आर्यों को उद्बोधन क्या शौर्य दिखला सकते हो? – प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु

(१)

बिगड़ी बात बना सकते हो,

पाप की लङ्क जला सकते हो।

पदलोलुपता तज दो जो तुम,

झगड़े सभी मिटा सकते हो।।

लेखराम का पथ अपना कर,

लुटता देश बचा सकते हो।।

काज अधूरा दयानन्द का,

पूरा कर दिखला सकते हो।।

तुम चाहो तो आर्य वीरों,

दुर्दिन दूर भगा सकते हो।।

इसी डगर पर चलते-चलते,

मुर्दा कौम जिला सकते हो।।

(२)

मिशन ऋषि का पूछ रहा क्या,

जीवन भेंट चढ़ा सकते हो?

तुम सुधरोगे जग सुधरेगा,

जो कुछ बचा, बचा सकते हो।।

विजय मिलेगी लेखराम सी,

धूनी अगर रमा सकते हो।।

वही पुरातन मस्ती लाकर,

सत्य सनातन धर्म वेद की,

जय-जयकार गुञ्जा सकते हो।।

(३)

शोध करो कुछ निज जीवन का,

फिर तो युग पलटा सकते हो।।

दम्भ दर्प जो घूर रहा फिर,

इसकी जड़ें हिला सकते हो।।

स     ाा की गलियों में जाकर,

क्या कर्       ाव्य निभा सकते हो?

सीस तली पर धर कर ही तुम,

बस्ती नई बसा सकते हो।।

(४)

दक्षिण में जो दिखलाया था,

क्या शौर्य दिखला सकते हो?

राजपाल व श्यामलाल की,

क्या घटना दोहरा सकते हो?

लौह पुरुष के तुम वंशज हो,

भू पर शैल बिछा सकते हो।।

स्मरण करो नारायण का तुम,

तो खोया यश पा सकते हो।।

(५)

जिज्ञासु, अरमान जगाकर,

जीवन शंख बजा सकते हो।।

मन के शिव सङ्कल्पों से तुम,

जीवन दीप जला सकते हो।।

डूब रही मंझधार बीच जो,

नैय्या पार लगा सकते हो।।

मन में कुछ सद्भाव जगाकर,

फिर यह गाना गा सकते हो।।

– वेद सदन, अबोहर, पंजाब

One thought on “आर्यों को उद्बोधन क्या शौर्य दिखला सकते हो? – प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु”

  1. Namaste !
    Pulkit bhav se Snehil hokar,
    Pratibhayukta VED padhkar,
    Shivguna ko dharan karake,
    Lawanyayukta Sudheer bankar,
    Kya Aryavarta ka Uday kar sakate ho????
    Mana me fir Sadbhav jagakar,
    Tum bhi “JIGYASU” ban sakate ho.

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