‘मनुस्मृति का सर्वग्राह्य शुद्ध स्वरूप’

ओ३म् ‘मनुस्मृति का सर्वग्राह्य शुद्ध स्वरूप’ –मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। समस्त वैदिक साहित्य में मनुस्मृति का प्रमुख स्थान है। जैसा कि नाम है मनुस्मृति मनु नाम से विख्यात महर्षि मनु की रचना है। यह रचना महाभारत काल से पूर्व की है। यदि महाभारत काल के बाद की होती तो हमें उनका जीवन परिचय कुछ या पूरा पता होता जिस प्रकार विगत 5,000 वर्षों में हुए विद्वानों व महर्षि पाणिनी इसहउ का ज्ञात होता है। इससे यह सिद्ध होता है कि मनु महाभारत काल व उससे पूर्व ही हुए थे। महर्षि दयानन्द इन्हें सृष्टि के आदि काल में अमैथुनी सृष्टि के बाद ब्रह्माजी की पहली व दूसरी पीढ़ी का ऋषि स्वीकार करते हैं। यह उनके द्वारा रचित मनुस्मृति की विषय वस्तु … Continue reading ‘मनुस्मृति का सर्वग्राह्य शुद्ध स्वरूप’

‘आयुष्काम (महामृत्युंजय) यज्ञ और हम’

ओ३म् ‘आयुष्काम (महामृत्युंजय) यज्ञ और हम’ -मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। सभी प्राणियों को ईश्वर ने बनाया है। ईश्वर सत्य, चेतन, निराकार, सर्वव्यापक, सर्वान्तरयामी, सर्वातिसूक्ष्म, नित्य, अनादि, अजन्मा, अमर, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान है। जीवात्मा सत्य, चेतन, अल्पज्ञ, एकदेशी, आकार रहित, सूक्ष्म, जन्म व मरण धर्मा, कर्मों को करने वाला व उनके फलों को भोगने वाला आदि स्वरूप वाला है। संसार में एक तीसरा एवं अन्तिम पदार्थ प्रकृति है। इसकी दो अवस्थायें हैं एक कारण प्रकृति और दूसरी कार्य प्रकृति। कार्य प्रकृति यह हमारी सृष्टि वा ब्रह्माण्ड है। मूल अर्थात् कारण प्रकृति भी सूक्ष्म व जड़ तत्व है जिसमें ईश्वर व जीवात्मा की तरह किसी प्रकार की संवेदना नहीं होती। जीवात्मायें अनन्त संख्या में हमारे इस ब्रह्माण्ड में हैं। इनका स्वरूप जन्म को … Continue reading ‘आयुष्काम (महामृत्युंजय) यज्ञ और हम’

श्रेष्ठ मानव जीवन का आधार – ‘वैदिक संस्कार’

ओ३म् श्रेष्ठ मानव जीवन का आधार – ‘वैदिक संस्कार’ –मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।   संस्कार की चर्चा तो सभी करते व सुनते हैं परन्तु संस्कार का शब्दार्थ व भावार्थ क्या है? संस्कार किसी अपूर्ण, संस्काररहित या संस्कारहीन वस्तु या मनुष्य को संस्कारित कर उसका इच्छित लाभ लेने के लिए गुणवर्धन या अधिकतम मूल्यवर्धन value addition करना है। यह गुणवर्धन व मूल्यवर्धन भौतिक वस्तुओं का किया जाये तो वैल्यू एडीसन कहलाता है और यदि मनुष्य का करते हैं तो इसे ही संस्कार कह कर पुकारते हैं।   मनुष्य जन्म के समय शिशु शारीरिक बल व ज्ञान से रहित होता है। पहला कार्य तो अच्छी प्रकार से उसका पालन-पोषण द्वारा शारीरिक उन्नति करना होता है। इसे शिशु का शारीरिक संस्कार कह सकते … Continue reading श्रेष्ठ मानव जीवन का आधार – ‘वैदिक संस्कार’

गृह नक्षत्र और सितारों के गुलाम ( फलित ज्योतिष की पोल) – पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय

सुर्यादास- देखो भाई , अब हम अंग्रेजों की गुलामी से छूट गए. अब हम स्वतंत्र हैं . बुद्धि प्रकाश- ठीक तो है . एक गुलामी गयी परन्तु कई प्रकार की गुलामी बाकी हैं. जब तक दुसरी गुलामियाँ रहेंगी हम कभी स्वतंत्र नहीं कहलाये जा सकते . सुर्यादास – क्या स्वतंत्र नहीं है ? हम अपने देश के आप मालिक हैं . हमीं में से प्रधानमंत्री है हमीं में से राष्ट्रपति है हमीं में से कलेक्टर और कमिश्नर हैं . हमीं में से गवर्नर भी है . बुद्धि प्रकाश- यह तो सच है. परन्तु जब तक देश में अविद्या का राज है तब तक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकती अविद्या की गुलामी सबसे बड़ी गुलामी है . सुर्यादास – आपका क्या … Continue reading गृह नक्षत्र और सितारों के गुलाम ( फलित ज्योतिष की पोल) – पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय

Vedas For Beginners : Is the God the Creator?

