सृष्टि के आरम्भ से लेकर अद्यावधि संसार में अनेक महापुरूष हुए हैं। उनमें से अनेकों ने अनेक ग्रन्थ लिखे हैं या फिर उनके शिष्यों ने उनकी शिक्षाओं का संग्रह कर उसे ग्रन्थ के रूप में संकलित किया है। हम उत्तम महान पुरूष को प्राप्त करने के लिए निकले तो हमें आदर्श महापुरूष के रूप में महर्षि दयानन्द सरस्वती प्रतीत हुए। हमने उन्हें अपने जीवन में सर्वोत्तम आदर्श महापुरूष के रूप में स्वीकार किया है। ऐसा नहीं कि उनसे पूर्व उनके समान व उनसे उत्कृष्ट पुरूष या महापुरूष, महर्षि, ऋषि, योगी आदि उत्पन्न ही नहीं हुए। हमारा कहना मात्र यह है कि हमारे सम्मुख जिन महापुरूषों के विस्तृत जीवन चरित्र उपलब्ध हैं, उनमें से हमने महर्षि दयानन्द को अपने जीवन का … Continue reading ‘महर्षि दयानन्द, सत्यार्थ प्रकाश और आर्यसमाज मुझे क्यों प्रिय हैं?’ -मनमोहन कुमार आर्य→
ओ३म् खण्डन किसी बात को स्वीकार न कर उसका दोष दर्शन कराने व तर्क व युक्तियों सहित मान्य प्रमाणों को उस मान्यता व विचार को खण्डित व अस्वीकार करने को कहते हैं। हम सब जानते हैं कि सत्य एक होता है। अब मूर्तिपूजा को ही लें। क्या मूर्तिपूजा जिस रूप में प्रचलित है, वह ईश्वरपूजा का सत्य स्वरूप है? इस मूर्तिपूजा के पक्ष व विपक्ष के प्रमाणों, तर्कों व युक्तियों को प्रस्तुत कर जो प्रमाण, तर्क व युक्तियां अखण्डनीय होती है, वही सत्य होता है। मूर्तिपूजा करने वाले बन्धुओं को यदि इसे प्रमाणिक, तर्क व युक्ति संगत सिद्ध करने के लिए कहा जाये तो वह ऐसा नहीं कर सकते। दूसरी ओर वेदों के विद्वान व धर्म के मर्मज्ञों से जब … Continue reading ‘माता-पिता, आचार्य, चिकित्सक व किसान आदि की तरह धर्म प्रचारक का असत्य धार्मिक मान्यताओं का खण्डन आवश्यक’ -मनमोहन कुमार आर्य→
ओ३म् मनुष्य इस संसार में पूर्व जन्म के प्रारब्ध को लेकर जन्म लेता है। माता-पिता सन्तान को जन्म देने व पालन करने वाले होने से सभी सन्तानें इन दो चेतन मूर्तिमान देवताओं की ऋणी हैं। माता अपनी सन्तान को दस महीनों तक गर्भ में रखकर उसे जन्म देने योग्य बनाती है, इससे उसे जो कष्ट होता है वह सन्तान पर उसका ऋण होता है जिसे सन्तान सारा जीवन उसकी आज्ञा पालन, सेवा सुश्रुषा करे तो भी आंशिक ही अदा कर सकता है। इसी प्रकार से पिता का भी अपनी सन्तान के जन्म व पालन, भोजन-छादन, शिक्षा दीक्षा में योगदान करने से दूसरा सबसे बड़ा ऋण होता है। सभी मनुष्य अपने आचार्यों से ज्ञान प्राप्त कर सत्य व असत्य सहित कर्तव्याकर्तव्य … Continue reading ‘ईश्वर, माता-पिता, आचार्य, वायु, जल व अन्न आदि देवताओं का ऋणी मनुष्य’ -मनमोहन कुमार आर्य,→
