बीजस्य चैव योन्याश्च बीजं उत्कृष्टं उच्यते । सर्वभूतप्रसूतिर्हि बीजलक्षणलक्षिता ।

यदि माता-पिता कन्या का विवाह करना चाहें तो (उत्कृष्टाय + अभिरूपाय सदृशाय वराय) अति उत्कृष्ट, शुभगुण, कर्म, स्वभाव वाला कन्या के सदृश रूप-लावण्य आदि गुणयुक्त वर ही को चाहें (ताम् अप्राप्तां कन्याम् + अपि) वह कन्या माता की छह पीढ़ी के भीतर भी हो तथापि (तस्मै दद्यात) उसी को कन्या देना, अन्य को कभी न देना कि जिससे दोनों अति प्रसन्न होकर गृहाश्रम की उन्नति और उत्तम सन्तानों की उत्पत्ति करें । (सं. वि. वि. सं.)

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