पादरियों की शंका या आपत्ति :-
तीनों पदार्थों को अनादि माना जावे तो फिर ईश्वर का जीवन व प्रकृति पर नियन्त्रण कैसे हो सकता है? इस आपत्ति का कई बार उत्तर दिया जा चुका है। आयु के बड़ा-छोटा होने से नियन्त्रण नहीं होता। अध्यापक का शिष्यों पर, बड़े अधिकारी का अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर नियन्त्रण अपने गुणों व सामर्थ्य से होता है। प्रधानमन्त्री युवक हो तो क्या आयु में बड़े नागरिकों से बड़ा नहीं माना जाता? उसका आदेश सबके लिये मान्य होता है, अतः यह कथन या आपत्ति निरथर्क है।
इसी प्रकार जीव की कर्म करने की स्वतन्त्रता के आक्षेप को समझना चाहिये। विकासवाद की दुहाई देने वालों का यह आक्षेप भी व्यर्थ है। जब जड़ प्रकृति में प्राकृतिक निर्वाचन का नियम कार्य करता है, तो निर्वाचन की स्वतन्त्रता तो आपने मान ली। निर्वाचन वही करेगा, जो स्वतन्त्र है। मनोविज्ञान का सिद्धान्त कहता है घोड़े को आप जल के पास तो ले जा सकते हैं, परन्तु जल पीने के लिए वह बाधित नहीं किया जा सकता। इसमें वह स्वतंत्र है। जीव की स्वतन्त्रता तो व्यवहार में पूरा विश्व मान रहा है। वे दिन गये जब सब अल्लाह की इच्छा चलती थी या शैतान दुष्कर्म करवाता था, फिर तो कोई मनुष्य न पापी माना जा सकता है और न ही महात्मा।