अपत्यं धर्मकार्याणि शुश्रूषा रतिरुत्तमा । दाराधीनस्तथा स्वर्गः पितॄणां आत्मनश्च ह ।

(यथाविधि) विधि अनुसार (विधवायां नियोगार्थे निर्वृत्तेतु) विधवा में नियोग के उद्देश्यपूर्ण हो जाने पर फिर (गुरुवत् च स्नुषावत् च परस्पर वर्तेंयाताम्) बड़े भाई तथा छोटे भाई की स्त्री से क्रमशः गुरुपत्नी तथा पुत्रवधू के समान परस्पर वर्ताव करें ।

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