यस्त्वनाक्षारितः पूर्वं अभिभाषते कारणात् । न दोषं प्राप्नुयात्किं चिन्न हि तस्य व्यतिक्रमः ।

किन्तु जो पहले ऐसे किसी अपराध में अपराधी सिद्ध नहीं हुआ है, यदि वह किसी कारणवश बातचीत करे तो किसी दोष का भागी नहीं होता क्यों कि वह कोई मर्यादाभंग नहीं करता ।

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