अधर्मदण्डनं लोके यशोघ्नं कीर्तिनाशनम् । अस्वर्ग्यं च परत्रापि तस्मात्तत्परिवर्जयेत्

क्यों कि इस संसार में जो अधर्म से दण्ड करना है वह पूर्वप्रतिष्ठा वत्र्तमान और भविष्यत् में, और परजन्म में होने वाली कीर्ति का नाश करने हारा है और परजन्म में भी दुखदायक होता है इसलिये अधर्मयुक्त दण्ड किसी पर न करे ।‘’

(स० प्र० षष्ठ समु०)

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