कार्षापणं भवेद्दण्ड्यो यत्रान्यः प्राकृतो जनः । तत्र राजा भवेद्दण्ड्यः सहस्रं इति धारणा ।

जिस अपराध में साधारण मनुष्य पर एक पैसा दण्ड हो उसी अपराध में राजा को सहस्त्र पैसा दण्ड होवे अर्थात् साधारण मनुष्य से राजा को सहस्त्रगुणा दण्ड होना चाहिए ।

मंत्री अर्थात् राजा के दीवान को आठ सौ गुणा, उससे न्यून को सात सौ गुणा, और उससे भी न्यून को छः सौ गुणा, इसी प्रकार उत्तर – उत्तर अर्थात् जो एक छोटे से छोटा भृत्य अर्थात् चपरासी है उसको आठ गुणे दंड से कम न होना चाहिए । क्यों कि यदि प्रजापुरूषों से राजपुरूषों को अधिक दण्ड न होवे तो राजपुरूष प्रजापुरूषों का नाश कर देवे; जैसे सिंह अधिक और बकरी थोड़े दण्ड से ही वश में आ जाती है, इसलिए राजा से लेकर छोटे से छोटे भृत्यपर्यन्त राजपुरूषों को अपराध में प्रजापुरूषों से अधिक दण्ड होना चाहिये ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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