K:  Sister!  Give reply to yesterday’s question   V:  Your yesterday’s question was how God could protect the world when he was devoid of body for the reason that there could be no activity without body being present. But  I say that  your understanding of the matter is wrong. Conscious being can do functions any where it resides. It can give momentum. Where it is not there, then only the requirement of body is needed. For ex, now I have lifted this book. From which? K: By hands of course.   V: If hands were not to be there would it be possible to lift the books?   K: Not possible.   V: Good!  The hands have lifted the book.  … Continue reading Vedas For Beginners : Is the God the Creator?

Vedas For Beginners : IS GOD IS THERE OR NOT?

K; Sister! You have been telling me to pray daily. I am asking you to whom we should pray? And where is that God?   V: God is everywhere. There is no place which is free from God.   K: You have told the wonderful. If god were to be everywhere then where are other things? All space  are occupied by God and if there is no place free from God then there is no place for other things. Were the other things  remaining  without a space ?   V: It is not that way sister! When it is said that there is no place free from God, it means that God is everywhere. This is my opinion and that … Continue reading Vedas For Beginners : IS GOD IS THERE OR NOT?

‘ईश्वर व उसकी उपासना पद्धतियां – एक वा अनेक?’

ओ३म् विचार व चिन्तन ‘ईश्वर व उसकी उपासना पद्धतियां – एक वा अनेक?’   –मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।   हम संसार में देख रहे हैं कि अनेक मत-मतान्तर हैं। सभी के अपने-अपने इष्ट देव हैं। कोई उसे ईश्वर के रूप में मानता है, कोई कहता है कि वह गाड है और कुछ ने उसका नाम खुदा रखा हुआ है। जिस प्रकार भिन्न-भिन्न भाषाओं में एक ही संज्ञा – माता के लिए मां, अम्मा, माता, मदर, मम्मी या अम्मी आदि नाम हैं उसी प्रकार से यह ईश्वर के अन्य-अन्य भाषाओं व उपासना पद्धतियों में ईश्वर के नाम हैं। क्या यह ईश्वर, ळवक व खुदा अलग-अलग सत्तायें हैं? कुछ ऐसे मत भी हैं जो ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार ही नहीं करते तथा अपने … Continue reading ‘ईश्वर व उसकी उपासना पद्धतियां – एक वा अनेक?’

“महाभारतोत्तर काल के देशी-विदेशी वेद भाष्यकार और महर्षि दयानन्द”

ओ३म् “महाभारतोत्तर काल के देशी–विदेशी वेद भाष्यकार और महर्षि दयानन्द” –मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।   आईये, पौर्वीय एवं पाश्चात्य वेदों के भाष्यकारों पर दृष्टि डालते हैं। महाभारत काल के बाद से अब तक लगभग 5,115 वर्षों से कुछ अधिक समय व्यतीत हो चुका है। महाभारत युद्ध के बाद वेदों के अध्ययन व अध्यापन की परम्परा में बड़ा व्यवधान उपस्थित हुआ। युद्ध के बाद प्रायः ऐसा हुआ ही करता है। आजकल भी यदि घर में किसी को खर्चीला रोग हो जाये या फिर कोई मुकदमा आदि ऐसा हो जाये जिसमें उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में मुकदमा लड़ना पड़े तो अति व्यय साध्य होने से अच्छे अच्छे को पसीने आ जाते हैं मुख्यतः सामान्य व मध्यम वर्गीय व्यक्तियों को। महाभारत काल … Continue reading “महाभारतोत्तर काल के देशी-विदेशी वेद भाष्यकार और महर्षि दयानन्द”

‘यात्रा व पर्यटन से देवपूजा व संगतिकरण का लाभ, देश की एकता व अखण्डता को बढा़वा तथा प्रदेशों का आर्थिक विकास’

ओ३म् ‘यात्रा व पर्यटन से देवपूजा व संगतिकरण का लाभ, देश की एकता व अखण्डता को बढा़वा तथा प्रदेशों का आर्थिक विकास’ -मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।   जब हम किसी उद्देश्य से एक स्थान से अन्य दूरस्थ स्थान पर जाते हैं तो घर से निकल कर घर वापिस लौटने तक भ्रमण किये गये स्थानों पर जाने को हम यात्रा का नाम देते हैं। यात्रा के अनेक उद्देश्य हुआ करते हैं। जैसे बच्चे सुदूर स्थानों पर रहने वाले अपने माता-पिता, दादी-दादा व नानी-नाना के घर जाते हैं तो इसे यात्रा कहा जाता है। इसी प्रकार शिक्षा के उद्देश्य से हम आवासीय स्कूलों में पढ़ते हैं तो हमारा वहां जाना व अवकाश के दिनों में घर पर आना भी एक संक्षिप्त व … Continue reading ‘यात्रा व पर्यटन से देवपूजा व संगतिकरण का लाभ, देश की एकता व अखण्डता को बढा़वा तथा प्रदेशों का आर्थिक विकास’

വൈദിക ധര്‍മ്മം എന്ത്? എങ്ങിനെ?

