अनुबन्धं परिज्ञाय देशकालौ च तत्त्वतः । सारापराधो चालोक्य दण्डं दण्ड्येषु पातयेत्

‘‘परन्तु जो – जो दण्ड लिखा है और लिखेंगे, जैसे – लोभ से साक्षी देने में पन्द्रह रूपये दश आने दण्ड लिखा है; परन्तु जो अत्यन्त निर्धन हो तो उससे कम, और धनाढय हो तो उससे दूना, तिगुना और चौगुना तक भी ले लेवे अर्थात् जैसा देश, जैसा काल और जैसा पुरूष हो उस का जैसा अपराध हो वैसा ही दण्ड करे ।’’

(स० प्र० षष्ठ समु०)

न्यायकत्र्ता अपराधी का इरादा या बार – बार किये गये अपराध को और सही रूप में देश और काल को जानकर तथा अपराधी की शारीरिक एवं आर्थिक शक्ति और अपराध का स्तर देख – विचार कर दण्डनीय लोगों को दण्ड दे ।

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