. सदा जो राजाओं को वेद – प्रचाररूप अक्षय कोश है इसके प्रचार के लिए कोई यथावत् ब्रह्मचर्य से वेदादि शास्त्रों को पढ़कर गुरूकुल से आवे, उसका सत्कार, राजा और सभा यथावत् करें तथा उनका भी जिनके पढ़ाये हुए विद्वान् होवें । इस बात के करने से राज्य में विद्या की उन्नति होकर अत्यन्त उन्नति होती है ।
(स० प्र० षष्ठ समु०)