1. നമ്മുടെ ഏറ്റവും പ്രാചീനമായ ധര്‍മ്മമാണ് വൈദിക ധര്‍മ്മം (ഇന്നത്തെ ഹിന്ദു ധര്‍മ്മം). ഇതിന്‍റെ അടിസ്ഥാനം നാല് വേദങ്ങള്‍ ആണ് (ഋഗ്വേദം,യജുര്‍വേദം,സാമവേദം,അഥര്‍വവേദം). അവയ്ക്ക് പുറമേ ആര്‍ഷ ഗ്രന്ഥങ്ങള്‍ ആയ 4 ഉപവേദങ്ങള്‍ (ആയുര്‍വ്വേദം.ധനുര്‍വേദം,ഗന്ധര്‍വവേദം,അര്‍ത്ഥവേദം), 6 വേദാംഗങ്ങള്‍ (ശിക്ഷ,കല്‍പ്പം,വ്യാകരണം,നിരുക്തം,ഛന്ദസ്സ്,ജ്യോതിഷം),6 ദര്‍ശനങ്ങള്‍ (സാംഖ്യം,വൈശേഷികം,ന്യായം,യോഗദര്‍ശനം,മീമാംസ,വേദാന്തം),ഉപനിഷത്തുകള്‍,ബ്രാഹ്മണങ്ങള്‍,ആരണ്യകങ്ങള്‍ എന്നിവ വൈദിക ധര്‍മ്മത്തെ കുറിച്ച്കൂടുതല്‍ അറിവുകള്‍ നല്‍കുന്നു. 2. ഈശ്വരന്‍ നിരാകാരനും സര്‍വവ്യാപിയും സര്‍വജ്ഞനും ന്യായകാരിയും ആകുന്നു. അദ്ദേഹത്തിന് രൂപമോ വിഗ്രഹമോ ഇല്ല. സര്‍വ്വവ്യാപിയായ അദ്ദേഹത്തെ ഏതെങ്കിലും പ്രത്യേക സ്ഥലത്ത് പ്രതിഷ്ടിക്കുകയോ അഭിഷേകം ചെയ്യുകയോ സാധ്യമല്ല. 3. ജനന മരണങ്ങള്‍ക്കതീതനായ ഈശ്വരന്‍ ഒരിക്കലും അവതരിക്കുന്നില്ല. അവതരിക്കുക എന്നാല്‍ ഇറങ്ങിവരുക എന്നര്‍ത്ഥം. എല്ലായിടത്തും നിറഞ്ഞിരിക്കുന്ന അദ്ദേഹം എവിടെ നിന്ന് എവിടേക്ക് ഇറങ്ങി വരും? ശ്രീരാമന്‍,ശ്രീകൃഷ്ണന്‍ തുടങ്ങിയ മഹാപുരുഷന്മാര്‍ ഈശ്വരാവതാരങ്ങളല്ല. മനുഷ്യനായി ജനിച്ച്മനുഷ്യനായി ജീവിച്ച് ലോകത്തിനു മാര്‍ഗദര്‍ശനം നല്‍കിയ മഹാപുരുഷന്മാരായിരുന്നു അവര്‍. അവരും സന്ധ്യോപസാന,അഗ്നിഹോത്രം എന്നിവ നിഷ്ഠയോടെ അനുഷ്ഠിച്ച്‌ ഈശ്വരനെ ആരാധിച്ചിരുന്നതായി വാല്മീകി രാമായണവും വ്യാസ മഹാഭാരതവും പറയുന്നു. ഈ മഹാപുരുഷന്മാരുടെ ജീവിതം നമുക്ക് പ്രേരണാ ദായകമാണ്. അവരുടെ സന്ദേശം ജീവിതത്തില്‍ പകര്‍ത്തുന്നതിന് പകരം അവരുടെ വിഗ്രഹമുണ്ടാക്കി മണികൊട്ടി പൂജിക്കുനത് വേദ വിരുദ്ധവും നിരര്‍ത്ഥ കവുമാണ് എന്ന് മഹര്‍ഷി ദയാനന്ദന്‍ സത്യാര്‍ത്ഥ … Continue reading വൈദിക ധര്‍മ്മം എന്ത്? എങ്ങിനെ?

आर्य मंतव्य (कृण्वन्तो विश्वम आर्यम)