सीमायां अविषह्यायां स्वयं राजैव धर्मवित् । प्रदिशेद्भूमिं एकेषां उपकारादिति स्थितिः ।

चिन्हों एवं साक्षियों आदि उपर्युक्त उपायों से सीमा के निर्धारित न हो सकने पर न्याय का ज्ञाता राजा स्वयं ही वादि – प्रतिवादियों के उपकार अर्थात् हितों को ध्यान में रखकर भूमि सीमा को निश्चित कर दे ऐसी शास्त्र – व्यवस्था है ।

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