुमान्पुंसोऽधि तिष्ठ चर्मेहि तत्र ह्वयस्व यतमा प्रिया ते । यावन्तावग्रे प्रथमं समेयथुस्तद्वां वयो यमराज्ये समानं । । AV12.3.1 शक्तिशालियों में भी शक्तिशाली स्थान पर स्थित होवो ।(ब्रह्मचर्याश्रम के पूर्ण होने पर सब प्रकार की शक्ति और कुशलता प्राप्त कर गृहस्थाश्रम में स्थित होवो) जो तुझे सब से प्रिय हो उस को अपनी … Continue reading Family in Veda→
जीवन्नोति Progress in life Rig Veda2.7( महर्षि दयानंद भाष्याधारित भावार्थ) लेखक : श्री सुबोध कुमार ऋषि: -सोमाहुतिर्भार्गव: = ‘श्री वै सोम:’ शतपथ 4.1.3.9 के अनुसार यहां सोम के अर्थ श्री अर्थात् धन सम्पत्ति भी है. जो यज्ञ यागादि में अपनी धन सम्पत्ति की आहुति डाल देता है, वह सोमाहुति है. भार्गव:= भृगु सन्तान = जो अत्यंत तपस्वी है. Enviable Riches पुरुस्पृह रयि 1.श्रेष्ठं यविष्ठ भारताSग्ने द्युमन्तमा भर | वसो पुरुस्पृहं रयिम् || RV2.7.1 (वसो) सुखों में वास कराने और (भारत) सब विद्या विषयों को धारण करने वाले ( यविष्ठ) अतीव युवावस्था युक्त, (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशमान विद्वान ! आप (श्रेष्ठं) अत्यंत कल्याण करने वाली (द्युमन्तम्) बहुत प्रकाश युक्त (पुरुस्पृहं) बहुतों के चाहने योग्य (रयिम्) लक्ष्मी को (आ भर) अच्छे प्रकार धारण कीजिए । Learn all knowledge and skills … Continue reading Progress in life according to Veda→
डॉ अम्बेडकर की वेदों के प्रति कुछ भ्रान्ति के बारे में हमने पिछली पोस्टो पर लिखा .इस बार अम्बेडकर जी की सांख्य दर्शन पर भ्रान्ति का निराकरण का प्रयास किया है .. डॉ अम्बेडकर जी अपने बुद्ध और उनका धम्म नामक पुस्तक में लिखते है की सांख्य दर्शन के रचेता कपिल मुनि ईश्वर को नही मानते है ओर अम्बेडकर जी ये भी मानते है कि गौतम बुद्ध इस दर्शन से प्रभावित थे और उन्होंने इस की शिक्षा भी ली ..वैसे बुद्ध साहित्य के अनुसार बुद्ध ने सांख्य की ही नही वेदों की भी शिक्षा ली थी ..बुद्ध ग्रन्थ ललितविस्तर में इसका उलेख है :- “स ब्रह्मचारी गुरुगेह वासी ,तत्कार्यकारी विहितान्नभोजी। सांय प्रभात च हुताशसेवी ,वृतेन वेदाश्चं समध्यगीष्ट ।।” अर्थात सिद्धार्थ … Continue reading अम्बेडकर की सांख्य दर्शन के प्रति भ्रान्ति→
अक्सर बुद्ध मत के समर्थक ओर नास्तिक अम्बेडकरवादी सनातन धर्म पर अंधविश्वास का आरोप लगाते है ,ओर खुद को अंधविश्वास रहित बताते बताते नही थकते है ..लेकिन हद तो तब कर देते है जब वेदों पर भी अंधविश्वास का आरोप लगाते है ..यहाँ हम बुद्ध मत में वर्णित विभिन्न तरह के अंधविश्वास ,काल्पनिक बातें और आडम्बर के बारे में बतायेंगे ..बुद्धो में हीनयान,महायान ,सिध्यान ,वज्रयान नाम के कई सम्प्रदाय है इन सभी में अंधविश्वास आपको मिल जायेगा … बुद्धो में भूत ,पिशाच के बारे में अंध विश्वास :- एक समय की बात है कि मुर्रा नाम की एक भूतनी ने भेष बदल कर बुद्ध से प्रेम का इकरार किया लेकिन बुद्ध ने मना कर दिया ,,उसने नृत्य ,श्रृंगार ,रूप आदि … Continue reading बुद्ध मत में अन्धविश्वास→
– ओउम् – नमस्ते प्रिय पाठकों, नास्तिक मत भी एक विचित्र मत है जो इस सृष्टि के रचियता और पालनहार यानि ईश्वर को स्वीकार नहीं करते और उसे केवल आस्तिकों की कल्पना मात्र बताते हैं। परंतु वे यह भूल जाते हैं कि हर चीज के पीछे एक कारण होता है। बिना कर्ता कोई क्रिया नहीं हो सकती। यही सृष्टि के लिये भी लागू होता है। ईश्वर ही इस सृष्टि के उत्पन्न होने का कारण है। परंतु यह बात नास्तिक स्वीकार नहीं करते और तरह-तरह के तर्क देते हैं। अपने मत के समर्थन में कितने सार्थक हैं उनके तर्क आइये देखते हैं। हम यहाँ नास्तिकों के दावों का खण्डन करेंगे। महर्षि दयानन्द ने अपनी पुस्तक “सत्यार्थ प्रकाश” में नास्तिकों के … Continue reading नास्तिकों के दावों का खण्डन→
मित्रो अम्बेडकर और उनके अनुयायी वेदों के कुप्रचार में लगे रहते है ,,ये लोग पुर्वग्रस्त हो कर वेदों के वास्तविक स्वरुप को पहचान ने का प्रयास न कर उसके कुप्रचार और आक्षेप लगाते रहते है … अम्बेडकर जी की पुस्तक riddle in hinduism में वेदों पर लगाये गए आरोप का खंडन पिछली इस पोस्ट पर हमारे इस ब्लॉग पर किया गया था..http://nastikwadkhandan.blogspot.in/ अब यहाँ अम्बेडकर की बुद्ध और उनका धम्म नामक पुस्तक में वेदों पर लगाये आक्षेप या अम्बेडकर के वेदों के बारे में फैलाये गये भ्रम का खंडन किया जा रहा है :- सबसे पहले वेदों के विषय में अम्बेडकर ने किया लिखा वो देखे :- अम्बेडकर जी वेदों को ईश्वरीय नही मानते है बल्कि ऋषि कृत मानते है … Continue reading अम्बेडकर की वेदों के विषय में भ्रान्ति→