पृथिवी आदि की उत्पत्ति :पण्डित शिवशङ्कर शर्मा काव्य तीर्थ

वेदों में पृथिवी आदि की उत्पत्ति यथार्थ रूप से लिखी हुई है। धीरे-धीरे बहुत दिनों में यह पृथिवी इस रूप में आई है। यह प्रथम सूर्यवत् जल रही थी, अभी तक पृथिवी के भीतर अग्नि पाया जाता है । कई स्थानों में पृथिवी से अग्नि की ज्वाला निरंतर निकल रही है। इसी को ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं। कहीं-कहीं गरम पानी निकलता है। इसका भी यही कारण है कि वहाँ पर अग्नि है। धीर-धीरे ऊपर से पृथिवी शीतल होती गई । तब जीव-जन्तु उत्पन्न हुए । लाखों वर्षों में, वह अग्नि की दशा से इस दशा में आई है। वेद विस्पष्ट रूप से कहते हैं कि ” सूर्यचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् । दिवंच पृथिवीञ्चांत- रिक्षमथो स्वः।” परमात्मा पूर्ववत् ही सूर्य, चन्द्र, द्युलोक, पृथिवी, अन्तरिक्ष और सब प्रकार सुखमय पदार्थ बनाया करता है ।

पुराण और पृथिवी की उत्पत्ति

परंतु शोक की बात है कि पुराण इस विज्ञान को भी नहीं मानते और एक असंभव गाथा बनाकर लोगों को महाभ्रम एवं अज्ञानरूप महासमुद्र में डुबो देते हैं। देवी भागवत् पद्म पुराण आदि अनेक पुराणों में यह कथा आती है कि – प्रथम विष्णु ने जल उत्पन्न किया और उसी में घर बना कर सो गये। इनके नाभि कमल से जल के ऊपर एक ब्रह्मा उत्पन्न हुआ । वह कमल पर बैठकर सोच ही रहा था कि मैं कहाँ से आया, मेरा क्या कार्य है इत्यादि । उतने में ही दो दैत्य मधु एवं कैटभ विष्णु के कर्णमल से उत्पन्न हो ( विष्णुकर्णमलोद्भूतौ ) जल के ऊपर आ के ब्रह्मा को कमल के ऊपर बैठा देख बोले कि अरे तू ! इस पर से उतर जा, हम दोनों बैठेंगे। इस प्रकार तीनों लड़ने लगे । पश्चात् ब्रह्मा की पुकार से साक्षात् विष्णु जी आये और इन दोनों असुरों को छल से मारा। तब से ही विष्णु जी मधुसूदन कहलाने लगे । इन दोनों के शरीर से जो रक्त, मज्जा, मांस निकला वही जल के ऊपर जमकर पृथिवी बन गई। इसी कारण इसका नाम मेदिनी पड़ा है, क्योंकि इन मधुकैटभों के मेद अर्थात् मज्जा से बनी हुई है ।

प्रमाण – ” मधुकैटभयोरासीन्मेदसैव परिप्लुता । तेनेयं मेदिनी देवी प्रोच्यते ब्रह्मवादिभिः ॥” इत्यादि प्रमाण देवी भागवत आदि में देखिये । अथवा शब्दकल्पद्रुम आदि कोशों में मेदिनी शब्द के ऊपर इन्हीं प्रमाणों को देखिये। जल की ही प्रथम सृष्टि हुई, यह पुराणों का कथन बहुत ही मिथ्या है। जब जलराशि समुद्र बन गया, जिसमें विष्णु भगवान् सोए हुए थे तो समुद्र किस आधार पर था । अज्ञानी पुरुष समझते हैं कि नौका के समान यह पृथिवी जल के ऊपर ठहरी हुई है वा शेषनाग के शिर पर कच्छप की पीठ पर यह स्थापित है । यदि मधुकैटभ के रुधिर- मांस-मज्जा से यह पृथिवी बनी तो मधुकैटभ का शरीर कहाँ से और किस पदार्थ से बना हुआ था । विष्णु यदि शरीरधारी थे तो उनका शरीर किन धातुओं से बना हुआ था । पुनः कान के मैल कहाँ से आए। कमल कैसे और किन पदार्थों से बने इत्यादि बातों पर विचार करने से प्रतीत होता है कि पुराणों के लेखक भ्रमयुक्त थे ।

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