जिस सभा में निन्दा के योग्य की निन्दा, स्तुति के योग्य की स्तुति, दण्ड के योग्य को दण्ड और मान्य के योग्य का मान्य होता है, वहां राजा और सब सभासद पाप से रहित और पवित्र हो जाते हैं पाप के कत्र्ता ही को पाप प्राप्त होता है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)
जिस सभा में निन्दा के योग्य की निन्दा, स्तुति के योग्य की स्तुति, दण्ड के योग्य को दण्ड और मान्य के योग्य का मान्य होता है, वहां राजा और सब सभासद पाप से रहित और पवित्र हो जाते हैं पाप के कत्र्ता ही को पाप प्राप्त होता है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)