राजभिः कृतदण्डास्तु कृत्वा पापानि मानवाः । निर्मलाः स्वर्गं आयान्ति सन्तः सुकृतिनो यथा ।

मनुष्य पाप – अपराध करके पुनः राजाओं से दण्डित होकर अर्थात् राजा द्वारा दिये गये दण्डरूप प्रायश्चित्त को करके पवित्र – दोषमुक्त होकर सुख को प्राप्त करते हैं जैसे अच्छे कर्म करने वाले श्रेष्ठ लोग सुखी रहते हैं । अभिप्राय यह है कि प्रायश्चित्त करने पर उस पापरूप अपराध के संस्कार क्षीण हो जाते हैं, और दोषी होने की भावना नहीं रहती उससे तथा पुनः श्रेष्ठकर्मों में प्रवृत्ति होने से मनुष्य सन्तों की तरह मानसिक शान्ति – सुख को प्राप्त करते हैं ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *