अष्टापाद्यं तु शूद्रस्य स्तेये भवति किल्बिषम् । षोडशैव तु वैश्यस्य द्वात्रिंशत्क्षत्रियस्य च ।

. वैसे ही जो कुछ विवेकी होकर चोरी करे उस शूद्र को चोरी से आठ गुणा वैश्य को सोलह गुणा क्षत्रिय को बत्तीस गुणा ब्राह्मण को चैंसठ गुणा वा सौ गुणा अथवा एक सौ अठाईसगुणा दण्ड होना चाहिए अर्थात् जिसका जितना ज्ञान और जितनी प्रतिष्ठा अधिक हो, उसको अपराध में उतना ही अधिक दण्ड होना चाहिए ।

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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