रक्षन्धर्मेण भूतानि राजा वध्यांश्च घातयन् । यजतेऽहरहर्यज्ञैः सहस्रशतदक्षिणैः

धर्मपूर्वक – न्यायपूर्वक प्रजाओं की रक्षा करता हुआ और दण्डनीय या वध के योग्य लोगों को दण्ड या वध करता हुआ राजा यह समझो कि प्रतिदिन हजारों – सैंकड़ों दक्षिणाओं से युक्त यज्ञों को करता है अर्थात् इतने बड़े यज्ञों जैसा पुण्यकार्य करता है ।

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