पादोऽधर्मस्य कर्तारं पादः साक्षिणं ऋच्छति । पादः सभासदः सर्वान्पादो राजानं ऋच्छति ।

. ‘‘जब राजसभा में पक्षपात् से अन्याय किया जाता है वहां अधर्म के चार विभाग हो जाते हैं । उनमें से एक अधर्म के कत्र्ता, दूसरा साक्षी, तीसरा सभासदों और चैथा पाद अधर्मी सभा के सभापति राजा को प्राप्त होता है ।’’

(स० प्र० षष्ठ समु०)

राजसभा में पक्षपात से किये गये अन्याय का अधर्म चौथाई अधर्म के कत्र्ता को चौथाई साक्षी को प्राप्त होता है, और चौथाई अंश शेष सब न्यायसभा के सदस्यों को तथा चौथाई राजा को प्राप्त होता है ।

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