आत्मैव ह्यात्मनः साक्षी गतिरात्मा तथात्मनः । मावमंस्थाः स्वं आत्मानं नृणां साक्षिणं उत्तमम्

आत्मा का साक्षी आत्मा और आत्मा की गति आत्मा है, इसको जानके हे पुरूष! तू सब मनुष्यों का उत्तम साक्षी अपने आत्मा का अपमान मत कर अर्थात् सत्यभाषण जो कि तेरे आत्मा, मन, वाणी में है वह सत्य, और जो इससे विपरीत है वह मिथ्याभाषण है ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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