ओ३म्यज्ञ सर्वश्रेष्ठ कार्य वा कर्म को कहते हैं। आजकल यज्ञ शब्द अग्निहोत्र, हवन वा देवयज्ञ के लिए रूढ़ हो गया है। अतः पहले अग्निहोत्र वा देवयज्ञ पर विचार करते हैं। अग्निहोत्र में प्रयुक्त अग्नि शब्द सर्वज्ञात है। होत्र वह प्रक्रिया है जिसमें अग्नि में आहुत किये जाने वाले चार प्रकार के द्रव्यों की आहुतियां दी जाती हैं। यह चार प्रकार के द्रव्य हैं- गोधृत व केसर, कस्तूरी आदि सुगन्धित पदार्थ, मिष्ट पदार्थ शक्कर आदि, शुष्क अन्न, फल व मेवे आदि तथा ओषधियां वा वनस्पतियां जो स्वास्थ्यवर्धक होती हैं। अग्निहोत्र का मुख्य प्रयोजन इन सभी पदार्थों को अग्नि की सहायता से सूक्ष्मातिसूक्ष्म बनाकर उसे वायुमण्डल व सुदूर आकाश में फैलाया जाता है। हम सभी जानते हैं कि जब कोई वस्तु जलती … Continue reading “यज्ञ क्या होता है और कैसे किया जाता है?” -मनमोहन कुमार आर्य→
संसार में किसी भी वस्तु का ज्ञान प्राप्त करना हो तो उसे देखकर व विचार कर कुछ-कुछ जाना जा सकता है। अधिक ज्ञान के लिये हमें उससे सम्बन्धित प्रामाणिक विद्वानों व उससे सम्बन्धित साहित्य की शरण लेनी पड़ती है। इसी प्रकार से ईश्वर की जब बात की जाती है तो ईश्वर आंखों से दृष्टिगोचर नहीं होता परन्तु इसके नियम व व्यवस्था को संसार में देखकर एक अदृश्य सत्ता का विचार उत्पन्न होता है। अब यदि ईश्वर की सत्ता के बारे में प्रामाणिक साहित्य मिल जाये तो उसे पढ़कर और उसे तर्क व विवेचना की तराजू में तोलकर सत्य को पर्याप्त मात्रा में जाना जा सकता है। ईश्वर का ज्ञान कराने वाली क्या कोई प्रमाणित पुस्तक इस संसार में है, यदि … Continue reading ‘वेदादि ग्रन्थों के अध्ययन, तर्क, विवेचना और सम्यक् ज्ञान-ध्यान के बिना ईश्वर प्राप्त नहीं होता’ -मनमोहन कुमार आर्य→
सहीह बुखारी जिल्द ४ हदीस ५२३ पृष्ठ संख्या ३३२ जबीर बिन अद्बुल्लाह से रिवायत है कि मुहम्मद साहब ने कहा कि रात होने लगे तो अपने बच्चों को घर के अन्दर रखें क्योकि रात को शैतान घूमता है . घर का दरवाजा बंद कर लिया जाये और अल्लाह का नाम लें क्योंकि शैतान बंद दरवाजा नहीं खोलता. सहीह बुखार्री में यही हदीस जिल्द सात में भी आयी है : सहीह बुखारी जिल्द ७ हदीस ५२७ पृष्ठ संख्या ३६२ जबीर बिन अब्दुल्लाह से रिवायत है कि जब शाम हो अर्थात जब रात होने लगे तो बच्चों को बाहर जाने से रोकें क्योंकि उस समय शैतान घूमता है .घर के दरवाजे बंद कर लें और अल्लाह का नाम लें . अपनी … Continue reading भागो शैतान आया !→
समानी प्रपा सहवोऽन्नभागः घर में भोजन सब को आवश्यकता और स्वास्थ्य के अनुकूल मिलना चाहिए। घर में सौमनस्य का उपाय है भोजन में समानता। वास्तव में सुविधा व असुविधाओं को सयक् विभाजन तथा सयक् वितरण सुख-शान्ति का आधार है। साथ-साथ भोजन करने का बड़ा महत्त्व है, साथ-साथ भोजन करने से प्रसन्नता बढ़ती है, स्वास्थ्य का लाभ होता है। साथ भोजन करने से सबको समान भोजन मिलता है। जहाँ पर अकेले-अकेले भोजन किया जाता है, वहाँ शंका रहती है, स्वार्थ रहता है। परिवार में ही नहीं, समाज में भी सहभोज का आयोजन किया जाता है, इन आयोजनों को प्रीतिभोज भी कहते हैं। ये समाज में सहयोग और प्रेम बढ़ाने के साधन होते हैं। घर में जो भी बनाया जाये, उसका कम … Continue reading स्तुता मया वरदा वेदमाता-19→
