मौलवी सनाउल्ला का आदरणीय आर्य-प्रधान
डॉज़्टर चिरञ्जीवलालजी भारद्वाज जब आर्यसमाज वच्छोवाली लाहौर के प्रधान थे तो आर्यसमाज के उत्सव पर एक शास्त्रार्थ रखा गया। मुसलमानों की ओर से मौलाना सनाउल्लाजी बोल रहे थे
और वैदिक पक्ष स्वामी योगेन्द्रपालजी प्रस्तुत कर रहे थे। स्वामीजी कुछ विषयान्तर-से हो गये। आर्यजनता स्वामीजी के उज़र से असन्तुष्ट थी। आर्यसमाज का पक्ष वह ठीक ढंग से न रख सके।
कुछ लोगों ने प्रधानजी को सज़्मति दी कि आप यह घोषणा करें कि स्वामीजी की आवाज धीमी है, अतः आर्यसमाज की ओर से स्वामी नित्यानन्दजी बोलेंगे। डॉज़्टर चिरञ्जीवजी इस सुझाव से रुष्ट होकर बोले, ‘‘चाहते हो सत्य-असत्य निर्णय के लिए शास्त्रार्थ और बुलवाते हो उसके लिए मुझसे असत्य।’’ लोग इस बात का ज़्या उज़र देते। थोड़ी देर के पश्चात् श्री प्रधानजी ने घोषणा की, ‘‘हम देख रहे हैं कि हमारे प्रतिनिधि स्वामी योगेन्द्रपालजी विषयान्तर बात करते हैं, ठीक उज़र नहीं देते, अतः आर्यसमाज का प्रतिनिधित्व करने के लिए मैं उनके स्थान पर श्री स्वामी नित्यानन्दजी महाराज को नियुक्त करता हूँ।’’
इस घोषणा का चमत्कारी प्रभाव हुआ। मुसलमान भाइयों पर इसका अधिक प्रभाव पड़ा। मौलवी सनाउल्ला साहिब तो डॉज़्टरजी की इस सत्यनिष्ठा से ऐसे प्रभावित हुए कि वे सदा कहा करते थे, ‘‘भाई! आर्यसमाज का प्रधान तो एक ही देखा।’’ और वे थे डॉ0 श्री चिरञ्जीव जी।