वार्षिकांश्चतुरो मासान्यथेन्द्रोऽभिप्रवर्षति । तथाभिवर्षेत्स्वं राष्ट्रं कामैरिन्द्रव्रतं चरन् ।

जैसे इन्द्र (वृष्टिकारक शक्ति) प्रत्येक वर्ष के श्रावण आदि चार मासों में (अभिप्रवर्षति) जल बरसाता है । उसी प्रकार इन्द्र के व्रत को आचरण में लाता हुआ राजा अपने राष्ट्र की कामनाओं को पूर्ण करे ।

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