श्री कलानाथ शास्त्री एक भाषा शास्त्री, संस्कृत, हिन्दी भाषा के अधिकारी विद्वान्, इतिहास एवं संस्कृति के मर्मज्ञ विद्वान् आप परोपकारी के पुराने पाठक हैं। शास्त्री जी कहते हैं- आर्यसमाजी मुझे पौराणिक समझते हैं तथा संगी-साथी पौराणिक समझते हैं कि परोपकारी पढ़ते शास्त्री जी आर्यसमाजी बन गये हैं। – सपादकीय यह एक सुविदित तथ्य है कि भक्ति आन्दोलन के प्रभाव से पूर्व जिन वेदकालीन देवताओं की आराधना देश में की जाती थी, वे यथापि आज भी प्रत्येक धार्मिक कृत्य के अवसर पर पूजे जाते हैं जैसे- इन्द्र, वरुण, प्रजापति, अग्नि, सूर्य आदि, किन्तु भक्ति आन्दोलन ने जिन कृष्ण, राधा, राम, सीता आदि को जन-जन के हृदय में आसीन कर दिया, वे वेदकाल के देवता नहीं थे। अन्य कुछ ऐसे … Continue reading वैदिक देवता पृथ्वी : मूर्तिपूजा की परिणति – देवर्षि कलानाथ शास्त्री→
– डॉ. वेदपाल जी सरीखे वेदज्ञ तथा कई अन्य विद्वान् हाथ पर हाथ धरे तो बैठे नहीं रहते। पूरा वर्ष शोध व धर्म प्रचार करते रहते हैं। सभा के इस सेवक की दिनचर्या ढाई तीन बजे प्रातः आरभ हो जाती है। शोध व लेखन कार्य छह और सात बजे के बीच आरा हो जाता है। सागर पार के देशों से महर्षि के जीवन सबन्धी पर्याप्त नई सामग्री पर परोपकारिणी सभा के लिए अपना नयी अनूठी परियोजना से कुछ लिखने की तैयारी करके बैठा ही था कि परमात्मा की कृपा वृष्टि से और नये-नये दस्तावेज पहुँच गये हैं। आर्य जगत् को क्या-क्या बातऊँ? क्या-क्या मिला है? यह तो आर्य जन नये ग्रन्थ में ही पढ़ेंगे। अभी तो इतना ही बता सकता … Continue reading परोपकारिणी सभा का शोध कार्यःराजेन्द्र जिज्ञासु→
अभी-अभी आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी के तट पर अंधविश्वास की विनाश लीला का दुखद समाचार सुनकर कलेजा फटे जा रहा है । ऐसा कौनसा धर्म प्रेमी, जाति सेवक सहृदय व्यक्ति होगा जो प्रतिवर्ष अंधविश्वास की विनाश लीला से थोक के भाव हिन्दुओं की मौत पर रक्तरोदन न करता होगा? मीडिया इन मौतों के लिए उत्तरदायी कौन? इस प्रश्न का उत्तर पाने का कर्मकाण्ड करने में जुट जाता है। परोपकारी प्रत्येक ऐसी दुर्घटना पर अश्रुपात करते हुए हिन्दू जाति को अधंविश्वासों व भेड़चाल से सावधान करता चला आ रहा है। सस्ती मुक्ति पाने की होड़ में ये दुर्घटनायें होती हैं। अष्टांग योग का, श्रेष्ठाचरण का, स्वाध्याय, सत्संग, सत्कर्म, मन की शुद्धता का मार्ग अति कठिन है। नदी, पेड, जड़, स्थल … Continue reading अंधविश्वास और महाविनाशःराजेन्द्र जिज्ञासु→